भूतिया महुआ का पेड़

भूतिया महुआ का पेड़ 


एक गाँव मे बेहद गरीब परिवार रहता था, जिनके पास ना तो पैसा था, ना ही एक वक्त का खाना, दुसरो के दिए हुए कपडे पहनकर गुजारा होता था, पति सतीश और पत्नी सीता का परिवार अपने पांच छोटे छोटे बच्चों के साथ गाँव के बीचोबीच रहते थे, गाँव मे कोई काम ना मील पाने के कारण सतीश शहर चला गया, 

और बच्चों की सारी जिम्मेदारी पत्नी सीता के हाथ मे आ गयी थी, वाह तो भूख बर्दास्त कर लेती , पर बच्चों से नही हो पाता, 
इसलिए आस पड़ोस से बच्चों के लिए माँ खाना जुटा कर लाती, और उन्हें खिलाती, 

एक दिन एक बुजुर्ग से सीता ने सुना के जंगल मे कई महुवा के पेड़ है, जिनके बीज चुनकर बेचने से अच्छे खासे पैसे मील जाते है, लेकिन वो बीज केवल रात्रि के 4 बजे तक ही गिरते थे, और उन्हें भी चुनने के लिए गाँव से कई लोग जाया करते थे, महुवा के बीज से आयुर्वेदिक उपचार होते है, साथ ही साथ इससे शराब भी बनाया जाता है, इसलिए इसकी अच्छी क़ीमत मिल जाती थी, 

सीता ने पास मे रह रही दूर की रिश्तेदार के साथ सुबह ही वहा जाने का फैशला कर लिया, जैसे ही वाह पेड़ के पास पहुंची, वहा पहले से कई लोग मौजूद थे जो सारे बीज पहले ही चुन चुके थे, सीता के हाथ कुछ ना लगा, खाली हाथ लौटने का सीता का काफी पछतावा हुआ, अगले दिन सीता ने और पहले जाने का निर्णय कर लिया, 

और अगली सुबह वाह बिल्कुल समय पर पहुंची थी, इसलिए सारे बीज उसने इकठे कर लिए, और बाजार मे जाकर बेचा, जिसके सीता को ठीकठाक पैसे मीले, उस पैसो से सीता ने घर का राशन ख़रीदा, घर आकर सीता ने सभी बच्चों को भर पेट खाना खिलाया, इसीतरह लगातार एक महीने तक सीता सबसे पहले पहुंचकर गिरे सारे बीज चुन लेती, जिससे उसके पास अच्छे पैसे जमा हो गये, 

पर वो कहते है ना, अत्यधिक लालच महँगा पड़ता है, सीता के साथ भी यहीं हुआ, एकदिन सीता ने सोचा की, आज मै अकेले अपने बेटे के साथ जाउंगी, जिससे मुझे किसी को कोई हिस्सा देना भी नही पड़ेगा, पिछले दिन से पहले जाऊंगी, जिससे बाकि पेड़ो के भी बीज मेरे ही हो जायेंगे, और मुझे उन बीजो को बेचकर ज्यादा पैसे मिलेंगे, पैसे की मोह मे सीता रात भर ना सो सकी, और आधी रात को ही अपने बेटे को लेकर जंगल के लिए निकल गयी, 

गाँव के आखिरी छोर पर स्कुल के मास्टर का घर था, पर सभी अपने घर मे सोये थे, इसलिए किसी की नजर भी शांति पर नही पड़ी, 

जंगल पहुंचकर कर देखा तो एक बड़ा सा झुण्ड पेड़ के निचे बैठे हुए था, ये देख सीता हक्की बक्की रह गयी, आज मै इतनी जल्दी आयी फ़िरभी, ये लोग पेड़ के पास पहुँचे हुए है, ऊपर से आज लोग भी और दिन से कहीं ज्यादा है, मुझे तो आज कुछ भी हाथ नही लगने जा रहा, 

फिर सीता अपने बेटे को सूखे पत्ते लाने को कहती है, ओर सीता महुआ चुनने लग जाती है, अंधेरा ज्यादा होने के कारण जैसे तैसे सीता थोड़े सूखे पत्तों मे आग जलाती है, आग जलाता देख सामने से लोग सीता की ओर  बढ़ने लगे, सीता भी सोच रही थी, ये लोग अगर महुआ चुनने आये है, तो चुनते क्यूँ नही, सारे क सारे खड़े क्यूँ है, 

आग की रौशनी पाते ही सारे लोग सीता के सामने पलक झपकते ही पेड़ की टहनियों पर जा बैठे, सीता को हैरानी हुई, ऐसा कैसे हो सकता है, सीता उन्हें ध्यान से देखने लगी, सीता ने देखा की निचे जो लोग बाकि बचे थे, उनकी लम्बाई कभी बढ़ जा रही थी, कभी घट्ट जा रही थी, थोड़ी देर सोचने के बाद सीता को एहसास हुआ के ये सभी लोग मामूली इंसान नही है, और अपने बेटे का हाथ पकड़ कर गाँव की और दौड़ लगाई, 

भागते भागते, जंगल के आखिरी मुहाने पर आकर ही सांस लिया, वही स्कुल के मास्टर का घर था, जो सीता के बेटे को पढ़ाते थे, उन्होंने पूछा आप इतनी रात को जंगल की तरफ से क्यूँ आ रही है, तो सीता ने सारा मामला मास्टर जी को बताया, मास्टर जी ने घड़ी दिखाते हुए कहा रात के दो बजे जंगल मे कौन होगा, सीता के हाथ पैर ठन्डे हो गये, आते वक्त घड़ी देखना भी जरुरी नही समझा था सीता ने , जिसकारण जंगल मे प्रेतों के बिच अपने बेटों के साथ फस गयी, 

सीता ने अपने कान पकडे, अब कभी ज्यादा की लालच नही करूँगी, समय से सबके साथ ही आउंगी |


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