नन्हा सा बच्चा

नन्हा सा बच्चा 

नन्हा सा बच्चा
                   मासूम बच्चा 




ये कहानी मालिनी श्रीवास्तव की है, जो पेशे से एक पत्रकार है , अपने पति के प्रेस मे दोनों साथ मिलकर काम करते है , इसलिए घर पर नौकरो की एक कतार सि लगी रहती,  जो उन्हें हर चीज समय पर मुहैया करने के लिए ही मुस्तैद रहते , उन्ही नोकरो मे एक पति पत्नी की जोड़ी भी थी, रिमझिम और रमेश, रिमझिम घर मे खाना बनाने का काम करती तो उसका पति, ड्राइवर की नौकरी पर लगे हुए थे, 

रिम झिम इन दिनों गर्भवती थी, जिसकारण कई दिनों से छुट्टी ले रखी थी, मालिनी जी अपने प्रेस के कामों मे इतनी उलझी होती के उन्हें घर के नौकरो की तबियत हालत चाल पूछने का ध्यान ही नहीं रहता, 

एक दिन सुबह सुबह रमेश अपनी माँ के साथ आया, और बताया के उसकी पत्नी अब नहीं रही, बच्चे को जन्म देकर उसने हमें अलविदा केह दिया, 

इसलिए दो हप्तो के बाद से मै अपना काम करूंगा, और रिमझिम की जगह अब मेरी माँ खाना बनाया करेगी, 

मालिनी जी ने थोड़ा शोक जताते हुए हामी भरदी, 

दो हेपते  बाद जब रमेश गाड़ी चला रहा था तो, पीछे बैठी मालिनी जी पूछती है, तो तुमने दोबारा शादी के लिए क्या सोचा है, 

रमेश दुखी मन से कहता है क्या करूंगा शादी करके, मुझपर अब एक बच्व्हे की जिम्मेदारी है, जिसे अभी मै अपनी बहन के पास रख आया हूँ, मालिनी जी फिर कहती है मै भी उसी बच्चे के लिए तुम्हे शादी करने को केह रही हूँ, माँ बगैर बच्चे का जीवन सुना हो जायेगा, तुम जल्द ही किसी अच्छी लड़की से शादी कर लेना, मालकिन की बात का जवाब ना देते हुए रमेश हामी भर देता है, 

एकदिन रमेश की बहन अपने पढ़ाई से सम्बंधित किसी काम से बाहर गयी हुई होती है, इसलिए उस बच्चे को रमेश की माँ अपने साथ मालिनी श्रीवास्तव के घर ले आयी , बच्चा अब 6 माह का हो चूका था, इत्तेफाक से मालिनी जी की आज प्रेस मे छुट्टी थी, इसलिए वाह आज पति और बच्चों समेत घर मे थी, रमेश के नन्हे से बच्चे पर नजर पड़ते ही, मालिनी जी बच्चे को गोद मे ले लेती है, और रमेश की माँ से बच्चे का नाम पूछती है, 

मालिनी बच्चे को देखकर मन ही मन पुलकित हो रही थी, और मन ही मन सोच रही थी के इस प्यारे से बच्चे ने आते आते कितना कुछ सहा है, इसकी माँ होती तो अपनी आँखों से एक पल के लिए ओझल नहीं होने देती..... मै बार बार रमेश को दूसरी शादी के लिए प्रेरित कर रही हूँ, क्या वो सही होगा इस बच्चे के लिए, कोई भी औरत दूसरे के बच्चे के साथ अपनी ममता नहीं बाट पाति है, रमेश तो भोला भाला है, सारादिन बाहर ही रहेगा, और ये बच्चा सौतेली माँ के पास अच्छे से रह सकेगा ना, ऊपर से आजकल की लड़कियो के तेवर इतने होते है, के पूछो मत, क्या वो न्याय कर पायेगी इस बच्चे को, कही इसके साथ बुरा ब्यवहार किया तो, और मै रमेश को बार बार दूसरी शादी के लिए उकसा रही हूँ, मै भी इस नन्ही सि जान की खुशियों से खिलवाड़ ना कर बैठु, अपनी माँ तो अपनी होती है, सौतेली सौतेली ही होती है, आज से मै रमेश को दूसरी शादी के लिए नहीं कहूंगी, क्युकि मेरे लिए ये बच्चा कल का भविष्य है और मै इसके भविष्य से नहीं खेल सकती |

उस नन्ही सि जान के लिए प्राथना करूँगी की जो भी हो सिर्फ उसके जीवन को वेहतर बनाने के लिए हो, कल अगर रमेश दूसरी शादी कर लेता है, और इस मासूम से ध्यान हटा देता है तो भगवान के पास मै क्या मुँह लेकर जाउंगी |

 बच्चे की सही देखभाल के लिए उसका परिवार काफ़ी है, और अगर अब वही रेश को ऐसा लगेगा की बच्चे को माँ की अवस्य्क्ता होगी तो, उसे ही सोच बिचार कर शादी करनी चाहिए, मैंने निश्चय कर लिया है की मै आज से इस विषय मे कुछ ना कहूँगी, 

इधर दूसरे दिन रमेश और उसके परिवार को किसी काम से अपने गाँव जाना पड़ा, जाने से पहले मालिनी जी से उसने आज्ञा ले ली थी |

एक महीने बाद रमेश नयी बहु लेकर आता है, मालिनी जी को भी ख़ुशी होती है, ये सोचकर की चलो आखिरकार रमेश ने बच्चे के लिए ही ये कदम उठाया होगा |

अगली शाम को मालिनी जी के परिवार समेट सभी जान पहचान वालो के लिए एक भोज का आयोजन किया गया था, 

शाम को मालिनी जी भी अपने पति के साथ रमेश के घर जाती है, जहा नयी बहु बच्चे को खिला रही थी, नयी बहु कम पढ़ी लिखी, और रंग भी दबा हुआ था, बस बच्चे के लिए रमेश ने जल्दी ही शादी कर ली, अंदर रसोई मे मे रमेश की माँ भोज की तैयारी मे लगी हुई थी, तभी रमेश माँ को आवाज लगाता है इतने मे नयी बहु रसोई मे पानी लेने अति है, और पहली बार गैस चूल्हा देख उत्साहित हो पडती है, और रमेश की माँ की गैर हाजिरी मे जैसे तैसे आग की लपटे तैरने लगती है, रमेश की माँ ये सब देख बहु को बाहर कर देती है, और खुद सिलिंडर बंद करने की कोशिश करती है, अंततः वाह बंद तो कर देती है, लेकिन इनसब मे वाह बुरी तरह घायल हो जाती है, रमेश माँ को अस्पताल पहुँचता है |

इस घटना के बाद सभी सेहम जाते है,  मालिनी जी को बच्चे की फ़िक्र सताती है, वाह समझ चुकी थी, रमेश की बहु मे अभी बचपना भरा पड़ा है, वो भला कैसे संभालेगी बच्चे को, 

मालिनी जी ने रमेश की बहु को घर मे रहने का मौका दिया, और धीरे धीरे बच्चे से जुडी सारी बाते नयी बहु को सीखा दी, 
अब नयी बहु के अंदर काफी समझदारी आ चुकी थी, और रमेश की माँ भी स्वस्थ होकर घर लौट आयी,  इस दौरान अस्पताल के सारे खर्चे भी मालिनी जी ने उठायी, क्यूँकी रमेश उनका वफादार सेवक था, 

जिसके लिए रमेश ने मालिनी जी का दिल से धन्यवाद किया |

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