पाब्लो पिकासो का नाम कौन नहीं जनता, इन जैसा चित्रकार इस विश्व मे दूसरा न था ना होगा, कहा जाता है ये अपने हाथो मे रंग, ब्रश और तूलिका लिए पैदा हुए थे क्युकी बहुत छोटी उम्र से ही चित्रकारी मे बड़े बड़े चित्रकारों को पीछे छोड आये ।
पिकासो द्वारा बनाये चित्र ने चित्रकारी के प्रति लोगो के नजरिये मे नया बदलाव लाया। इनके चित्रकारी का लोहा पूरा विश्व मानता है, हर चित्र एक रहस्य अपने आप मे समय है, पिकासो के संघर्ष की कहानी आम नहीं,,, ये कहानी है इस महान कलाकार के जन्म से सुरु होती है....
पाब्लो पिकासो का जन्म 25 अक्टूबर 1881 मे स्पेन के मालगा नाम के शहर मे हुआ था, बचपन से ही काफी बुद्धिमान थे, दुनिया के प्रति देखने का नज़रिया काफी निराली थी,, अपने दोस्तों के साथ चित्रकारी करने बैठते तो इनकी चित्रकारी उनके दिलो मे घर कर लेती,,,
इनकी नजर काफी बारीक़ चीजों को साफ देख लेती थी, जिसे अपने कैनवास से हूबहू उतारना उनकी ख़ास कला रही,, "बेहतरीन चित्रकारी से ओ अपने दोस्तों, भाई और पिता और बाकि लोगो को अचरज मे डाल देते थे"।
प्रारभिक शिक्षा पिता से ही मिली, जब वे, चौदह पंद्रह साल के थे, तभी से वाह लाजवाब चित्र बनाने लगे,,, उनके पिता ने उन्हें चित्रकारी का सारा सामान देते हुए उनसे किसी और काम को ना करने का संकल्प दिलवाया, ।
1900 मे वाह अपने एक साथी के साथ अपनी कला को पहचान देने पेरिस गए, क्युकी पेरिस मे कला को सम्मान मिलता था, इसलिए उन्होंने अपने मंजिल की तरफ एक नया कदम रखा,,
"वहा जाकर उनका बड़ा बाद चित्रकारों से मिलना हुआ, जिनसे उनके हुनर मे और ज्यादा गहराई आयी ।
अब वाह काफी स्वतंत्र होकर चित्रकारी करने लगे, उनके चित्रकारी मे अब सहिष्णुता का भाव, दया, अत्याचार से जुडी झलकियां साफ उभरने लगी, शोषित वर्ग के प्रति अपनी करुणा को चित्रकारी के माध्यम से पेश करने लगे, जिसे देख लोगो का ह्रदय द्रवित हो उठता,,
उनकी कलाकारी देख उन्हें अपनी प्रतिभा और निखारने हेतु मेड्रिड अकादमी भेजा गया, जहा ओ काफी जल्दी ही उब गए, और अपनी पढ़ाई अधुरी छोड दी, ।
1904 मे एक नये पड़ाव की सुरुवात हुई, जहा उन्होंने संगीतकार, कलाबाजों मशखरो की चित्रकारी की, जिसके बाद एविग्नान की महिलाओ के चित्र बनानी सुरु की जो एक वर्ष मे पुरे हुए,,, ।
चित्र कला के छेत्र मे उन्होंने घनवाद का प्रदर्शन किया, जो सभी के लिए नया था, इसके बाद इसकी चर्चा 60 -65 वर्षो तक चला, इसके बाद नये नये कलाकारों के साथ अनेक कला कीर्त्यो की रचना की ।
उन्होंने इंग्रेस की कलाकृतियों में रुचि ली और महिलाओं के अनेक चित्र बनाए। इन चित्रों की तुलना प्राचीन यूनानी मूर्तियों से की जाती है। पिकासो किसी रूप में अत्याचार और अन्याय को स्वीकार नहीं कर सकते थे।
1957 में जब नाजी बमवर्षकों ने स्पेन की रिपब्लिकन फौजों पर बमबारी की, तो उन्होंने नाजी हमलावरों के विरुद्ध अपना रोष जताने के लिए दिन-रात मेहनत कर विशालकाय चित्र ‘गुएर्निका’ बनाया। इसके बाद उन्होंने स्वेच्छा से देश निकाला स्वीकार किया। उन्होंने कसम खाई कि जब तक स्पेन में फिर से रिपब्लिक की स्थापना नहीं हो जाती, वह स्पेन नहीं लौटेंगे।
शादीशुदा जीवन उतनी अच्छी नहीं रही, लोगो का कहना है की उनके पर्सनल लाइफ की बात की जायेगा तो उनके आधा दर्जन पत्नियों ने आत्महत्या कर लिए है । " इसका कारण तो किसी को पता नहीं,, इसके बाद भी उन्होंने अपने कर्रिएर पर पर्सनल लाइफ की छाया पड़ने नहीं दी,, और अंततः 8अप्रैल 1973 को उन्होंने दुनिया को अलबिदा कह दिया । उनके चले जाने के बाद भी उनकी जल कीरतियो ने उन्हें अमर बना दिया ।
फिर भी, आज भी पालबो पिकासो एक चाहते चित्रकार की तरह हमारे बिच होने चित्रकारों के बदौलत आज भी जिन्दा है ।
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