भगवान शिव और काशी

भगवान शिव और काशी :अधूरी कहानियाँ 2020

कई युग पहले काशी नगरी मे एक परम् ज्ञानी साधु विषवेश्वर रहा करते थे, वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे,

बाल्य काल से शिव आराधना मे रूचि थी, इसलिए काशी पूरी धाम मे कई वर्षो तक वे पुजारी भी रहे,

परन्तु ज़ब वे अपने शरीर से लाचार हो गये तब वे अपने आश्रम मे ही शिव साधना किया करते थे,

साधना मे लीन होने के बाद शिवधेश बाबा को भूख प्यास भी नहीँ लगती, इस तपस्या से उन्होंने भगवान शिव के बारे मे बहुत कुछ जान लिया था, इतना ही नहीँ भगवान शंकर भी उन्हें अपना परम् भक्त मान चुके थे,

एक बार काशी पूरी मे कुछ समय के लिए प्राकृतिक आपदा का प्रकोप देखा गया, जिसकारण वहा के तट से लेकर कुंवे भी सूखे और अकाल की मार झेलने को मजबूर हो गये,

मनुष्यों से लेकर जीवन जंतू भी इसके चपेट मे आ गये और, पुरे काशी मे त्राहिमाम त्राहिमाम की आवाज गूंज पड़ी,

तब शिवधेश बाबा अपने घोर तप मे लीन रहा करते थे, उन्हें इस संकट का आभाष पहले हो चूका था, परन्तु उन्होंने अपना तप जारी रखा,

तप की अवधि समाप्त होते ही उन्हें आस पास के दृश्य ने परेशान और विचलित कर दिया जिसके बाद उन्होंने भगवान शिव से इस त्रासदी से निपटने और सब पुनः ठीक करने का निवेदन किया,

भगवान शिव भी जैसे उनकी ही राह देख रहे हो, और उन्होंने उनके निवेदन को स्वीकार कर काशी को चल पड़े,

ज़ब बाबा शिवधेश अपने तप मे लीन थे, तब उन्हें अचानक भगवान शंकर अपनी और आते दिखे, उनका रूप रौद्र था, बाबा ने देखा जैसे एक बलवान हस्ट पुष्ट शरीर धारी, गले मे हजारों रुद्राक्ष की मालाये लपेटे, लम्बी जटाओ मे स्वंम माँ गंगा अपने स्वरूप मे विधमान थी,

वे भगवान शिव को अपनी और आता देख उसी समय नंगे पांव उसी मार्ग को निकल पड़े, तब उनहने देखा की भगवान शिव पास मे बनी एक गुफानुमा पानी के कुंड मे समाहित हो गये,

इसके बाद बाबा शिवधेश ने उनकी पुरे मन से पूजा अर्चना की, जिसके बाद भगवान शिव ने काशी की दुर्दशा को सुधार दिया,

और एक शिवलिंग के रूप मे हमेशा काशी मे विस्थापित हो गये,
 इसतरह बाबा शिवधेश की आज्ञा पर भगवान शंकर अपने पूर्ण रूप मे काशी एवं अन्य प्रमुख स्थानों पर महाशिवरात्रि एवं सावन के सोमवार को उपस्थित रहते है, और फिर व्रत तिथि एवं पूजा के समापन के बाद अपने धाम को लौट जाते है,






एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ