पूर्व जन्म की भूली बिसरी स्मिर्तिया

अधूरी कहानियाँ : पूर्व जन्म की भूली बिसरी स्मिर्तिया 

ईश्वर द्वारा रचित इंसानी जन्म भी आने आप मे एक चमत्कार है, पिछले सारे जन्मों का अगला पिछला पीछे छोड़कर मनुष्य एक नई पहचान, नई सूरत और नये नाम   नाम के साथ संसार मे जन्म लेता, 

पिछले जन्म का इतिहास भूलना मनुष्य और ईश्वर के लिए जरुरी होता है, अगर ऐसा नही हुआ तो कोई भी मनुष्य अपनी पिछली स्मिर्तियो मे उलझ कर रह जायेगा, लेकिन क्या होगा जब किसी शख्श को पिछले जन्म की आधी अधूरी सी यादो को इस जन्म मे भी साथ लेकर जीना पडे, 
स्वम् को किसी अन्य स्वरुप मे देखना भी एक अद्भुत अनुभव होगा, यह कहानी भी एक पुराने स्मिर्तियो के पुनः लौटने पर आधारित है, 

शिव गंगा प्रसाद नामक एक व्यक्ति, करीब 10 वर्ष की उम्र से ही अपने पूर्व जन्म के स्मृतियों से परेशान था, वह सपनों में अपने आप को दूसरी दूसरी जगहों पर देखा करता था, कई बार मैं स्वयं के साथ अन्य लोगों को भी देखता, पर कभी इन बातों पर ध्यान नहीं देता,  उन्हें लगता शायद यह सब मामूली से सपने है बस, 

 गंगा प्रसाद पूर्व जन्म में कई संबंधों से जुड़ा हुआ था, जिनकी स्मिर्तिया उसे स्वप्न या खुली आँखों मे झलकियों के रूप मे आती, अनजान जगहे, अनजान रिस्तो मे उलझे हुवे  मन से वह अक्सर गलतियां करता रहता, 

क्यकि ये सारी गुथ्थी वह चाह कर भी नही सुलझा पाता, 

एकदिन शिवगंगा प्रसाद जान - पहचान के किसी समारोह मे शामिल हुआ , जहाँ हूबहू स्वप्न मे देखे जाने वाला शक्श उसे दिखाई दिया, 

उसने बगैर देरी किये उसके पास गया, उससे कुछ देर तक बात करने पर पता चला की वाह दीनदयाल का पुत्र है, (दीनदयाल ही उसके पूर्व जन्म का मित्र था ) , जिसके परिवार को वह सपने मे अक्सर देखा करता था, 

धीरे धीरे गंगा प्रसाद समझ चूका था, की वे सारे स्वप्न उसके पूर्व जन्म से ही जुड़े है, जिसके करण वह अक्सर परेशान रहता, 

वह अपने पुराने मित्र दीनदयाल के पास जाकर उसकी जानकारी लेना चाहता था, क्या वाह वही है, या सिर्फ गंगा प्रसाद का वहम है, 

 गंगा प्रसाद चाहते थे की दीनदयाल को भी अपने मित्र की याद हो, तभी वह इस मुद्दे पर आगे बात करेगा, 

ज़ब गंगाप्रसाद दिन दयाल के पास पहुंचा तो वह बिल्कुल अलग था, दुनियादारी की उसे कुछ पड़ी नही थी, मित्र दोस्त अब उसके लिए कोई मायने नही रखते, इस जन्म मे वह बिल्कुल अलग सलग सा प्रतीत हुआ, 

फ़िरभी, एक मित्र की तरह वह पुनः दीनदयाल से जुड़ना चाहता था, लेकिन दीनदयाल को इस विषय मे कुछ भी पता नही था, वह अपने तामसिक जीवन मे आनंदित था,  बगैर किसी स्मृति को गंगा प्रसाद को पहचान पाना दीनदयाल के लिए मुश्किल था, 

गंगा प्रसाद दीनदयाल मे अपने खोये मित्र की झलकियां देखता, जबकि दीनदयाल को गंगा प्रसाद के रूप मे सिर्फ एक अधेड उम्र का कुर्ता और पगड़ी लगाए ब्यक्ति मात्र था, 

गंगा प्रसाद जनता था, की बगैर किसी स्मिर्ति के किसी को भी कुछ याद दिलाना मुश्किल है, इसलिए उसने दीनदयाल से दो प्लीज की मुलाक़ात कर वास लौट आया, 

पर उसके द्वार से लौटते वक्त उसका हृदय टूटता हुआ प्रतीत हुआ, लेकिन सिर्फ स्मिरीतियो से किसी को अपनी सच्चाई का प्रमाण नही दिया जा सकता, 

गंगा प्रसाद दीनदयाल के जीवन से वाकिफ था, लेकिन वह उसके लिए कुछ नही कर सका, बेवजह किसी पर अधिकार 
जताना उसे बेईमानी लगी, 

उसे दिन दयाल ताउम्र याद रहेगा, लेकिन अपनी भावनाओ को अपने पास रख लेना ही उसे समझदारी का काम लगा, 

"पूर्व जन्म की यादें" आज के लोगो के लिए सिर्फ ढकोसले के अलावा कुछ नही है, 

वह अपनी आधी अधूरी स्मृतियों से सीख लेते हुए जीवनमे आगे बढ़ चला, कुछ यादें बगैर वजूद के होते है, जैसा गंगा प्रसाद के लिए था, 

शिक्षा - जन्म मरण की घटना सामान्य है, इस तरह हम अनेक लोगो से बिछड़ते और मिलते है, लेकिन पिछली बाते याद रहना ये असमान्य बात है, पिछले जन्म की बाते याद रहना किसी मकसद की और इशारा करते, पर कभी कभी कुछ मामलो मे ये यादें बस रह जाती है जिनके लिए जादा बिचार करना उचित नही 




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