मन की शांति (एक मार्मिक कहानी )
आज स्नेहा का घर खुशियों से भर गया, एकतरफ उसकी शादी पक्की हो गयी, तो दूसरी स्नेहा एक प्यारे से बच्चे की बुवा भी बन गयी, घर मे सभी ख़ुशी से झूम रहे थे, एकसाथ दो ख़ुशीया आयी थी घर मे, बस अगले महीने ही स्नेहा की रोहन से सगाई होंगी, और 10 दिनों के बाद शादी |
आज से सिर्फ 15 दिन बचे है सगाई को, इसलिए खरीदारी से लेकर सारी तैयारियां शुरुआत हो गयी, एकलौटी बेटी होने के नाते पिता ने कोई कमी नहीं रखी दान दहेज़ देने मे, घर मे सबकी प्यारी बेटी होने के नाते बेटी को बिदा करने की बात से ही सबका मन द्रवित हो उठता |
स्नेहा काफी भोली थी, सबकी नम आंखे देखकर घंटो रोने धोने बैठ जाती, जबतक सब हसने ना लगे, उसे देखकर वो चूप नहीं होती, कभी कभी वाह इस बात मे उलझ जाती के उसे खुश होना चाहिए या दुखी होना चाहिए, शादी ब्याह ऐसी चीज है तबतक लोग उस घड़ी को महसूस नहीं कर लेते, उस माहौल के लिए ढलना मुश्किल होता है |
स्नेहा की दो सहेलिया, पम्मी और वर्षा भी हर समय उसके पास ही बैठे रहते और उसकी सजने स्वर्ण मे मदद करते,
आज सगाई होने वाली है, लड़के वालो का फोन भी आया था, सभी 6 बजे तक शहर के बीचोबीच स्थिति, उस बैंक्वेट मे आ जायेंगे जहा स्नेहा के पिता ने तैयारी कर रखी है, सुनने मे आया है काफी महँगा बैंक्वेट बुक करवाया गया है, लडके वालो की जिद्द पर, और अपनी बेटी के लिए तो स्नेहा के पिता के लिए ये बात बिलकुल मामूली सि थी, हर हाल मे बस अपनी बेटी को खुश देखना चाहते थे, लड़का एक ऊंचे दर्जे का सरकारी अफसर चुना है बेटी के लिए, ताकि उसे किसी चीज की कमी ना हो |
सगाई मे पहली बार स्नेहा ने रौनक को देखा था, और मन ही मन मे उसे सबकुछ मान बैठी, शादी मे तो अभी थोड़े ही दिन बाकि थे, इसलिए शहरों के लड़के लड़कियों की तरह मिलने जुलने की बात नहीं हुई, बस एक दो बार किसी काम से ही बात हुई थी दोनों की |
पूरी सगाई मे रौनक खोया खोया सा रहा, जिसे स्नेहा के परिवार वाले बखूबी समझ पा रहे थे, फिर भी लड़की वाले होने के नाते उन्होंने कुछ भी पुछना ठीक नहीं समझा,
रौनक ने स्नेहा की तरफ एक बार भी ठीक से नहीं देखा, और ना ही उससे बात करने की कोशिश की, इस बात से सभी आचरज मे थे की ऐसी क्या बात है जो लड़का ऐसा बर्ताव कर रहा है |
और जिसका डर्र था वहीं हुआ, अगली शुभ लड़के ने स्नेहा के पिता को फोन कर कहा की वाह ये शादी नहीं करना चाहता है, वो किसी और से प्यार करता है और उसी से जल्द ही शादी करने वाला है |
इस खबर ने पुरे परिवार की हसीं छीन ली, स्नेहा के पिता ने शादी की काफी अच्छी तैयारी कर रखी थी, जिसकारण उन्हें पैसो का बड़ा नुकसान हुआ, स्नेहा इस बात से बेखबर सबके उदास होने का कारण पूछती रही, पर किसी ने उसे बताना जरुरी नहीं समझा |
इधर स्नेहा के पिता को एक साथ दो तरफ सर नुकसान हुआ था, इसलिए बाते उनके दिमाग़ से निकल नहीं पा रहे थे, और उन्हें इस सदमे से अचानक हर्ड अटैक आ गया, जैसे तैसे लोगो ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया,जिससे उनकी जान तो बच गयी, पर अस्पताल मे उन्हें काफी दिन रहना पड़ा, इसी दौरान स्नेहा को उसकी शादी टूटने की जानकारी मिली |
अचानक से हुए इस हादसे ने उसे अंदर तक झंझोर कर रख दिया, स्नेहा अपने मन की शांति खो चुकी थी, लेकिन परीवार के सामने अपने टूटे दिल को नजरअंदाज करते करते अब वाह काफी मजबूत हो चुकी थी, रोहन के प्रति उसके मन मे जन्मा प्यार समय से पहले मर्र चूका था, उसके पिता की इस हालात का जिम्मेवार भी सिर्फ रोहन था, इसलिए स्नेहा को अब रोहन घृणा थी |
काफी मुश्किल हुई, पर अब उसका परिवार उस दुख से उबर चूका था, और स्नेहा की शादी के लिए फिर से बात छेड़ी गयी, जहा स्नेहा ने साफ मना कर दिया, उसने अब अपनी पढ़ाई जारी रखने की जिद्द की, परिवार वाले मान गये, क्युकि उन्हें भी एहसास था की स्नेहा के जख्म अभी भरे नहीं है |
4 सालो के बाद स्नेहा अब कॉलेज की प्रोफेसर बन चुकी है, और नये वातावरण मे उसकी जिंदगी बिलकुल बदल चुकी है |
एकदिन वाह अपने खाश मित्र के कहने पर एक समारोह मे शामिल होती है, जहा उसे रोहन मिलता है, वाह अपनी पत्नी को लेकर आया हुआ था, उसे देखकर स्नेहा को पहला ख्याल आया की सबके सामने उसकी इतनी बेज्जती करे की वाह कभी भूल ना पाए, फिर थोड़ी देर तक अपने मन को शांत करते हुए, बिलकुल नरम मिजाज के साथ उसने रोहन के पूछे प्रश्नो को उत्तर दिया, रोहन समझ नहीं पा रहा था, इतना गलत करने के बाद भी स्नेहा ने मुझसे इतने प्यार से कैसे बात किया, यहीं बात उसे स्नेहा के प्रति आकर्षित करती रही |
बातो ही बातो मे स्नेहा ने उसे अपने घर चलने का निमंत्रण दिया, जो बस थोड़ी सि दूरी पर था, जाने क्यूँ स्नेहा की बात रोहन टाल ना सका, बातो ही बातो मे उसने स्नेहा के परिवार वालो के बारे मे पूछा, स्नेहा ने भी बड़ी चालाकी से उसकी गलती का एहसास करवाया, और कहा की, आप अपनी जगह सही थे, सायद मै ही लायक नहीं थी आपके, इसके बाद उसने अपने मन की उस अवस्था से भी रोहन को परिचय कराया, जो सिर्फ वही समझ सकती है जिसकी शादी होते होते टूट जाती है |
रोहन मन ही मन मे अपराधी सा महसूस कर रहा था, घर पहुंचकर स्नेहा रोहन को देखकर सभी चौक जाते है, रोहन के प्रति सबकी निगाहेँ गुस्से से भरी होती, ज़ब वाह अपने पिता के पास रोहन को ले जाती है, बगैर एक शब्द कहे उसके पिता अपना मुँह घुमा लेते है, स्नेहा की बातो से रोहन का मन पसीज सा जाता है, और अपने किये पर समिंदा होते हुए स्नेहा के पिता से माफ़ी मांगता है.........................
इतने सालो से अपने अंदर की पीड़ा बगैर बताये, बगैर जताये स्नेहा बस जिए जा रही थी, क्यू उसे खुद नहीं पता था, पर इस दृश्य ने उसकी वेदना को एक पल मे सांत कर दिया, अब स्नेहा को रोहन से कोई शिकायत नहीं था, स्नेहा जो चाहती थी, रोहन ने वही किया, स्नेहा की मन की शांति लौट चुकी थी |
स्नेहा रोहन को बस इसी खाश मकसद से घर ले गयी, इतना मान दिया ताकि वाह अपनी गलती उसके सामने स्वीकार कर सके, जिसका रोहन दोषी था, इसके बाद स्नेहा अपने सारे गम भूला चुकी थी, पर रोहन अब उसके लिए एक अनजान था, रोहन ने एक झटके मे उसके दिल को तबाह कर दिया था, जिसके बाद खुद को और परिवार को सँभालने मे स्नेहा ने काफी कुछ सहा भी, अब स्नेहा को दोबारा उस हादसे को याद करने मे कोई दिलचस्पी नहीं है |
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