ये कहानी डरावनी जरूर है लेकिन इस कहानी का समाज मे चल रहीं वास्तविक घटनाओ से गहरा नाता है,
कई वर्ष बीत गये, इस घटना को लेकिन याद करती हु तो लगता है कितना ख़ौफ़नाक मंजर था,
मै गर्मी की छुट्टियों मे अक्सर अपने ननिहाल जाया करती थी, वहां और भी बच्चे थे जिनके साथ दिन भर खेलना, और मनोरंजन की चीजों के साथ मस्ती करना हमारा तय था,
मेरे नन्हीहाल मे उस समय गैस नहीँ थी, और ज्यादातर घरों मे चूल्हे थे, जो शाम होटल हीं जल उठते और उसका धुंवा ढूंढ़ की तरह दिन और रात तक बादल बनकर ठहरे हूए यहाँ से वह…
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