मन की शांति (एक मार्मिक कहानी )
अचानक से हुए इस हादसे ने उसे अंदर तक झंझोर कर रख दिया, स्नेहा अपने मन की शांति खो चुकी थी, लेकिन परीवार के सामने अपने टूटे दिल को नजरअंदाज करते करते अब वाह काफी मजबूत हो चुकी थी, रोहन के प्रति उसके मन मे जन्मा प्यार समय से पहले मर्र चूका था, उसके पिता की इस हालात का जिम्मेवार भी सिर्फ रोहन था, इसलिए स्नेहा को अब रोहन घृणा थी |
काफी मुश्किल हुई, पर अब उसका परिवार उस दुख से उबर चूका था, और स्नेहा की शादी के लिए फिर से बात छेड़ी गयी, जहा स्नेहा ने साफ मना कर दिया, उसने अब अपनी पढ़ाई जारी रखने की जिद्द की, परिवार वाले मान गये, क्युकि उन्हें भी एहसास था की स्नेहा के जख्म अभी भरे नहीं है |
4 सालो के बाद स्नेहा अब कॉलेज की प्रोफेसर बन चुकी है, और नये वातावरण मे उसकी जिंदगी बिलकुल बदल चुकी है |
एकदिन वाह अपने खाश मित्र के कहने पर एक समारोह मे शामिल होती है, जहा उसे रोहन मिलता है, वाह अपनी पत्नी को लेकर आया हुआ था, उसे देखकर स्नेहा को पहला ख्याल आया की सबके सामने उसकी इतनी बेज्जती करे की वाह कभी भूल ना पाए, फिर थोड़ी देर तक अपने मन को शांत करते हुए, बिलकुल नरम मिजाज के साथ उसने रोहन के पूछे प्रश्नो को उत्तर दिया, रोहन समझ नहीं पा रहा था, इतना गलत करने के बाद भी स्नेहा ने मुझसे इतने प्यार से कैसे बात किया, यहीं बात उसे स्नेहा के प्रति आकर्षित करती रही |
बातो ही बातो मे स्नेहा ने उसे अपने घर चलने का निमंत्रण दिया, जो बस थोड़ी सि दूरी पर था, जाने क्यूँ स्नेहा की बात रोहन टाल ना सका, बातो ही बातो मे उसने स्नेहा के परिवार वालो के बारे मे पूछा, स्नेहा ने भी बड़ी चालाकी से उसकी गलती का एहसास करवाया, और कहा की, आप अपनी जगह सही थे, सायद मै ही लायक नहीं थी आपके, इसके बाद उसने अपने मन की उस अवस्था से भी रोहन को परिचय कराया, जो सिर्फ वही समझ सकती है जिसकी शादी होते होते टूट जाती है |
रोहन मन ही मन मे अपराधी सा महसूस कर रहा था, घर पहुंचकर स्नेहा रोहन को देखकर सभी चौक जाते है, रोहन के प्रति सबकी निगाहेँ गुस्से से भरी होती, ज़ब वाह अपने पिता के पास रोहन को ले जाती है, बगैर एक शब्द कहे उसके पिता अपना मुँह घुमा लेते है, स्नेहा की बातो से रोहन का मन पसीज सा जाता है, और अपने किये पर समिंदा होते हुए स्नेहा के पिता से माफ़ी मांगता है.........................
इतने सालो से अपने अंदर की पीड़ा बगैर बताये, बगैर जताये स्नेहा बस जिए जा रही थी, क्यू उसे खुद नहीं पता था, पर इस दृश्य ने उसकी वेदना को एक पल मे सांत कर दिया, अब स्नेहा को रोहन से कोई शिकायत नहीं था, स्नेहा जो चाहती थी, रोहन ने वही किया, स्नेहा की मन की शांति लौट चुकी थी |
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