रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी
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के वाराणसी शहर मे हुआ था, रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झांसी राज्य की महारानी थी,
सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमतो के विरुद्ध बिगुल बजा कर उन्हें हराने वाली वीर थी,
रानी लक्ष्मी बाई का जन्म एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था, बचपन से ही उन्हें मणिकर्णिका के नाम से जाना जाता था,
परिवार वाले उन्हें अपने को मनु पुकारते थे उनके पिता का नाम मरो पर तांबे था माता का नाम भागीरथी सपरे था,
उनके माता-पिता महाराष्ट्र संबंध रखते थे, महज 4 साल की उम्र में उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था उनके पिता मराठा बाजीराव की सेवा में थे,
मां के स्वर्गवास के बाद मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले जाया करते थे वहां मनु का स्वभाव देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो जाते और लोग उसे प्यार से छबीली कहां करते,
1842 में मनु का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव निंबालकर से के साथ हुआ इस प्रकार झांसी की रानी बन गए उनका नाम बदलकर लक्ष्मीबाई कर दिया गया सन 1851 में लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव को पुत्र प्राप्ति हुई,
गंगाराम का स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद गंगा गांव परलोक सिधार गए उनके दम दत्तक पुत्र का नाम दामोदर रखा गया,
इसके बाद ब्रिटिश गवर्नर के जनरल डलहौजी की राज्य हड़प नीति के अंतर्गत बालक दामोदर राव को झांसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया गया,
और डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स नीति के तहत झांसी राज्य का विलय अंग्रेजी सरकार में करने का फैसला कर दिया गया,
हालांकि रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज वकील जान लॉन्ग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर कर दिया पर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध कोई फैसला हो ऐसा हो ही नहीं सकता,
इसलिए बहुत बहस बाजी के बाद इसे खारिज कर दिया गया, अंग्रेजों ने झांसी राज्य का खजाना जप्त कर लिया और रानी लक्ष्मी बाई के पति गंगाधर राव को कर्ज को रानी के सालाना खर्च से काटने का हुक्म दे दिया गया, इसके बाद 7 मार्च को झांसी पर अंग्रेजों ने अधिकार हो गया,
फ़िरभी, रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और हर हाल में झांसी की रक्षा करने का निश्चय कर लिया,
जसके लिए अंग्रेजो के खिलाफ रानी लक्ष्मीबाई की जंग में कई बेगम जीनत महल से मुगल सम्राट बहादुरशाह नाना साहब के वकील अजीमुल्ला का गढ़ के राजा भानपुर के राजा मर्दन सिंह और तात्या टोपे आदि सभी महारानी के इस कार्य को सहयोग देने का प्रयत्न करने लगे,
सन 1858 के जनवरी महीने के अंग्रेजी सेना ने झांसी की रानी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया,
अंग्रेजों ने झांसी को घेर लिया और लगभग 2 हफ्तों के बाद अंग्रेजों ने शहर पर कब्जा कर लिया पर रानी लक्ष्मीबाई अपने पुत्र दामोदर राव को अंग्रेजी सेना से बचाकर भाग निकली ,
इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने जी जान से अंग्रेजी सेना का मुकाबला किया, और 17 जून अट्ठारह सौ 58 को ग्वालियर के पास कोटा के सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हो गई,
19 नवंबर को रानी लक्ष्मीबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है, रानी लक्ष्मीबाई एक वीरांगना थी जिन्होंने अकेले ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला हिला दी थी |
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