इस कारन सम्पर्क को सभी हिन् नजर से देखते थे, उसके ना तो ज्यादा दोस्त थे, और ना हीं नाते रिस्तेदार उसे पसंद करते थे, वह हर दूसरे दिन किसी के पैनी जीभ से चोट खाता था,
उसके अपने पराये भाई बहन भी काला कलुटा हीं बुलाते थे, उम्र कच्ची थी, पर उस समय सभी द्वारा किये गये ओछेपन उसके दिमाग़ मे उतर चूका था, इसलिए वह खुद भी खुश नजर नहीँ आता,
जहाँ परिवार वालो का ज्यादा भीड़ भाड़ होता तो वह उस जगह आने जाने से कतराता, कई बार वह अपना जरुरी काम सिर्फ लोगो के डर से टाल दिया करता क्युकि समाज मे ऐसे लोगो की कोई कमी नहीँ थी जो बेवजह सम्पर्क को उसके रंग के लिए अपमानित करने मे खुद की शान समझते,
उसके घर मे कोई ख़ास समारोह चल रहा था, दूर दूर से लोग आये थे, वह अब बिल्कुल सहज नहीँ महसूस कर रहा था, इसलिये खेलने के नाम से ज्यादातऱ बाहर हीं रहता, उसी घर मे उसके छोटे अंकल के मायके से कुछ लोग आये थे, जिसे सम्पर्क मामी और मामाजी बुलाता,
उसके दो छोटे बच्चे भी साथ आये थे, वे दोनों बच्चे सम्पर्क को एक आंख भी पसंद नहीँ करते, इसलिए हर समय उसकी टांग खींचते रहते, उसे उलटी सिद्धि बातें सुनाया करते,
पर सम्पर्क को अब आदत हो चुकी थी इसलिए वह कुछ बोलने से अच्छा चूप रहना पसंद करता,
दो दिन बीत चुके थे और आज आखिरी दिन था, सभी क़ल सुबह चले जाने वाले थे,
सम्पर्क ज़ब शाम को बाहर से खेल कर आया तो मामीजी के दोनों बच्चे उसके पीछे लग गये, दोनों के हाथ मे एक बड़ी कैंची थी, उसने सम्पर्क के कपड़े को काटना स्टार्ट कर दिया,
देखते देखते उसने ऊपर और निचे दोनों कपड़े काट दिए, सम्पर्क अपने कटे कपड़े उठाकर अपने शरीर को ढकने की कोशिश करने लग गया, जिस पर वहां के सभी लोग फिर से उसके काले शरीर पर हसना चालू कर दिए, कुछ लोग ये भी केह रहे थे ये तो कोयले से भी काला है, पर किसी को उसके आंसू नजर नहीँ आये,
शायद उसके गहरे रंग मे वे आंसू भी किसी के नजर मे आ ना सके, शर्मिंदा होकर वह वहां से निकल गया,
और इस घटना से वह लगातार कुछ हप्ते तक सदमे मे था, फिर धीरे धीरे सामान्य हो गया,
10 साल बाद सम्पर्क बिल्कुल जवान हो चूका था, और अब लोग क्या कहते है नहीँ कहते इसपर ज्यादा ध्यान देने से अच्छा वह अपने काम और पढ़ाई मे समय देना पसंद करता था, उसने कई सारे अच्छे अच्छे कोर्स किये, जिससे उसे एक अच्छी नौकरी मिलनी तय थी,
उसके साथ उसका बड़ा भाई भी उसकी पढ़ाई मे हमेधा मदद करता था, बड़े होने के बाद सम्पर्क और उसके बड़े भाई मे ज्यादा असमंताएं आ गयी, सम्पर्क का रंग और गहरा हो गया, जबकि उसके बड़े भाई का रंग गोरा था,
उसके बड़े भाई का नाम विक्की था, वह आर्मी मे था, और उसके लिए लड़की देखने की बात चल रही थी,
कई अच्छे अच्छे जगह से बात हो रही थी, जिसमे ज्यादातर लड़किवाले ने लडके को पसंद कर लिया था, इसी बात पर विक्कीकी के फूफाजी ने फिर से बिनावजह सम्पर्क पर तंज कसे और बुरा भला केहना चालू कर दिया, कारन सिर्फ एक था सम्पर्क का कोयले जैसा रंग |
आदत तो हो गयी थी, पर बिना कसूर की यह वो सजा थी जो वक्त बेवक्त सम्पर्क को दे दिया जाता था, सभी इस तरह से अपनी नाराजगी सम्पर्क पर दिखाते, जैसे सम्पर्क ने यह गहरा काला रंग खुद अपने हाथो से चुना हो,
आँखों मे डेरे सारे आंसुओ की धार और शर्मिंदगी लिए सम्पर्क अपने काम पर निकल पड़ता है ,
चलते चलते उसके मन मे ढेर सारे बुरे ख्याल आ रहे थे, उसके अंदर जीने की उम्मींद के नाम पर कुछ खाश आशाये बाकी नहीँ लगने लगे, इससे पहले वह कुछ और सोचता रास्ते मे वही बचपन वाले मामाजी और मामीजी मिल गये, उनके साथ उनकी बेटी भी थी,
वे लोग अपनी बेटी के लिए लड़का देखने के लिए यहां रुके थे, सम्पर्क उनसे दूर दूर हीं रहता, और ना के बराबर बात करता, उसके अंदर का घाव उन्हें देखते हीं ताज़ा हो जाता,
मामाजी की लड़की का नाम प्रियंका था, और वह लम्बाई मे मुश्किल से 5 फिट की भी नहीँ थी, इसलिए शादी मे बहुत मुश्किलें आ रही थी, जहाँ लड़का पसंद आ जाता वहां लड़की की लम्बाई के कारन बात कट जाती, इसतरह से कई साल बीत गये, पर शादी नहीँ हुई,
इसलिए उन्होंने यहां कुछ लडके देखने का फैसला किया,
सम्पर्क बचपन मे हुए उस घटना के बाद उनलोगो के कभी सम्पर्क मे नहीँ आया, हलाकि उनका आना जाना रहा था, पर सम्पर्क उनसे कोई नाता रखना पसंद नहीँ करता था इसलिए कभी बात भी नहीँ हुई थी,
एक दिन प्रियंका को शॉपिंग जाना था, पर उसे ले जाने वाला कोई नहीँ था, क़ल लडके वाले आ रहे थे, इसलिए शॉपिंग करना भी उसके लिए जरुरी था, तब मामीजी ने सम्पर्क को प्रियंका को शॉपिंग करा देने की बात कहती है,
सम्पर्क ने जरूरी समझ कर प्रियंका को शॉपिंग पर ले जाता, इस दौरान सम्पर्क ने छोटी से छोटी बात पर ध्यान रखी, और प्रियंका की पसंद मे हर जगह उसकी मदद की, प्रियंका सम्पर्क मे एक अच्छा दोस्त देखने लगी,
उसने घर आकर सम्पर्क के अच्छे ब्यवहार के बारे मे अपनी मा को बताया, और इस दिन के बाद सम्पर्क और प्रियंका मे बात होने लगी,
प्रियंका सम्पर्क की कई कई जगह तारीफ भी करने लगी, पर सम्पर्क को इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीँ था, एक दिन सम्पर्क की मा ने बताया की प्रियंका से मैंने पूछा की तुम्हे कैसा लड़का चाहिए, तुम्हे किस तरह के लडके पसंद आते है..... तो उसने कहा मुझे सम्पर्क जैसा लड़का चाहिए,
वह बहुत अच्छा है, और देखने मे भी पहले से काफी अच्छा लगने लगा है,
मा की ये बातें सुनकर बचपन की हुई उस घटना को सम्पर्क भुला बैठा, और उसके मन मे एक नई आशा जगी, उसने पहली बार महसूस किया की मुझे भी कोई चाह सकता है, मै भी किसी का पसंद बन सकता हु,
और उस फूफाजी द्वारा दिए घाव मे भी उसने मरहम सा महसूस किया,
शिक्षा :- बुरे हालात मे किसी के दो मीठे बोल भी वहां से उबरने की ताकत दे जाते है, चाहे वह अपना हो या पराया फर्क नहीँ पड़ता,
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