आसमानी आफत

आसमानी आफत 

उथल पुथल का मोहॉल था, सभी इधर उधर शरण लेते नजर आ रहे थे,
एक तो ये महामारी, ऊपर से असामानी आफत......

ये कहते हुए संध्या अपने परिवार के साथ किसी दूसरी जगह शरण लेने निकल पड़ी,

पुरे शहर मे पानी के जमाव से लोग परेशान थे, संध्या का पूरा परिवार जो की एक शानदार हवेली मे रहने के आदि थे,

सभी अपनी जरूरत का समान लेकर शहर से दूर अपने पुराने फार्म हाउस के तरफ बधाई रहे थे, रास्ते मे भारी बारिश के कारण उन्हें काफी दिक्क़त हो रही थी,

थोड़ी दूर आगे जाने के बाद शहर के सबसे प्रमुख नदी से होकर गुजरती पुल के किनारो का मंजर भयानक था,

उस पल पर पहुंचते ही गाड़ी में बैठे सभी लोगो की सांसे थम गयी।  
सामने बह रही नदी में जैसे बाढ़ आ गयी हो , पुल की उचाई अधिक होने के बावजूद जल का स्तर पल से बस थोड़ी दूर हीं थी,

थोड़ा गौर से देखने पर एहसास हुआ की पुल पर अफरा तफरी मे एक पीली गाड़ी नदी मे जा गिरी है,

जान तो लगभग सबके फसे है इसलिए किसी ने भी उस गाड़ी पर गौर नहीँ किया,

पुल पार करके संध्या और उसका परिवार जैसे तैसे अपने फार्म हाउस पहुँचे,
वहा का नजारा देखने लायक था, नदी सागर मे जलजले के कारण कहीं कहीं जमीनी भूकंप भी आये थे,

जिसकारण संध्या के फार्म हाउस के दीवारों पर बड़ी बड़ी दरारे थी, यहां तक की उनका मुख्य दरवाजा भी अपनी जगह से हट चूका था, जिसकारण  दूर दराज के मुसाफिरो ने वहां शरण ले रखी थी,

अपने फार्म हाउस पहुंचकर संध्या के माता पिता भाई बहन सुकून ले रहे थे, और यह भी केह रहे थे ना जाने ईश्वर इतना क्रोधित क्यूँ है हम इंसानों पर,

एक के बाद एक मुसीबते बस आते हीं जा रहे है, हमलोगो ने तो यहाँ आकर अपनी जान बचा लि, परन्तु उनका क्या होगा जो उस जलजले मे फसे हुए थे !!!!!

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