गोवर्धन पूजा की कथा

गोवर्धन पूजा की कहानी 
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 पौराणिक कथाओं मे एक भगवान कृष्ण की अनेक लीलाये वर्णीत है, उन लीलाओ मे एक लीला गोवर्धन पर्वत से जुडा है, आज हम उस लीला का जिक्र करने जा रहे है, 

भगवान श्री कृष्णा ज़ब बालवस्था मे थे, तब उन्होंने देखा की बृजवासी बहुत सारे पकवान और मिठाइयां बना कर गोवर्धन परवस्त पर जा रहे हैं, तो भगवान कृष्ण ने पूछा मां इतनी मिठाईयां और पकवान किसके लिए बनाया जा रहे हैं तो मैया यशोदा ने बताया की ये सब इंद्र देवता के लिए बनाये जा रहे है, ये हमारी वार्षिक पूजा है जो भगवान इंद्र को समर्पित किया जाता है, 

हम उन्हें ढेर सारे पकवान और मिठाईयों का भोग लगाते है, तब वे प्रसन्न होकर वर्षा करते है, जिससे हमारी फ़सले बहुत अच्छी होती है, और हम साल भर अनाज खा पाते है, 

तब भगवान कृष्ण ने माता से कहा माँ क्या इंद्र देव प्रत्यक्ष आकर भोजन खाते है माँ, तो माता कहती नही पुत्र, 
फिर भगवान कृष्ण कहते हैं कि मां जो प्रत्यक्ष आकर भोजन नहीं करते हम उनके लिए इतने सारे भोजन क्यों बना रहे हैं, हमें तो गोवर्धन पार्वत की पूजा करनी चाहिए, क्युकि हमारी गईया वही चरती है, जिससे हमें अच्चा दूध प्राप्त होता है, 

और हम खूब सारे मक्खन खा पाते है, कृष्ण की ऐसी बाते सुनकर सारे वृजवासी कृष्णा की बातो मे आ गये और, इंद्र की वार्षिक पूजा ना कर के गोवर्धन पर्वत की पूजा की, जिससे गोवर्धन पर्वत प्रशन्न होकर स्वम् आकर सभी पकवान ग्रहण किये, उसके बाद सभी व्रजवासी ने गोवर्धन पार्वती के फेरे भी लगाए, 

उसी समय देवर्षि नारद वार्षिक महोत्सव देखने वृज आये, लेकिन वहा गोवर्धन पर्वत की पूजा होते देख इंद्रलोक लौट गये और इंद्र के पास जाकर वृक की बाते कही, 

सारी बाते इंजानने के बाद इंद्रदेव क्रोधित हो उठे, और वृज मे तेज आंधी तूफान के साथ बारिश करवा कर वृज को पूरी तरह जलन मग्न करने की ठान ली, 

तेज बारिश मे खल खलिहान जलमग्न हो गये, भगवान कृष्ण के कहने पर सभी गोवर्धन पर्वत के तराई के तरफ आ गये, तब लीलाधर कृष्णा ने अपनी माया से कनिष्ठ ऊँगली मे गोवर्धन पर्वत को धारण कर लिया, जिसके बाद सभी वृजवासी पर्वत के निचे आ गये, तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र द्वारा सभी वृजवासी को सुरछित कर लिया, 

जब ये दृश्य देवराज इंद्र ने देखा की एक बालक ने उनके प्रयासों को विफल कर दिया है, तब वे प्रत्यक्ष रूप से श्री कृष्ण से युद्ध करने पहुचे, तभी वहा ऋषि मुनि नारद पहुंच गये और इंद्र देव को बताया की यह बालक और कोई नही स्वम् श्रीविष्णु के अंश श्रीकृष्ण है, उन्होंने कंश वध, और गीता का उपदेश देने के लिए इसबार कृष्ण का अवतार धारण किया है, 

जिसके बाद देवराज इंद्र श्रीकृष्ण के चरणों मे गिर गये और अपने अंहकार के लिए उनसे क्षमा मांगी, 

इस पूजा को कई जगह अन्नकूट भी कहा जाता है, क्युकि इसमें भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत को छप्पन भोग लगाए जाते है, 

मान्यताओं के अनुसरण गोवर्धन पूजा मे गोवर्धन पर्वत का चित्र अथवा फोटो द्वारा गोवर्धन पूजा व्रत किया जाता है, उसके बाद पर्वत की परिक्रमा का विशेषता फल प्राप्त होता है , 


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