यात्रा चारधाम की

संसार निराली है, कभी यह रहस्यों से भरी होती है, तो कभी यह खुद हि सारे जवाब सामने ले आती है

चार धाम की यात्रा सबसे पुण्यकर्म एवं फालदायी माना गया है, लेकिन हर किसी की किस्मत मे यह यात्रा नहीँ लिखा होता, आज की कहानी इसी वाक्य से प्रेरित है,
बनारस मे एक ब्राह्मण परिवार था, जहाँ केवल एक वृद्ध जोड़ा रहा करता था, जिनकी कोई संतान नहीँ थी, परन्तु उन्होंने अपने घर मे अनेक पालतू जानवर पल रखे थे, दिन भर समय कैसे कट जाता उन्हें पता हि नहीँ चलता, परन्तु रात होते हि वे अपने आखिरी पड़ाव के बारे मे बातें करते रहते,

दोनों वृद्ध जोड़ो को चार धाम की यात्रा की इच्छा थी, परन्तु उनके आस पड़ोस और नाते रिस्तेदारो मे कोई ऐसा नहीँ था, जो उनकी तमन्ना पुरी कर दे, इस यात्रा के लिए,

मन हि मन वे ईश्वर से आग्रह करते रहते, की हे ईश्वर अब तो सब आपके हि हाथ मे है, आप चाहेंगे तो हमारी यह इच्छा भी मरने से पहले पुरी हो जायेगी,

पति पूजा पाठ मे लगा रहता, और महिला अपने पालतू जानवरो की सेवा मे, इस दौरान ना जाने कितनी गोवें और बकरिया जिन्हे वह पंक्तितायन अपने बच्चो की तरह पाली पोषि थी, वे उनका साथ और अपना देह छोड गये,

परन्तु ब्राह्मण की पत्नी ने उनके लिए सारे दान कर्म किये, क्युकि उन्हें वह अपने बच्चो की तरह मानती थी,

चाहे जितनी भी मुसीबते आये प्र वह अपना कर्तब्य आवश्यकता पूरा करती थी, 


एकदिन अचानक से पड़ोस मे रहने वाले एक बड़े ब्यापारी ने एक बस खरीदा, जिसे वह सवारी गाड़ी की तरह इस्तेमाल करने वाला था, परन्तु उसने तय किया था, की पहले वह इस गाड़ी से चार धाम की यात्रा करेगा,

बाद मे वह इसे सवारी गाड़ी बनाएगा, जिसके लिए उसने अपने अस पड़ोस के साभी लोगो को आमंत्रित किया, जिसमे ब्राह्मण का परिवार भी शामिल था, परन्तु मुसीबत यह थी की सभी घर से केवल एक हि सदस्य जा सकेंगे,

यात्रा की बात से खुश ब्राह्मण इस बात से उदास हो गया, तब ब्राह्मण की पत्नी ने समझदारी दिखाई और कहा आप चले जाओ, ऐसा मौका बार बार नहीँ आएगा, आप यात्रा करो या मै करू बात एक हि, मै तो आपके सुख दुख की भागीदार हु, इसलिए आप जाओ,

ब्राह्मण भारी मन से यात्रा के लिए निकला, इधर ब्राह्मण की पत्नी स्वम् को कोसने लगी, ना जाने मेरे ऐसे कौन से कर्म रहे होंगे, की ईश्वर ने मुझे दर्शन के लिए नहीँ बुलाया, फिर वह एक ल के लिए शांत हो गयी, और सोचने लगी यदी मै चली जाती तो मेरे बच्चो ( पालतू जानवरो ) का क्या होता,
सारे कार्य कर थकी हरी बिस्तर पर पड़ते हि उसकी आँख लग गयी,

निद्रा की अवस्था मे उसने यमुनोतरी, गंगोत्री के दर्शन किये, परन्तु उसे कुछ भी आभाष ना हुआ, वह बस यह सोच रही थी की थकावट के कारण उसने एक विचित्र सा स्वप्न देखा है,

अगली सुबह फिर से वह अपनी दिनचर्या मे लग गयी, और संध्या होते होते वह सोचने लगी ना जाने आज ब्राह्मण महराज किस धाम के दर्शन कर रहे होंगे,

फिर वह भी रात्रि भोजन कर सो गयी, निद्रा की अवस्था मे उसने केदारनाथ के दर्शन किये, सुबह उठते हि मन मे अनेक सारे सवाल थे, की इससे पहले तो कभी इस तरह के स्वप्न नहीँ देंखे, वह अपने धाम के दर्शन से अंजान थी क्युकि यह बात कोई सपने मे भी नहीँ सोच सकता, की घर बैठे वह तीर्थ की यात्राएं कर रही थी,

अगली संध्या अपनी दिनचर्या समाप्त करके पुनः सोने गयी, तब उसने देखा की वह एक रग बिरंगे महल के बरामदे मे बिचरण कर रही है, सामने से एक छोटी पुल है जो उसे दूसरे तरफ ले जाती है, वह उस महल को गौर से देख रही है, तभी महल के दिवार से लगे बड़े बड़े घंटे स्वम् बज उठते है और एक बड़ा द्वार खुल जाता है,

अंदर एक बड़ा हि आकर्षक शालीग्राम के दर्शन होते है, उसके ठीक आगे एक प्रतिमा है जो नीले परिधान मे सैया पर लेटे है, और उनसे तेज रौशनी आती दिखाई देती है, जिसके तुरंत बाद ब्राह्मण की पत्नी की आंखे खुल जाती है,

वह ब्याकुल हो उठती है आज ये क्या देखा मैंने, स्वप्न मे तो जैसे साक्षात् भगवान ने हि दर्शन दिए हो, प्र ऐसा कैसे हो सकता है ,

अगर मै इतनी भगवान होती तो वे मुझे अपने पास अवश्य बुलाते, उसके मनमे कई दिनों तक कई तरह के प्रश्न चले, वह मन हि मन सोच रही थी के ज़ब ब्राह्मण महराज आएंगे, तो मै उन्हें ये वाक्या बताउंगी,
3-4 दिन बाद ज़ब ब्राह्मण देवता यात्रा पुरी कर वापस लौटे तो उनकी पत्नी ने अपने साथ बीते सारी घटना बतालाई, जिसके बाद ब्राह्मण देवता थोड़े असमंजस मे पड़ गये, क्युकि उनकी पत्नी बिना चार धाम की यात्रा किये बिना हि पुरी विस्तरता से चारो धामों का वर्णन कर रही थी, जो सच मे अद्भुत था,

ब्राह्मण देवता हर धाम की फोटो फ्रेम लेकर लौटे थे ताकि उनकी पत्नी दर्शन कर सके, ज़ब उसने देखा तो वह भी आश्चर्य से भर गयी, ऐसा कैसे हो सकता है, ईश्वर ने उसे घर बैठे हि चारो धाम के दर्शन करवा दिए थे, और उनके पशु सेवा मे भी कोई बाधा नहीँ आई,

तब उन्होंने महसूस किया, की ईश्वर से अधिक कोई नहीँ जनता है की उनके लिए क्या सही था, शायद वे स्वम् भी नहीँ,

दोनों ने इसके बाद भगवान के सामने हाथ जोड़े |



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