संध्या को हर रोज़ सपने में आने वाले भविष्य के अक्श दीखते हैँ, जो कभी कभी हूबहू सच हो जाते हैँ, आज की कहानी उसी सच पर आधारित हैँ की कैसे संध्या ने 15 घंटे पहले होने वाली घटना की छवि देख ली,
कहानी
रोज़ की तरह संध्या की आँखे खुलते ही सारे मंजर ताज़ा हो गये........
थकावट ऐसी जैसे रात भर किसी सड़क किनारे चलती रही,
आँखों को थोड़ा आराम देते हुए, पानी के छींटे अचानक याद आया.....................
जाने मै कहा चली गयी थी, आँखों के पास दौड़ती ओ सफ़ेद ट्रेन.... पहले तों कभी नहीँ देखी,
देखने से वह बाकी…
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