प्राचीन कथा
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एक समय की बात है एक ऋषि मुनि घोर तपस्या में लीन थे उस मुनि की तपस्या से इंद्र देव का सिंहासन हिलने लगा, इंद्रदेव को डर था अगर भगवान से इन्होंने मनोरथ प्राप्त कर ली तो मेरी सिंहासन खतरे मे पहुंच जाएगा , इसलिए मुझे कोई उपाय देखना चाहिए,
उपाय की तलाश में इंद्रदेव बुद्धिमान देवताओं के पास गए, सभी तरह तरह के हल बताये जा रहे थे, इसके बाद इंद्रदेव ने उन ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए उर्वशी को धरती पर भेजनें का निर्णय लिया,
उर्वशी धरती पर आकर ऋषि की तपस्या को भंग कर देती है, जिसके बाद उर्वशी और ऋषि का एक पुत्र होता है, उर्वशी का कार्य पूरा हो जाता है इसलिए वाह वापस स्वर्गलोक चली जाती है,
उर्वशी और इंद्रदेव के षड़यंत्र का लता चलते ही, उन्होंने अपने बेटे पर किसी स्त्री की छाया ना पड़ने देने का प्रण लिया, वे अपने बेटे को लेकर जंगल चले गये, इसकारन उनका क्रोध बढ़ने लगा, जिसके फल स्वरुप उस राज्य मे परेशानिया बढ़ने लगी, लोग परेशान रहने लगे,
तब राजा ने इस समस्या का जल मंत्रीगण से जानना चाहा, तो उन्होंने बताया की अगर ऋषि के पुत्र का विवाह हो जाता है, तो ऋषि का क्रोध शांत हो जायेगा,
राजा के कहने पर चार सुन्दर दसिया वन जाकर ऋषि के पुत्र ऋशश्रिंग को अपनी ओर लुभाने मे कामयाब हो जाते है, जिसके बाद ऋषि का क्रोध शांत पड़ जाता है,
ये ऋषि ओर कोई नही महऋषि विभांडक थे, जिन्होंने राजा दशरथ के घर अश्वमेघ यज्ञ केवाय था, जिसके बाद उन्हें भगवान श्री राम प्राप्त हुये,
परिजनों को उन बातों से कोई फायदा देखता ना दिय, जिसके बाद इमेजिन ने स्वयं एक, इंद्रदेव के मन में एक बेतुका सा ख्याल आया, उन्होंने एक अप्सरा का रूप धर कर स्वयं ऋषि के पास पहुंच गया, और उनकी तपस्या में विघ्न डालने की कोशिश करने लगे कभी हाथ से बालों को सवरने लगे कभी ऋषि की बड़ी दाढ़ी पर उंगलियां चलाने लगते, ऋषि अब तक तपस्या में लीन थे,
इसके बाद भी तपस्या कर रहे रिसीव नहीं जागे जिसके बाद जिसके लिए इंद्रदेव एक षड्यंत्र के तहत तपस्या कर रहे ऋषि के कमंडल का सारा जल विचरण करने लगे, उन्हें जहां तहां पक्षी पेड़ पौधे जंगलों पर उस जल को शक्ति रहे, उसके बाद ही कोई फर्क नहीं पड़ा
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