कभी कभी जीवन समस्याओ से इस तरह घिर जाते है, की वहा से निकल पाना इस जन्म मे सम्भव नहीँ हो पाता, इन्ही रहस्यों को अपने अंदर समेटे यह अनकही दास्तां भी आम कहानियो मे एक है,
यह कहानी साधारण वर्ग से है, जिसमे मुख्य भूमिका मे है रूपचंद साह, ये ब्यापारी वर्ग से आते थे, जिनकी झारखण्ड के छोटे से ग्राम मे काफी जमींदारी थी,
जिनका पूरा जीवन अपने कार्य को समर्पित रहा, हलाकि घर द्वार, जमीन जायदाद के अलावा एक बड़ी और खुशहाली स भरा पूरा परिवार था,
अपने पैसो को फिज़ूल खर्च के लिए कभी उपहा ना किया, धन सम्पति का एक एक रुपया सपनी कीर्ति को बढ़ाने और नई सम्पति बनाने मे झोक दिया,
हलाकि जिसके विरोध मे परिवार वाले भी खड़े रहते परन्यु उनपर जैसे किसी बात का असर ना होता,
परन्तु एक समय ऐसा भी एस ज़ब परिवार का हर सदस्य रिश्ते को दरकिनार कर जायदाद के हिस्से लेने के लिए आतुर था, तो क्या रुपचंद ने पैसे कमाने के झोक मे रिश्ते को समय देना जरुरी नहीँ समझा था, या फिर कोई और बात थी, इसके लिए हमें उनके अतीत को खंगालने की जरूरत थी,
रुपचंद एक धनी परिवॉर से थे, उनके पूर्वजो के पास इतनी सम्पति थी के उनके कई पुस्ते बगैर कोई काम किये जीवन भर आराम स अपना गुजारा कर सकते थे, लेकिन आजादी के समय ब्रिटिश हुकूमत के आतंक से उन्होंने अपने सारे धन को एक खुपिया दरवाजे के भीतर बंद कर दिया था,
उस समय रुपचंद केवल 3-4 वर्ष का रहा होगा, ऐशो आराम मे पले बढे रुपचंद को किसी तरह की तकलीफ न थी, सभी जानते है की पहले शादिया नहीँ बाल विवाह हुआ करते थे,
इसलिए रुपचंद का भी 7 वर्ष की आयु मे बदल विवाह कराया गया, और लगभग 1-2 वर्ष बाद बहु भी घर आ चुकी थी, अपनी रहिसियत के आगे किसी की एक बात ना सुनने की आदत थी रुपचंद को, परन्तु बडो की बातो का पालन भी किया कर्ता,
रुपचंद की पत्नी का नाम अहिल्या था, गुड्डे गुड़ियों से खेलने के उम्र मे सबकुछ रख खेल सा लगता, जैसे तैसे कई वर्ष बीतने के बाद अहिल्या दो बच्चों की माँ बन चुकी थी, रुपचंद अपने रंग ढंग मे इस तरह खोया था, की उसे किसी और की शुद्ध ही नहीँ थी, अहिल्या ने कम उम्र मे इतने सारे तजुर्बे कर लिए के उसे अपने जीवन से कोई खाश लगाव शेष नहीँ रहा,
जैसा की सभी जानते है, झारखण्ड मे सूखा आम बात है, पानी लाने के लिए महिलाओ को कई किलोमीटर दूर चलना पड़ता है, सभी तरह के सुख होते हुए भी रुपचंद के घर एक बाल्यावस्था से गुजर रही युवती का जीवन हर दिन मुश्किल हो रहा था, परन्तु उसकी शुद्ध लेने वाला कोई ना था,
आजकल की तरह ना तो आवागमन के अनेक साधन थे और ना ही मोबाइल और टेलीफोन, जिससे वह अपने परिवार को अपनी दशा बता सकती,
ऐसा कहा जाता है, दूसरी संतान होने के कुछ दिन बाद ही अहिल्या ने कुंवे मे डूब कर अपनी जान दे दी, वही उसके घरवालों का केहना था, की सायद कुंवे से पानी निकालते वक्त पांव फिसल गया होगा, क्युकि वे किसी भी तरह के दोष या आरोप से बचना चाहते थे,
इनसब मे रुपचंद को कुछ ज्यादा दिक्क़त नहीँ आई, क्युकि उसने कभी अहिल्या की सुद्ध लेनी जरुरी नहीँ समझता था, परिवार की परम्परा के अनुसार महिलाये वे सारे कार्य करती आई है, भले ही उम्र जो रही होंगी, यह कोई बड़ी बात नहीँ
थी,
कुछ ही महीनो के बाद रुपचंद की शादी दोबारा धूमधाम से कराई गयी, परन्तु इसबार रुपचंद की दुल्हन का रंग जरा गेहरा था, बच्चो की देखरेख की बात थी, इसलिए शादी मे ज्यादा देर करना भी शी नहीँ लगा,
रुपचंद दूसरी बहु कौशल्या के आने से खुश था......चलो उस मनहूस को और नहीँ झेलना पड़ेगा, थोड़े समय बाद सब ठीक हो गया, बच्चो ने भी माँ को अपना लिया, सभी खुश थे, परन्तु अब ना जाने रुपचंद कहा खोया खोया रहने लगा है, वह अपना दिन रात का समय बाहर ही बीताता है,
सभी आपस मे बात करते है, की कुछ दिन पहले ही तो हालात ठीक हुए थे, अपने बेटे की ख़ुशी के लिए हमने क्या नहीँ किया, परन्तु वह क्यूँ ऐसा कर रहा है, किसीको भी रुपचंद की बातें समझ नहीँ आ रही थी,
एकदिन रुपचंद का एक खाश मित्र उसके घर ना जाने का कारण पूछता है, थोड़ा संकोच करते हुए रुपचंद बताता है की अहिल्या उसे दिखाई देती है, जैसे उसे कुछ केहना हो मुझसे,
मै कौशल्या के साथ होता हु, तो वह भी मेरे आस पास होती है, जिसके कारण मै घर नहीँ जाना चाहता,
यह सिलसिला कुछ महीनो तक ऐसा ही चलता रहा, फिर रुपचंद के मित्र ने उसके घर जाकर सारी बात बताई, जिसके बाद उसके परिवार वाले एक सिद्ध पुरुष के पास गये, जिन्होंने आत्मा की मुक्ति करा दी,
रुपचंद अब पुनः घर आने जाने लगा, वह अपनी नई दुनिया मे इतना खुश था, की उसे ना तो उसका कल याद रहा ना ही अहिल्या,
20 वर्ष बीत चुके थे, रुपचंद अपने दो बेटों को ब्याह चूका था, एकदिन उसके दूसरी बहुत के मायके से कुछ परिवार वाले आये, जिनमे एक कम उम्र की लड़की भी थी, वह रुपचंद को एकटक देखती रहती, वह लड़की भी नहीँ समझ पा रही थी के आखिर वह ऐसा क्यूँ कर रही है ?
रुपचंद ज़ब भी उससे बात करने की कोशिश करता, वह उलटे पांव भाग ख़डी होती, ऐसा कई बार किया उसने, पर रुपचंद को उस बात से कोई फर्क नहीँ पड़ा, वह अपने दिनचर्या मे लीन रहता,
एक दिन वह रुपचंद के सामने ख़डी हो गयी, और कहा " क्या सच मे मै आपको याद नहीँ,
यह सुनकर रुपचंद ने कहा " कौन हो तुम? और ये सब क्या बोल रही हो?
जिसका जवाब देते हुए वह कहती है, " मैंने तो कई बार आपसे बात करने की कोशिश की थी, लेकिन आपको मेरे होने ना होने से फर्क ही नहीँ पड़ा, मेरा नाम अहिल्या है! "
रुपचंद ने जवाब दिया मै किसी अहिल्या को नहीँ जनता, तुम्हे क्या चाहिए ? क्यूँ ये सब कर रही हो?
क्या सच मे ? मै आपको परेशान करने नहीँ आई हु? नहीं मुझे कुछ चाहिए आपसे,
" सिर्फ एक मदद करदो मेरी, "
सायद आपको मेरी बात समझ ना आये, पर मेरी यह मदद आपके अलावा और कोई नहीँ कर सकता,
कैसी मदद?
मै जबसे इस घर मे आई हु, आपसे मिली हु, एक अजीब सी तकलीफ मेरे अंदर घर किये हुए है, जिसके कारण मेरा जीवन जैसे अँधेरे बादल के अंदर समा गया है,
क्या इससे बाहर आने मे आप मेरी मदद करेंगे?
रुपचंद को कुछ भी समझ नहीँ आया, वह किस बारे मे बात कर रही थी,
हलाकि अहिल्या नाम सुनकर उसके सभी परिवार वाले वहा जमा तो हो गये, पर किसी को अहिल्या की बात समझ नहीँ आई थी,
अहिल्या की बातें तो केवल रुपचंद ही समझ सकते थे, परन्तु उन्हें इन सब मे कोई दिलचस्पी नहीँ थी, लोग सही कहते है,,,,, इंसान की क़ीमत तबतक होती है जबतक वह जीवित रहता है, मर जाने के बाद ना तो वह किसी को याद रहता है, और ना ही उसकी कोई अहमियत शेष रहती है,
ना जाने ऐसी क्या बात रही होंगी जो अहिल्या वापस आ गयी, लोग यही सोच रहे थे,
रुपचंद को अहिल्या से जुडी सारी बातें याद थी, वह केवल दिखावा करते रहे, की वह उसे भूल चुके है, उन्हें भी एहसास था की गलती कहा की थी मैंने, पर आरोपों से बचने के लिए सारे उपाय लगा रहे थे,
अहिल्या भी उनकी मन की बात समझ चुकी थी, के वे अब सब भूलकर अपनी नये जीवन मे खुश है, इसलिए बिना अपने प्रश्नों के जवाब लिए वहा से चली गयी,
कुदरत का दोष देकर जीवन जीने लगी और मन मे खलल हमेशा रहि की जिस एक एहसास के लिए उसने दोबारा जन्म तो ले लिया, वह एहसास तो किसी की आँखों मे दिखा ही नहीँ,,,,,,,,
और यही सोचती रही,,,क्या इस एहसास के बाद से मेरी जिंदगी आसान होंगी या और भी मुश्किल? |
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