नाम मुख्यायन जी

नाम मुख्याईन जी

नाम मुख्याईन जी


ये कहानी पुरानी रीती रिवाजों मे ढली कौशल्या की है, जिसका रंग काला था, पर नैन नक्श तराशे हुए थे, मात्र 5 वर्ष की उम्र मे उसके पिता ने उसका बिवाह 7 वर्षीय रूपस्वरूप से कर दिया था, रूप स्वरुप अपने नाम की तरह ही दूधिया सफ़ेद और आकर्षक लड़का था, 

उसे अपने पिताजी से कोई शिकायत नही थी के उसके लिए काली कलूटी दुल्हन ही क्यों पसंद की गयी,  पांच वर्ष की उम्र मे किसी के रंग रूप का पता लगाना भी मुश्किल था, 

कौशल्या रंग से भले मैली थी, पर विचार उसके हमेशा अनोखे रहे, समय बीतता गया, धीरे धीरे सास ससुर और पति के गैर मौजूदगी मे घर परिवार का सारा कार्य भार संभालना उसके लिए आम बात थी, 

धीरे धीरे दोनों जवान हुए, रूपस्वरूप जितना गोरा था, कौसल्या उतनी ही काली, रूपस्वरूप के मन मे कौसल्या के लिए कई बार हिन् भावना उत्पन्न हुई, जिसे कौसल्या ने अपने गुनी स्वाभाव से रूपस्वरूप के विचारों को सकारात्मक बना देती, 

ये तो थी कौसल्या की घरेलू गुण, इसके अलावा सही न्याय, और अपने साहसी स्वाभाव के कारण कौशल्या आस पड़ोस मे भी नायक बन चुकी थी, जिस कारण कौसल्या को पंचायत मे ख़ास आमंत्रित किया जाता, इतना ही नही घरेलु मतभेद दूर करने मे भी कौसल्या का जवाब नही था, 

कौशल्या ने जीवन मे कई उतार चढ़ाव देखे, पर समय के साथ वह और निखरती रही, 

एक समय ऐसा आया जब उसने अपने 18 साल के संतान को अपने हाथो मे दम दौड़ते देखा, पर उसने हार नही मानी,

कौशल्या और रूपस्वरूप अब एक भरे पुरे परिवार के मुखिया बन चुके थे, जिसमे दो बेटे - बहु,  7 पोते,  और दो पोतिया थी, 

कोई भी शख्स जबतक युवा होता है, वह अपने शारीरिक बल से सभी कार्य कर लेता है, लेकिन प्रौढ़वस्था मे ना तो शरीर साथ दे पाता है, और ना ही अपने,

पुरे गाँव से मान सम्मान पाने वाली कौसल्या अपने घर मे उपेछित होती रहती, सिर्फ इसलिए क्युकि अब वह लाचार और वृद्ध हो चली थी, इसी कारण उसने अपने सारे दायित्व किसी और के हाथों मे दे रखे थे , जिसका फायदा उनलोगो ने खूबसूरत उठाया, 

बृद्ध कौशल्या और रामस्वरूप के साथ भोजन से लेकर अन्य सभी जगह उससे भेदभाव किया जाता, परन्तु उसने कभी किसी बात को लेकर सदस्यो से बहस करना जरुरी नही समझा, जो मिलता कहा लेती नही मिलता नही खाती, 

पर अपने तरफ से हर सम्बन्ध को पूरी ईमानदारी से निभाती, 

रामस्वरूप सब देखता समझता पर बच्चो के आगे वह भी लाचार था, इसके बाद तो उसे एक भय और सता रहा था, वह था बटवारे का....... 

बेवक्त बच्चे आपस मे उलझ जाते, ज़ब बटवारे की घड़ी आएगी तब क्या होगा ??? 
उसने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ, बटवारे मे दोनों बेटों का परिवार एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे, कोई भी एक छटांग भी कम लेने को तैयार ना था, 

रामस्वरूप एक जाना मनाया जमींदार था, जिसके तिजोरी मे पैसे से अधिक ज़मीन के कागजात पड़े हुए थे, जीवन भर पाई पाई जोड़ता रहा, और बच्चो के लिए अपनी सम्पति छोड़कर जाना चाहता था, 

पर बच्चो के मन मे समय से पहले पिताजी की सम्पति का लालच आ गया, और ज़मीन का थोड़ा सा टुकड़ा छोड कर सभी को आपस मे बाट लिया, 

रामस्वरूप ने अपनी पत्नी के लिए वह ज़मीन बचा कर रखा था, जो उसे भविष्य मे काम आ सके, लेकिन उसे नही पता था की बच्चो के द्वारा वह भी हड़प कर लिया जायेगा, 

इसी दौरान पड़ोस मे सभी शादी मे शरिक होने गये हुए थे, और इधर राम स्वरुप अचानक बेहोश हुआ पड़ा था, वह शक़्कर की बीमारी से ग्रसित था, जिसकारण सांसे मांड पड़ गयी, 

सुबह तक वह दूसरी सफर मे जा चुके थे, इधर कौशल्या इस गम मे पागल हो गयी थी, 

थोड़े समय बाद कौसल्या भी चल बसी, तब जाकर बच्चो ने चैन की सांस ली, 

शिक्षा : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, की चाहे आप कितने ही धनी क्यों ना हो, वृद्ध होने के बाद आपका असली धन् आपका परिवार होता है, जो सही हों तो सब सही होता है |

















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