puny-ki-lalsha : पुण्य की लालसा

पुण्य की लालसा : adhurikahaniya2020


एक भरे पुरे और समृद्ध ग्राम मे एक महान विद्वान पुजारी रहते थे,


उन्हें कभी किसी चीजे की जरूरत पडती तो आस पास के भक्त परिवार उनका सहयोग करते, इसी तरह उनका जीवन काफी सुखमय बीत रहा था,

वे घर के मुखिया होने के साथ साथ सास्त्रो मे निपुण ज्ञानी पंडित थे, इसीलिए कोई भी यजमान अपने घर मे पूजा बिना इनके परामर्श के नहीँ करते थे,

एक बार एक धनी परिवार ने अपने घर पर पंडित जी को आमंत्रित किया, और एक विशेष तरह की पूजा करवाने की मांग की,

पंडित जी भी इस पूजा विधि के बारे मे पूरी तरह से नहीँ जानते थे, इसलिए अपने बाकि सहयोगियों से इस खाश तरह की पूजा विधि प्रकरण की जानकारी आदान प्रदान करने के बाद उनकी पंडित मंडली तैयार हो गयी, यह पूजा याजमान के घर सालाना किया जाना था,

जिसके लिए पंडित जी एवं उनके सहयोगियों को भारी भरकम दान दक्षिणा भी तय की गयी,

सभी पंडित जन पूजा के लिए यजमान के घर पधार चुके थे, बस पूजा सुरु होने मे कुछ ही देर था, गाँव से सभी अमीर गरीब परिवार भी इस पूजा हवन के लिए आमंत्रित था,

पूजा का मंडप देखने मे लुभावना था, यजमान ने अपने ईस्ट देव को प्रसन्न करने मे कोई कमी नहीँ रखी, छमता से अधिक प्रसाद बनवाये, जिसमे, मेवे की 101 तरह की मिठाईया, और भोजन मे छप्पन भोग थे, चढ़ावे मे सोने चांदी की भरमार थी, एवं गरीबो के लिए गर्म साल, एवं कपडे की थाक लगी थी,

जिसने भी यह दृश्य देखा, सबकी आंखे फटी की फटी रह गयी, इस पूजा मे नये जोड़े अपने जीवन के साथ इस खाश पूजा की सुरुवात करने जय रहे थे,

पूजा आरम्भ हुई, और प्रमुख पंडित एक बार मंत्र पढ़ते, जिसे लगातार सात बार बाकि मण्डली द्वारा उच्चारण किया जाता, चढ़ावे इतने अधिक थे की ईश्वर को समर्पित करते करते सुबह से संध्या होने को थी,

अभी सिर्फ रत्नो से जड़ी बड़ी सी सोने की थाल मे आभूषण ही शेष थे, तभी प्रमुख पंडित के मन मे पाप जन्मा, यह लालच धन या आभूषण प्राप्त करने के लिए नहीँ थे, यह तो मोक्ष प्राप्ति का लालच था, जिसके हाथो विवाश होकर पंडित ने आभूषणो से भरा थाल यजमान को ना देकर अपने हाथ से ईश्वर को समर्पित कर दिया,

हालांकि पंडित जी ने सोचा के सायद ऐसा करने पर उन्हें कड़े प्रश्नो से गुजरना पड़ेगा, परन्तु ऐसा कुछ भी नहीँ हुआ,
नये जोड़ो को जरा भी आभाष ना हुआ के पंडित जी ने लालासा के कारण ऐसा किया, वह तो थोड़े से तुलसी और तुलसी दल अर्पित करके ही तृप्त हो गये,

पंडित जी मन ही मन मुस्कुरा रहे थे, के चलो अपने मोक्ष का द्वार का मार्ग उनके लिए खुल चूका है, पूजा पाठ समाप्त कर उनके साथ उनकी पूरी मण्डली ने छप्पन भोग का आनंद उठाया, एवं भारी दक्षिणा के साथ दान मे दिए हुए सभी द्रब्यों को बराबर भाग मे बाटकर अर्धरात्रि को सभी अपने घर वापस जय रहे थे,

प्रमुख होने कारण उन्हें औरो से अधिक दान मिले थे, जिससे कही अधिक ख़ुशी उन्हें अपने हाथो से किये गये दान से हो रही थी,

जिसकारण मन मे कई तरह के विचार घर कर गये थे, उनमे से एक यह भी था की जीवन शेष होने के बाद उनके आराध्य स्वम् उन्हे अपने स्थान ले जायेंगे, इतना ही नहीँ वह अपने आप को सर्वोत्तम प्राणी भी घोषित कर चुके थे, तभी अचानक उनके बाएँ पैर मे अचानक मोच आ गयी और वे अपने ख्यालो के साथ धडडडाम से एक खड्डे मे गिर पड़े,

उस समय वह अपने एक शिष्य के साथ थे, इडलिये शिष्य ने उन्हें वहा से उठाकर सुरक्छित घर पंहुचा आया,

थोड़ी देर बाद ठीक से होश मे आने के बाद पंडित जी को एहसास हुआ की गिरते वक्त उनके पैर टूट गये, जिसके लिए वैध जी ने उन्हें तेवन माह का आराम करने को कहा,

पंडित जी पड़े पड़े सोचते रहे, आखिर मैंने ऐसा क्या गुनाह किया था, जो दिर्फ़ मेरे साथ ही यह हादसा हुआ, बाकि तो सभी स्वस्थ्य है,

3 माह होते होते उन्हें अपने भूल का आभास हुआ, और उन्होंने मन ही मन अपने ईश्वर से उस भूल के लिए छमा मांगी, और प्रतिवर्ष निस्वार्थ भावना से उस यजमान के घर उस ख़ास पूजा को करते रहे, जिसके बाद उनके लिए ईस्वर ने सच मे मोक्ष के द्वार खोल दिए,

शिक्षा :- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की छल से किया गया पुण्य भी अकारत होता है, फिर पाप की तो बात ही कुछ और है,

एक समय बाद हमें सब भोगना ही पड़ता है,
















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