" इंसाफ़ " आज ना सही कल

 इंसान के कर्म कभी उसका पीछा नही छोड़ते, यह कहानी इंसान द्वारा पाए गये अपने कर्मो की सजा पर उल्लेखित है, 

जोधपुर का रहनेवाला ध्यान चंद काफि जिन्दादिल किस्मत का ब्यक्ति था, उसने अपने पुरे जीवन मे सबकी भलाई ही की, हा थोड़ा सख्त मिजाज का था, इसलिए कभी कबार लोगो को चुभने वाली बाते केह जाता, 

उसे तीन बेटे और दो बेटियां थी उसकी एक ही कमजोरी थी, वो था उसका दूसरा बेटा, ओ अपने बेटे को दिलोजान से चाहता था, 

उसे कभी भी किसी चीज की जरूरत होती, बगैर मुँह खोले मिल जाती, जबकि बाकि दोनों बेटों के लिए उसका मोह कम था, 

बेटियों की शादी करने के बाद ही उसकी पत्नी चल बसी, इसलिए उसने झटपट तीनो बेटों की शादी कर डाली, जिससे वह अपनी जिम्मेदारी से आजाद हो गया, 

दूसरे बेटे के मोह ने उसे अंधा कर दिया था, इस मोह मे उसने अपने बाकि दो बेटों से इतने अन्याय कर डाले, की पूछो ही मत 

जल्द ही तीनो बाल बच्चेदार हो गये, ध्यानचंद के पहले बेटे को दो संतान कन्या हुई, दूसरे बेटे को भी दो कन्याये ही थी, जबकि तीसरे बेटे के घर एक पुत्र (देव ) ने जन्म लिया, 

 ध्यानचंद चाहता था की उसके दूसरे बेटे को पहले पुत्र हो, ताकि वह अपनी सारी वसीयत उसके नाम करदे, लेकिन ऐसा ना हुआ, फ़िरभी मन ही मन वह आस लगाए था, 

देव के जन्म लेने के बाद ही ध्यान चंद्र की तकदीर करवट ले चुकी थी, धीरे धीरे उसकी हर मनोकामना पूर्ण होने लगी, और आखिरकार वह दिन भी आ ही गया जब उसके दूसरे बेटे को पुत्र (गिरधर ) हुआ, 

इसके बाद ध्यानचंद्र ने बगैर किसी तोलमोल के अपना सारा प्यार और धन दौलत गिरधर मे न्योछावर करने लगा, इधर देव को मिला हुआ थोड़ा सा सम्मान भी गिरधर ले चूका था,

ध्यान चंद्र जनता था की एकदिन वह अपनी सारी दौलत का हकदार गिरधर को बनाएगा, इसलिए पहले से ही कीमती  तोहफ़े के रूप मे उसने गिरधर को देने लगा, 

देव अपने नाम की तरह ही असीम था, उसने भी अपने साथ होनेवाले भेद भाव की कभी किसी से शिकायत नही की, अपने धुन मे मग्न रहता, उसे परवाह भी नही था की उसे क्या मिला रहा है, और क्या नही मिल रहा है, 

इधर पौत्रमोह मे मोह मे ध्यानचंद ने अपने सारे बेशकीमती जेवरात और प्रॉपर्टी के कागजात भी गिरधर को दे डाले, 

ध्यान चंद्र का गिरधर मोह किसी से छुपा नही था, लाड़ प्यार की अथाह पाकर गिरधर मनमौजी स्वाभाव का हो गया, जबकि देव अपनी जिम्मेदारीयों मे इतना उलझता चला गया  की खाने की स्वाद के बारे मे भी समझना उसके लिए जरुरी नही रहा, 

अब देव और गिरधर बड़े हो चुके थे, बात उनकी शादी की थी, उम्र होने के कारण ध्यानचंद्र भी बीमार रहने लगा, उसने अपने बेटों से देव और गिरधर की शादी की बात की, जिसपर वे राजी हो गये, 

देव की शादी सुमन से, और गिरधर की शादी रचना से तय हुआ, कुछ ही दिनों मे जल्द ही दोनों की शादी हो गयी, शादी के दूसरे दिन ज़ब अपनी पुत्रवधुओ से ध्यानचंद्र मिलने पहुंचा तो अपने साथ दो खानदानी हार लेकर पहुंचा, एक सुमन और दूसरा रचना को दिया, 

थोड़ी देर बाद ध्यानचंद्र सुमन के पास आया और हाथ जोड़कर रोने लगा, सुमन नई थी वह ये सब समझ नही पायी की आखिर दादाजी ऐसा क्यूँ कर रहे है, 

बहोत देर रोने के बाद ध्यानचंद्र अपने कमरे मे चला गया, सुमन ने देव से इसबारे मे पुछना चाहा, पर किसी ने उसे कुछ भी नही कहा, 

इसके बाद जब भी किसी खाश मौक़े पर सुमन और देव ध्यानचंद का आशीर्वाद लेने जाते तो वह फुट फुट कर रोने लगता, और अपने दबे स्वर मे कुछ कहता जो सुमन समझ नही पाती  

सुमन जानना चाहती थी की दादाजी उन्दोनो को देखते ही क्यूँ रोने लगते है, जबकि गिरधर और रचना के पास तो ऐसा नही करते, वह सबसे पूछती पर कोई उसे कुछ नही बताता, 

एकदिन ध्यान चंद्र की तबियत ज्यादा बिगड गयी, देव और सुमन ज़ब मिलने पहुँचे तो, ध्यानचंद देव से कहने लगे.....

 "मैं अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ गलत करता आया हु, तुम्हे कभी मैंने वह सम्मान नही दिया, जिसके तुम हकदार थे, मै अपने ब्यवहार के लिए सर्मिन्दा हु, तुम बताओ मै  किस प्रकार तुम्हारा कर्ज चुकाऊ......... 

इस पर देव ने सरलता से जवाब दिया.. आप किस बारे मे बात करे रहे है, मुझे कुछ भी याद नही, 
अपने हमेशा अच्छा ही किया, कभी कुछ गलत नही किया मेरे साथ फिर क्यूँ ऐसी बाते कर रहे है, 

ध्यानचंद्र दिल्ल ही दिल् मे स्वंम को अपराधी मान चूका था, देव की बातो से उन्हें थोड़ी देर का आश्वासन तो मिला, लेकिन गलती का एहसास होते ही वह वापस देव के पास आकर वही बात दोहराते, 

" सुमन को " अब तक कुछ समझ नही आ रहा था,
 आखिर दादाजी किस अपराध की बात कर रहे है....

 दिनभर यही सब किस्सा सुमन के दिमाग़ मे चलता रहा, 
पर रात को सोने अपने कमरे मे गयी तो देव की नम आंखे देखकर उसे सब समझ आ गया, दादाजी किस गलती की बात कर रहे थे, 

काफी देर पूछने के बाद देव ने बताया की बचपन से अब तक देव किस प्रकार अपनों के लगाव के लिए तरसता रहा, ध्यानचंद्र अपनी आखिरी दिनों मे अपने कर्मो के लिए देव से माफ़ी मांगता फिरता, देव तो महान है चलो वे माफ़ कर भी देते है, तो क्या सुमन अपने पति के बहते आंसूओ के बदले  ध्यानचंद को माफ़ कर सकेगी ?? 

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, किसी भी किसी इंसान को उसके हक से वंचित नही करना चाहिए , खाशकर जिसने तुम्हारी जिंदगी को जरा भी रौशन किया हो उसे कभी किसी प्रकार का कष्ट ना दे ,

जवानी मे भले किसी गलती का एहसास ना हो, लेकिन जीवन का आखिरी समय मे आपके सारे अनुचित कार्य कील की तरह स्वम् आपको ही चुभेंगे और देर सवेर आपके कर्मो का हिसाब भी होगा, पछ्ताताप मे जलने के बाद भी इंसान आने कर्मो को धो नही पाता |






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