अधूरी कहाँनिया 2020 :विवाह (समाजिक कुप्रथा )
आज भी कई छोटे गांवो मे बाल विवाह आम बात है, माता पिता खासकर बच्चियों के प्रति अपना दायित्व सिर्फ उनकी शादी तक ही समझते है, इसलिए जितनी जल्द हो सके वो इस दायित्व के बोझ से छुटकारे के लिए कम उम्र मे ही उनका विवाह कर देते है, ऐसा करके उन्हें लगता है वे गंगा नहा चुके, पर क्या सच मे.....
जबकि, उस विवाह से बच्चियों के कश्टकारी जीवन का आरम्भ होता है, आज की कहानी इसी कुप्रथा का एक उदाहरण है...
बेतिया नामक एक गाँव मे काशीराम की 6 बेटीया थी, जिसमे 5 बेटियों की शादी काशीराम ने 12 साल की उम्र मे ही कर दी, छठी बेटी रेनू की शादी भी थोड़े दिनों मे होने को थी,
उसके बाद काशीराम हरिद्वार जाकर तीर्थ स्थलों के दर्शन करने वाले थे, क्युकि उनके अनुसार सभी बेटियों की शादी कर के उन्होंने अपना भार उतार चुके है,
शादी के बाद रेनू की पढ़ाई लिखाई, खेल कूद, सहेलियों का साथ, खिलौने गुड्डे गुड़िया, और माँ का आंचल सब छूटने को था, भले ही उसे शादी का मतलब ना पता हो, लेकिन बहनो की शादियों को देख कर उसे ये समझ आ चूका था, के इस घर के लिए वह अब परायी हो जाएगी,
देखते देखते काशीराम ने अपनी आखिरी बेटी रेनू की भी शादी कर दी,
शादी के कुछ दिनो मे ही रेनू के ससुराल से रेनू की शिकायतो का पिटारा लिए रेनू की सास काशीराम को टेलीफोन पर फटकार लगाने लगी,........... तीखे स्वर मे वो कहती है अपनी बेटी को कुछ सिखाया भी है या नही,
ससुराल मे कैसे रहना है, बिल्कुल तमीज और संस्कार नही दिए अपने, नही तो इतनी जुबान नही चलाती, और ना ही नासमझी करती,
काशीराम अपनी बेटीयो की शादी के बाद आराम की जिंदगी जीना चाहता था, लेकिन रेनू की शादी के तुरंत बाद ही उसके ससुराल वाले बात बात पर काशीराम और उसकी बेटी के पीछे पड़ जाते, छोटी सी बात पर बेटी के ब्यवहार की शिकायत मिल जाती,
पिछले 5 बेटियों की ससुराल की तुलना मे रेनु के ससुराल वाले बुरे आचरण वाले मिले थे, जिसके कारण रेनू की जिंदगी नर्क बन गयी थी,
मात्र 12 - 13 वर्ष की उम्र मे रेनू एक भरे पुरे घर का सारा कार्य करती, पति की हर फरमाइश पूरी करती, घर के सभी सदस्य हर कार्य के लिए रेनू पर आश्रित हो चुके थे, इसके बावजूद रेनू की सास को रेनू मे त्रुटियों के अलावा कुछ और न दिखता,
12 साल की उम्र मे लड़किया बच्चे की सामान होती है, लेकिन बाल विवाह की कुप्रथा ने रेनू से बचपन छीन लिया था, हाथो मे किताब कॉपी की जगह बेलन और पैरो मे बेड़िया पड़ चुके थे, जो सिर्फ घर की बंधुआ मजदूर की जीवन जीने को मजबूर थी,
17 साल तक रेनू 4 बच्चो को जन्म दे चुकी थी, खुद की पहचान और खुद की अभिलाषाओ की जगह बच्चों और पति के सुख ने ले ली,
रेनू की अपनी जिंदगी बदहाली से भरे थे, जिस उम्र मे लड़किया शादी का ख्याल भी नही आता, उस उम्र मे वह 4 बच्चो की माँ बन चुकी थी, इसके बाद पति का शारीरिक मोह भी रेनू से हट चूका था, और वह दूसरी लड़की के प्यार जाल मे फस गया,
वह रेनू को अपनी जिंदगी से किसी तरह भी निकाल बाहर फेकना चाहता था, इसलिए उसके साथ परिवार वालो के अत्याचारों मे इजाफा होता रहा,
पिता को परेशानी ना उठानी पड़े इसलिए रेनू चुपचाप सब सहती, वह अपनी घुटन भरी जिंदगी से निकलना चाहती थी, लेकिन उअके पास कोई और रास्ता भी ना था,
अब रेनू को दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा, पिता को धमकिया दी जाने लगी, दहेज़ दो, या बेटी और बच्चों को अपने पास रखो,
काशीराम अपनी जमीन बेचकर कुछ पैसे तो दे आया, लेकिन फ़िरभी रेनू के ससुराल वालओ का रेनू को परेशान करना जारी था,
काशीराम रेनू की शादी के बाद ये सोच रहा था, की मैंने तो 6 बेटियों की शादी की है, पर परेशानी सिर्फ रेनू ( 6वीं ) बेटी मे ही क्यूँ हो रहे है, सायद मेरी बेटी मे ही बुराई है,
एकदिन उसने अपनी सारी बेटियों के घर जाकर कुशलता की जांच करने की सोची, इसलिए बिंबुलाये सभी बेटियों के घर एक एक करके वह सभी बेटियों के घर गया, वहासे लौटने के बाद उसे एहसास हुआ की सभी बेटिया कम ज्यादा उसी तरह जीवन जी रही थी,
बस रेनू घर मे छोटी थी, लाड़ प्यार मे रहने के कारण सिखने और समझने मे समय लगे, और उसके ससुराल के लोगो के ब्यवहार अधिक निंदनीय थी,
काशीराम को एहसास हुआ, ब्याह जैसी चीज के लिए बेटी को मानसिक और सरिरिक तौर पर सक्छम रहना जरुरी होता है, कम उम्र मे शादिया करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, जो की सही भी नही है,
उधर काशीराम की सभी बेटिया यातनाओ से भरी जिंदगी जीने को मजबूर थी, क्युकि शादी के कारण पढ़ाई भी ना हो सकि, जिससे अपनी बौद्धिक छमता से सही गलत का निर्णय लेना रेनू जैसी लड़कियों के लिए कठिन था,
सीख : बचपन मे विवाह समाज मे फैली वह कुरुति है, जो लड़कियों से उनकि पढ़ने लिखने, की आजादी के साथ, आत्मसम्मान के साथ जीने की आजादी भी छीन लेती है, इसलिए इसका बहिष्कार करना एकमात्र उपाय है,,, |
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