Abhyas ka fal : अभ्यास का फल

Abhyas ka fal : अभ्यास का फल :

पुराने समय की बात है, पहले के समय मे आज की तरह जगह जगह स्कूल नहीं हुआ करते थे, उस समय गुरुकुल चला करते थे, जहा सभी शिक्षक गुरुजन कहलाते,,, गुरुकुल मे एक विधार्थी था, जो सबमे अलग था, उसमे समझ कम होने के कारण सब उसे मंदबुद्धि कहते थे,,,,,,,, " उसके गुरुजन भी उससे नाराज रहते थे क्योंकि वह पढने में बहुत कमजोर था ",, और उसकी बुद्धि का स्तर औसत से भी कम था।

कक्षा में उसका प्रदर्शन हमेशा ही खराब रहता, बहुत कोशिश करने पर भी उसे अध्याय याद नहीं नहीं ही पाते । जिसके कारण बाकि बच्चे उसका मजाक उड़ाने से कभी नहीं चूकते,,,  पढने जाना तो मानो एक सजा के समान हो गया था , वह जैसे ही कक्षा में घुसता और बच्चे उस पर हंसने लगते , 

कोई उसे महामूर्ख तो कोई उसे बैलों का राजा कहता , यहाँ तक की कुछ अध्यापक भी उसका मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते । इन सबसे परेशान होकर उसने स्कूल जाना ही छोड़ दिया ।

हताश परेशान अब वह दिन भर इधर-उधर भटकता और अपना समय बर्वाद करता रहता । एक दिन इसी तरह कहीं से जा रहा था , घूमते – घूमते उसे जोर की प्यास लग गयी । वह इधर-उधर पानी खोजने लगा। अंत में उसे एक कुआं दिखाई दिया। वह वहां गया और कुएं से पानी खींच कर अपनी प्यास बुझाई। अब वह काफी थक चुका था, इसलिए पानी पीने के बाद वहीं बैठ गया। तभी उसकी नज़र पत्थर पर पड़े उस निशान पर गई जिस पर बार-बार कुएं से पानी खींचने की वजह से रस्सी का निशाँ बन गया था । 

यह देखकर वह मन ही मन सोचने लगा कि जब बार-बार पानी खींचने से इतने कठोर पत्थर पर भी रस्सी का निशान पड़ सकता है तो लगातार मेहनत करने से मुझे भी विद्या आ सकती है। उसने यह बात मन में बैठा ली और फिर से विद्यालय जाना शुरू कर दिया। कुछ दिन तक लोग उसी तरह उसका मजाक उड़ाते रहे पर धीरे-धीरे उसकी लगन देखकर अध्यापकों ने भी उसे सहयोग करना शुरू कर दिया । 
उसने मन लगाकर अथक परिश्रम कि,, और अध्यायों को बार बार तेज स्वर मे पड़ता जाता, धीरे धीरे उसे अध्याय स्मरण होने लगे, उसने ऐसा करना जारी रखा जिससे  कुछ सालों बाद यही विद्यार्थी प्रकांड विद्वान वरदराज के रूप में विख्यात हुआ, जिसने संस्कृत में मुग्धबोध और लघुसिद्धांत कौमुदी जैसे ग्रंथों की रचना की। “

इस कहानी से यहीं निष्कर्ष निकलता है की जीवन मे प्रयास किये बिना हार मान लेने से हमें कुछ भी हाशिल नहीं होता, निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए, तभी हमें सफलता मिलेगी ,,, "जब एक रस्सी पत्थर पर भी अपना निशान बना सकती है तो इस जगत मे कुछ भी असम्भव नहीं है "|

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