मन्दिर भब्य और शांत वातावरण का अनूठा मेल था, इसलिए कभी कभी निर्मल कई घंटे मन्दिर मे ही बिता दिया करता,
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इस बात पर वह हमेशा घर मे बडो से डांट भी खाता, की ना जाने ऐसी क्या कीमती चीज मिला जाती है तुम्हे वहा, जो समय का बिल्कुल पता ही नहीँ चलता, निर्मल भी अपनी आदतों से मजबूर था, हरदिन एक ही बात सुनने की उसकी भी आदत सी हो चुकी थी,
एक दिन ज़ब वह मन्दिर के बरामदे मे बैठा अपने मन की शान्ति ढूंढने मे लगा था, की सामने कुछ लोग एक भिखारी कंकर मारते हूए शोर मचाने लगे,
निर्मल बैठा सोचने लगा, बड़ी अजीब बात है, उस भिखारी को देख कर ना जाने क्यूँ लोग उसे दूर भगाने लगते है,
निर्मल उस भिखारी के नजदीक गया, उसने देखा की वह अपंग है, और उसके दोनों पैर शायद जन्मजात ही छोटे बड़े रहे होंगे, काला विकराल सा चेहरा, ऊपर से काले घुँघराईले बालो से पूरा चेहरा ढक सा जा रहा था, देखने मे बड़ा ही अजीब, निर्मल ने इतने करीब से उस भिखारी को पहले कभी नहीँ देखा था, थोड़ी देर के लिए उसे भी उस भिखारी से घृणा होने लगी,
फिर वह समझ गया की लोग उसे क्यूँ कंकड पत्थर मार कर अपने से दूर भगाते है, निर्मल उस भिखारी के पास गया, और पूछा?
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क्यूँ भाई कितने दिन से नहीँ नहाये हो?
इतनी तेज दुर्गन्ध से तो भगवान भी भाग जायेंगे,
वह भिखारी चूप चाप निर्मल की बातें सुनता रहा, फिर उसने 10 का एक नोट निकला और भिखारी को देकर वहा से निकल पड़ा,
फिर निर्मल अगली सुबह कुछ ज्यादा ही जल्दी मन्दिर आ पहुंचा, क्युकि आज उसका इंटरव्यू था,
जल्दी जल्दी भगवान को प्रणाम किया, फिर वह बाहर आकर अपने जूते ढूंढने लगा,
निर्मल ने पाया की उन जूतों मे उसके जूते नहीँ है, बड़ी अजीब बात है...... मैंने तो यही रखे थे, कहा गये, हे भगवान मै इंटरव्यू के लिए देर हो रहा हु, कृपया मेरे जूते मुझे दिला दो, तभी उसकी नजर उस भिखारी पर पड़ी जिसे उसने क़ल 10 रूपये दिए थे,
उसके एक हाथ मे एक जुता, और दूसरे जूते को वह अपने दांतो से लेकर सामने एक विराने मे भागा जा रहा था, निर्मल उसके पीछे पीछे भागता काफी दूर निकल गया, और आखिरकार उसे पकड़ लिया,
उसने उससे जूते छीने और गुस्से मे बडबड करता हुआ, भाग कर वहा से निकल गया, मन ही मन वह सोच रहा था की अगर आज मेरा इंटरव्यू ना होता तो मै उस भिखारी को बहुत पीटता, भलाई का तो ज़माना ही नहीँ रहा, मैंने उसे पैसे दिए और उसने मेरे जूते खराब कर दिए,
जैसे तैसे वह इंटरव्यू के लिए पहुंचा,
अगली सुबह वह हर दिन की तरह फिर से मन्दिर गया.... आज निर्मल भगवान को दिल से धन्यवाद देने आया था, क्युकि वह जिस कंपनी मे नौकरी करने का सपना आँखों मे लिए हूए था, वह साकार होने को था,
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उसकी नौकरी पक्की हो गयी थी, इसलिए वह मन्दिर मे अपने माता पिता के साथ सवा किलो प्रसाद का भोग चढ़ाने आया था,
उसके परिवार वाले खुश थे, मन्दिर मे पूजा अर्चना करने के बाद लौटते वक्त वही भिखारी हाथ फैलाये निर्मल के सामने था, उसे देखते ही निर्मल का पारा हाई हो गया, चल भाग कहता हुआ वह आगे बढ़ चला,
लेकिन उसके माता पिता ने उस भिखारी को एक लड्डू दिए, और निर्मल से कहने लगा, क्यूँ इस बेचारे ऱ गुस्सा होटल हो, यह तो खुद लाचार है, निर्मल बोला आप नहीँ जानते इसे.....
इधर वह भिखारी प्रसाद को ऐसे खाये जा रहा था, जैसे उसने कई साल से खाना नहीँ खाया हो, आधे प्रसाद को ज़मीन पर ही गिरा दिया, जिसपर देखते देखते चीटिया भर गयी,
निर्मल ने अपने माता पिता को दिखाया, देखिये देखिये आपलोग भी ना, आधे प्रसाद को तो उसने जमीन पर ही गिरा दिया,
निर्मल की मा ने समझाया, उसे छोड दो, चलो अब घर चलते है,
घर आकर भी निर्मल उसी भिखारी के बारे मे उल्टा सीधा बके जा रहा था, मा ने फिर समझाया क्यूँ बेटा.... क्यूँ उसके ऊपर तु इतना गुस्सा है,
निर्मल ने सारे दिन के वाकए को मा को बताते हूए कहने लगा, गुस्सा नहीँ होउ तो और क्या करू..... इसीलिए सभी उसे कंकर मारते है,
फिर वह अपने दोस्तों के पास चला गया, और रात को आते आते काफी देर हो गयी, सुबह उठते हूए काफी देर हो गयी, सपने मे निर्मल ने उसी भिखारी को देखा,
सुबह उठते ही उसका मूड खराब हो गया, किसका सपना आ गया मुझे, ना जाने आज का दिन मेरा क्या होगा?
फिर वह नहा धोकर मन्दिर पहुंचा....... जहाँ आज वह भिखारी उसे कहीं नहीँ दिखा,निर्मल खुश भी था, और अंदर से थोड़ा बेचैन भी, ना जाने कहा होगा?
अब वह पहले की तरह मन्दिर मे ज्यादा समय नहीँ बिता पाता क्युकि वह अपने काम पर जाता, और रविवार को दर्शन करके जल्द चला आता, और अपने माता पिता के साथ समय बीतता,
इस तरह कई महीने बित्त गये, कभी कबार उस भिखारी पर नजर पड़ जाती, मन मे एक बात चलती आज मै कहा से कहा पहुंच गया, और वह भिखारी आज भी लोगो से मार खा रहा है,
निर्मल हर दिन दर्शन करके अपने काम पर जाता, लेकिन अब दर्शन करने के समय मे कमी आने लगी,
अब निर्मल शादी शुदा और दो बच्चो का पिता भी बन चूका है, लेकिन अभी भी मन्दिर जाने की आदत नहीँ छुटी उसकी,
रविवार या किसी खाश दिन वह पुरे परिवार सहित मबदिर जाता और दर्शन करके वापस घर आ जाता, उसके माता पिता वृद्ध हो चुके है, इसलिए वे भी चार धाम की यात्रा करने के लिए निर्मल से इजाजत ले चुके है,
अगले महीने 15 तारीख को वह यात्रा के लिए निकल गये, इधर निर्मल को बच्चो को स्कूल लाना ले आना, साथ ही घर की अन्य जिम्मेदारियों मे वह लगातार कई दिन मन्दिर नहीँ जा सका,
उसने सोचा कोई बात नहीँ भगवान तो सब जानते है, अगले सप्ताह ज़ब मा पिताजी आ जायेंगे तो मै मन्दिर दर्शन को रोज़ जाऊंगा....
इसी भागम भाग मे अचानक उसके काम बिगड़ने लगे, पत्नी की तबियत भी अचानक बिगड गयी, माता पिता को यात्रा मे भी परेशानी उठानी पड़ी, क्युकि पहाड़ खिसखने के कारन रास्ते अचानक बंद हो गये, जिसके कारन वे भी रास्ते पर कई दिनों से अटके हूए थे, जिसके कारन उन्हें काफी परेशानी भी उठानी पड़ रही थी,
निर्मल समझ गया की मैंने भगवान के दर्शन नहीँ किये इसलिए ये सब हो रहा है, वह तुरंत सारे काम छोड़कर मन्दिर भागा, वह दोपहर का समय था, जिसके कारन मन्दिर के फाटक बंद पड़े थे, उसके दर्शन तो नहीँ हूए, पर वह बाहर आया तो उसकी नजर उसी भिखारी पर पड़ी......... वह काफी बीमार लग रहा था, और जमीन के एक कोने मे सोया पड़ा था,
वह अपनी स्थिति से पहले ही निराश था, इसलिए चूप चाप घर आ गया, उसके घर और परेशानियों मे कोई कमी नहीँ आई थी अबतक...........
वह शाम होते ही दोबारा मन्दिर दर्शन के लिए गया.........इसबार बड़े अच्छे से दर्शन हूए, आरती के बाद निर्मल प्रसाद लेकर घर की और आ ही रहा था की उसकी नजर उस भिखारी पर फिर से पड़ गयी, उसकी स्थिति काफी दयनीय थी, इसलिए निर्मल ने भिखारी की मदद करने की सोची......
निर्मल ने सोचा...... चलो और कुछ नहीँ तो थोड़ा पुण्य ही मिला जायेगा,
वह उसे पास के होटल मे लेकर गया, और भर पेट खाना खिलाया........... फिर उसके बाल कटवाने नयी के पास लेकर गया, नायी ने उसके बाल छोटे छोटे कर दिए, निर्मल ने देखा की उसे कई जगहों पर चोट लगी थी, तो उसकी मलहम पट्टी करवाई, और दवा खिलाई,
इसके बाद निर्मल उसके लिए दो जोड़े नये कपडे लेकर आया...... और सामने नहलवा कर उसे साफ कपड़े पहनाने लगा,,,,,,,,
भिखारी ने उसके हाथ झटक दिए और अपने पुराने कपड़ो मे कुछ ढूंढने लगा, कुछ देर ढूंढने के बाद वह एक सोने की बड़ी मोती चैन और लॉकेट वाला हार निकाल कर झट से गले मे पहन लिया,
निर्मल ने उसके हार को देखा और गुस्से से उससे छीनने लगा, उसने सोचा की जैसे यह मेरे जूते चुरा कर ले जा रहा था, उसी तरह इसने ना जाने किसका हार चुरा लिया है, वह उस हार को अपने पास रखना चाह रहा था, ताकि उसे उसके असली मालिक को दे सके, लेकिन भिखारी ने उसे वह हार नहीँ दिया, और आधे नंगे बदन के साथ इधर उधर भागने लगा,निर्मल भी एक हाथ मे उसके कोड़े लिए उसके पीछे भागने लगा,
भागते भागते वह उसी मन्दिर के सामने विराने से बने खंडर के अंदर चला गया, निर्मल भी उसके पीछे पीछे भागता वही पहुंच गया...... अंततः उसने उसे पकड़ ही लिया और उसके गले मे पड़े चैन को हाथो से खींचने लगा, लेकिन वह ऐसा ना कर सका, वहा अंधेरा फैला था, इसलिए उसे यह समझने मे देर लग गया की जिसके गले से वह हार खींचे जा रहा है वह एक मूर्ति है,
मूर्ति भी ऐसी की उसे हिला पाना अच्छे अच्छो के बस की बात नहीँ,
वह मूर्ति के एहसास से एकाएक डर गया..... और चिल्लाता वहा से निकल गया,
अगली सुबह होते ही कई अन्य लोगो के साथ उस विराने जगह पर पहुंचा...... जहाँ शाम के समय उसके साथ वह घटना हुई थी,
उसने पाया की उस विराने के अंदर एक पुरानी छोटी सि मन्दिर है, जहाँ बिल्कुल हूबहू वैसी ही मूर्ति स्थापित है, सिर्फ रंग का अंतर था,और गले मे वही माला पड़ी थी, जो वह क़ल छीनने की कोशिश कर रहा था, उसके दिमाग़ मे कुछ भी समझ नहीँ आ रहा था, की यह मेरे साथ क्या हो रहा है, शायद उस भिखारी ने मेरे भय से यह हार यहां छुपा दिया हो, लेकिन वह तो सीधे पैर खड़ा भी नहीँ हो सकता, और मूर्ति तो काफी ऊँची है,
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निर्मल ने उस जगह के बारे मे पता किया तो, पता चला यह पहले मन्दिर था, लेकिन यहां से कई प्रकार की आवाजे आया करती थी, जैसे कोई साक्षात् यहां वास कर रहा हो, जिसे आजके जमाने मे स्वीकार करना नामुमकिन है, अंत मे कुछ बाहुबली लोगो ने इस जगह को भूतिया बताकर मन्दिर को हमेशा के लिए बंद करवा दिया,
निर्मल के मन मे मूर्ति और हार के लिए प्रश्न उठ रहे थे,
तो उसे मन्दिर प्रबंधक ने बताया की यह हार भगवान के किसी विशेष भक्त ने चढ़ावे के रूप मे चढ़ाया था, जो तब से उनके गले मे ही पड़ा है,
निर्मल अब उस भिखारी की तलाश करने लगा...
और वह भिखारी ठीक अपने स्थान पर उसे बैठा मिला, सारी बातें जानने के बाद वह धीरे धीरे छोटे कदमो से भिखारी की तरफ बढ़ने लगा.... उसे उस पहले दिन से सारी घटनाये दिमाग़ मे घूमने लगे, जो जो उसके साथ बीते थे,
उसने महसूस किया की इस भिखारी के मिलने से पहले मेरे पास कुछ भी नहीँ था, और जो भी था मै उनसे कभी संतुष्ट नहीँ हुआ,
जिसदिन से मै इससे मिला मेरे अंदर कई बदलाव आये, आज मेरे पास वह सब कुछ है जिसकी मै कभी कामना किया करता था,
उसकी आंखे धीरे धीरे नम होने लगी, मै मन्दिर भगवान के दर्शन करने के लिए आता था, तो क्या मैंने उनके दर्शन सच मे कर लिए थे, या ये सब सिर्फ मेरे मन मे उठ रही बेकार की बातें है,
फिर वह उस भिखारी के पास पहुंचा और कहने लगा....... वह भगवानजी आप संसार को सब कुछ देने का सामर्थ्य रखते हूए भी, इस तरह इस रूप मे यहां क्यूँ बैठे है, पहली बार उस भिखारी ने भारी आवाज मे कहा....... लोगो की असल भावनाएं तो मुझे ऐसे ही प्राप्त होती है, उनकी आँखों को गौर से देखा तो जैसे प्रकाश के दो पुंज हो,
इसके बाद ना जाने उन्होंने ऐसा क्या किया..... की निर्मल पुनः अपने उलझनों मे गुम हुआ घर के लिए निकल गया,
घर जाकर उसके सारे बिगड़े काम बन गये, और अगले दिन उसका प्रमोशन भी हो गया,
वह हर दिन मन्दिर आता, उस भिखारी को दान देता और खाना भी खिलता, मन मे एक बातें चलती ही रहती, वे चाहते तो किसी महल मे अपने जीवन को आराम से गुजार सकते थे, पर उनकी आस तो हम जैसे भक्तो से पुरी होती है,
भगवान तो बस मोह से ही बंध जाते है, धन दौलत तो इंसानों को बांधते है |
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