ये कहानी एक ऐसे बच्चे की है जो अनजाने मे किसो बड़ी शक्ति से दुश्मनी मोल ले लेता है,
कभी कभी हम ऐसा कुछ कर जाते है जो सायद नहीँ करना ही ठीक होता है, संसार मे कई ऐसी शक्तिया विद्द्मान है जो इसका संचालन करती है,ये अच्छी भी होती है औऱ बुरी भी,
कहानी
रामानुज महज 12 साल का एक बालक है,जो अपनी माँ के साथ एक गाँव से आखिरी छोऱ पर रहता था,,, ठीक वही जँहा सफ़ेद संगमरमर से एक मजार का निर्माण किया जा रहा था...
उससे कुछ ही दूरी पर रानुज का घर था, इसलिए रामानुज वही आस पास ही खेला कर्ता था, एक बार ज़ब वह होने दोस्तों के साथ खेलरहा था तों बाल अंदर चला गया,
जिसे बाकियो ने लाने से इंकार कर दिया.....मगर रामानुज की बाल होने के कारन उसने लाने की सोची, औऱ किसी तरह वह वहां से बाल ले आया,,,,बाल लाने के बाद वह अपने घर के अंदर चला गया,,,,पर वह अब पहले की तरह सामान्य नहीँ था,
वह हर पल काँपता रहता,,,,,खामोश रहने लगा, जाने क्यूँ कई बार नहा लेता, रामानुज की माँ को अपने बच्चे का ब्यवहार कुछ अलग लग रहा था....उसने कई बार इस बारे मे बात करने की कोशिश की पर वह खामोश ही रहा, रात को अचानक चीखते हुए उठ जाता,
बाकी घरवालों ने रामानुज की माँ को हिदायत दी की बच्चे है जंहा तन्हा जाते रहते है,,, थोड़ी झाड फुक करा आ,सब ठीक हो जाएगा,
रामानुज की माँ वही पास के एक फकीर के पास पहुंची...... उसने बच्चे से बहोत सारी बातें की, औऱ बातो ही बातो मे बच्चे के अंदर के रहस्य को जान लिया.......
फ़क़ीर बाबाजी ने रामानुज की माँ से कहा....बच्चे ने ऐसा कुछ देख लिया है जो उसे देखना नहीँ चाहिए था, इसलिए वह ड़र गया है, वैसे मैंने झाड फुक कर दी है, बस तुम अपने बच्चे से सारी बातें जानकर उसके सवालों को सुलझा देना,,
वह सब भूल जाएगा,औऱ उसके अंदर का डरर भी निकल जाएगा,
घर आते ही रामानुज ने फिर से दो बाल्टी पानी खुद पर उढ़ेल लिया,,,,, जाने ऐसी क्या बात है?......जो रामानुज ने उस फ़क़ीर को यों बता दी पर मुझे नहीँ बता रहा,ऐसा सोच उसकी माँ ने उससे बात करना चाहा, पर रामानुज ना जाने कहा खोया रहता,
रात को रामानुज सोने की बहुत कोशिश कर रहा था,पर उसे नींद नहीँ आ रही थी....तब वह अचानक उठ बैठा औऱ माँ से बोल पड़ा....माँ पिताजी कहा गये?
माँ ने कहा तुम्हारे आसमान मे तारा बन गये है, रात को वो टिमटीमाते हुए तुम उन्हें देख सकते हो?, माँ तों पिताजी उस मन्दिर मे नहीँ है....कौन सि मन्दिर मे,
वही जो हमारे मैदान के पास है, रामानुज की ये बातें सुनकर मा को फ़क़ीर की बातें याद आ गयी, वह रामानुज के सवालों मे अपने जवकब तलाशने लगी,
रामानुज तुम खेलने गये थे या फिर कही औऱ? उसने बड़ी मासूमियत से बताया नहीँ माँ मै तों बाल से खेल रहा था,मगर वह बाल उस जगह चली गयी, अंदर गया तों सफ़ेद मार्बल के फर्श के बिस्तर पर कोई सोया हुआ था,,,,,औऱ लग रहा था जैसे उसने कई सप्ताह से नहाया नहीँ,
मैने सोचा की कहीं वह आदमी उठ गया तों मुझे बॉल भी नहीँ देगा,,,,, मै भागता भागता घर आ गया, लेकिन देखो मेरे अंदर भी दुर्गध आ गयी, जिससे मै बहुत परेशान हु,
इतनी बार नहाया पर जाता ही नहीँ, रात को सोता हु तों लगता है कोई मेरे तरफ बढ़ रहा है,,,, ठीक वैसा ही आदमी जैसा वहां सों रहा था,
पिताजी की बहुत याद आ रही है माँ,,,,,,, इतना केह कर रामानुज रोने लगा,,, माँ को सब कुछ समझ गया था,
इसके अगले दिन रामानुज की माँ उसी फ़क़ीर से मिलने पहुंची...... औऱ सारी बात उनसे कही....
फ़क़ीर बोले की मुझे उसने पहले ही बता दिया था....पर मै चाहता था की वो खुद तुमसे सारी बात कहे ताकि उसके अंदर का डरर बाहर आ सके
रामानुज की माँ बोली,,,,अब क्या करे बाबाजी,
फ़क़ीर बाबा बोले की वह गया नहीँ है,वो उसके इर्द गिर्द ही रह रहा है, रामानुज की माँ डरर गयी,
बाबा बोले.......डरने से कुछ नहीँ होगा,,,,,,, उसने वहां की शान्ति भंग की थी,इसी कारन से अब वह उसे परेशान कर रहा है,
"कोई उपाय बाबाजी " रामानुज की माँ
तुम्हे अगले बारिश तक रामानुज को अपने घर मे कैद रखना, रामानुज की माँ को बात कुछ समझन्ही आई,
भला बारिश से इन सबका क्या लेना देना,,,,,,,
फ़क़ीर बाबा बोले....देखो मै तुम्हे जैसा कहता हु,वैसा ही करो औऱ डरना मत,
क्युकि ज़ब तक हम कुछ नहीँ जानते तब तक बड़ी से बड़ी बात भी सामान्य लगती है, औऱ कुछ जान लेने के बाद हवा चलने पत्ते हिलने पर भी हम कुछ औऱ बात समझ लेते है,
बाबा ने अच्छी तरह रामानुज की माँ को सब समझा दिया, औऱ एक गुलाब जल की मंत्रो से पढ़ी हुई शीशी दी,जिसका आधा पानी उस कमरे मे छीड़कना था जिसमे रामनुज अगली बारिश तक रहने वाला था, औऱ आधी शीशी बारिश के दिन पानी से भरे बाल्टी मे डालकर स्नान करवाना था,
रामानुज की माँ सारी बातें समझ गयी........ लेकिन अब सब जानकर थोड़ा डरर उसे भी लगने लगा, पर मन मे बार बार बाबा की बातें याद करने लगी की जान लेने के बाद सामान्य घटनाये भी रहस्य मयी दिखने लगती है,
इसी को मन मे रखकर वह सारी बातें नजर अंदाज करती चली गयी, जबकि वह आत्मा सच मे अपना वह खेल खेल रही थी, उसका मकसद रामानुज को उस कमरे से बाहर निकालना था, जिसके लिए लगातार कई दिन तक जोर जोर से हवाएं चली, जिसके कारन आस पास के कई छोटे बड़े पेड गिर चुके थे,
पर रामानुज की माँ ने रामानुज को उस कमरे से बाहर जाने नहीँ दिया, औऱ सब कुछ एक सामान्य घटना ही लग रही थी,
इसके करीब दो दिन बाद ही आसमान मे काले बादल छा गये,,,अब सायद बारिश के बाद मै अपने बच्चे को बाहर निकाल सकूंगी, ऐसा मन मे लिए रामानुज के कमरे मे माँ खाना दे आई,रामानुज कमरे मे रहते हुए उब चूका था, औऱ हर दिन बाहर जाने की जिद्द कर्ता,
देखते ही देखते वह बारिश सुरु हो चुकी थी,यह बारिश शिलाब्रिष्टि के साथ हो रही थी,इसलिए बारिश मे खड़ा होना मुश्किल था, देखते देखते घर के सामने औऱ पीछे बारिश ने नदिया बना दी थी,
औऱ लगातार बारिश हुई ही जा रही थी,,,,,,,,,
बाबा के कहे अनुसार रामानुज को उस शीशी के जल को मिश्रीत कर स्नान करवाना था,
जैसे ही रामानुज की माँ ने रामानुज को बाहर निकाल कर शीशी के जल को मिश्रित किया,,,,,,,,,,रामानुज को वह आत्मा सामने आता दिखा ,,,,उसी तरह के कपड़े पहने वह रामनुज के तरफ चला आ रहा था,,, मकसद रामानुज ही था,
रामानुज उसे देख फिर चीखने चिल्लाने लगा,,,तबतक माँ ने उसे स्नान करवाना चालू करदिया, औऱ जैसे जैसे बाल्टी का पानी खत्म हो रहा था,, वह आत्मा उस पानी मे समाता हुआ गायब हो गया,,,,,,
स्नान करते ही बारिश भी थमा गयी, औऱ आसमान की तरह रामानुज के अंदर का ब्य भी साफ हो चूका था,
जिसके बाद रामानुज पुरी तरह से स्वस्थ औऱ कुशल हो गया,
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