रिश्तो का अपमान

रिश्तो का अपमान 

पढ़े :- एक ऐसे रिश्ते की कहानी, जिसे अपने परिवार से कोई लेना देना नही था, 
      
रिश्तो का अपमान



सुभाष एक भावनाहीन पुरुष था, जिसे ना तो अपनी माँ से लगाव था, ना भाई से, ना बहन से और ना ही किसी और से, हर रिश्ते को अपने मतलब से जोड़े रखता था, 

दोस्त साथी सबसे किसी ना किसी मतलब से जुडा होता, जिसदिन मतलब पूरा हो जाता, 

उसके अगले दिन उस रिश्ते और रिश्तेदार से पल्ला झाड़ निकल जाता, उसने शादी भी लड़की की जायदाद देखकर की थी,

 अपने सुख के अलावा उसने कभी किसी और चीज को महत्व ही नही दिया, 

जहा भी जाता अपनी बघारने लगता, लोग उसकी हर आदत से वाकिफ थे, बस उसे अहमियत इसलिए दिया जाता था, क्युकि वो एक नेक और शरीफ शख्स का बेटा था, 

उसके पिता राजनीती के जाने माने चेहरे थे, लेकिन ये बात उसे कभी समझ ही नही आयी, उसे लगता मै इतना लायक हूँ के सब मेरी इतनी ज्यादा आदर करते है, मेरी आव भगत करते है, मै औरो से अलग हूँ, सबसे अच्छा हूँ, 

इस घमंड मे ना जाने कितनी बार अपने परिवार वालो के साथ अन्याय करता रहा, सभी उसके ब्यवहार से तंग आप चुके थे,

 फ़िरभी एक घर की सदस्य की तरह हमेशा उसपर बड़प्पन दिखाते रहे, 

जिसके कारण सुभास के अंदर का अहंकार जन्म ले चूका था, हर रिश्तेदार को सिर्फ अपने मतलब के अनुसार इस्तेमाल करने से पीछे नही हटता, 

एकदिन की बात है, वाह अपने चार मित्रो के साथ एक कश्मीर घूमने के लिए निकल चूका था, इधर सुभाष के पिता की तबयत पूरी तरह ख़राब हो गयी, 

उनसे मिलने हर कोई पहुंचा, लेकीन सुभास अपनी कश्मीर की ट्रिप को जारी रखते हुए 9 दिनों बाद घर लौटा, जबकि उसके पिता की तबयत के बारे मे उसे बता दिया गया था, फिर भी उसने घर लौटना जरुरी नही समझा, 

बेटे का इंतजार कर रहा पिता चल बसे,  ज़ब सुभास लौटा, 


तो पिता के ना होने पर उसे ज्यादातर फर्क नही पड़ा, 


उसके आँखों से दो बूँदे आंसू भी ना आये, उसका ये ब्यवहार किसी से भुलाया नही जा रहा था, 

इसलिए धीरे धीरे ही सही पर उसके घर वालो से लेकर सभी दोस्त भी उससे मुँह फेर चुके थे, 

विशु अब सबसे अलग थलग पड़ गया, पहले के कुछ दिन शानदार रहे, क्युकि अब उसे रोकटोक करने के लिए कोई नही था,

 उसने खूब सारे जश्न मनाये, हर दिन पार्टी होती, 

फिर वाह इन सब से उब चला, सुभास को धीरे धीरे अपना बिता कल याद आने लगा, 

सुभास की पत्नी, को सब समझ आप रहा था, वह उसके ब्यवहार से वाकिफ थी, इसलिए 
वह भी धीरे धीरे सुभास से अलग होती गयी, उसे भी पता था सुभाष पर पूरी तरह से भरोषा करना सही नही है, 

खुद से मायूस आज सुभाष एक गलत रास्ते पर है, और अपनी जिंदगी को पूरी तरह से नशे मे झोंक चूका है,

 ये सब इसलिए हुआ 

क्यूँकी समय रहते अपनों की परवाह करने के बजाये, रिस्तो मे स्वार्थ ढूंढता रहा, अंततः वह सभी रिस्तो से हाथ धो बैठा, रिश्तो को इस्तेमाल करने वाले कही चैन नही पाते, 


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