अंजलि अपने परिवार के साथ गोवा कि रहने वाली थी, उसके परिवार मे दो भाई और वे दो बहने थी, अंजलि अपने भाई बहनो मे सबसे बड़ी थी, इसलिए उसे बाकियो से अधिक मान आदर मिलता, साथ हि वह अपने पिता कि चहेती थी,
ज़ब भी भाई बहनो मे झगड़े होते तो अंजलि के पिता बिना कोई बात सुने हि अंजलि कि तरफदारी करते,क्युकि उन्हें लगता अंजलि कभी कोई गलती कर हि नहीँ सकती है,
वे अंजलि को हमेशा एक बेटे कि तरह सम्मान देते, अंजलि के दोनों भाई को इस बात से हमेशा प्रॉब्लम होती कि पापा सिर्फ दीदी का हि साथ देते है, चाहे वह गलत हो या सही,
गोवा मे यह छोटा सा परिवार अपने छोटे से आशियाने मे हसीं ख़ुशी रह रहे थे,
अंजली के पिता बहुत हि धार्मिक प्रविर्ति के थे, और अपने बच्चो को भी वह धर्म कर्म कि बातें कि सिखाया करते,
अंजलि पापा कि मर्जी के बिना कोई काम नहीँ करती थी, वह सारे जरुरी काम मे अपने पापा की सलाह जरुरत लेती, और अंजलि से बिना बात किये अंजलि के पिता भी कभी कोई कार्य नहीँ करते, चाहे वह कोई बड़ा कार्य जो या छोटा,
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अचानक से इस छोटे से परिवार प्र मुसीबत आं पड़ी, अंजलि के पिता की अचानक हार्ट अटैक से मिर्त्यु हो गयी,
पूरा परिवार शोक और सदमे मे था, जैसे तैसे सभी ने एक दूसरे को संभाला, और दोबारा से अंजलि और उसके मा, भाई, बहनो ने पिता के बगैर जिंदगी सुरु कि,
लोगो का नज़रिया अब बदल चूका था, मदद करने वाले नाम के थे,
फिर पिता के जाने के बाद सारे बच्चो ने अपनी अपनी जिम्मेदारी संभाली,
सभी एक दूसरे को खुश देखकर हि खुश थे, हलाकि पिता की कमी का एहसास सभी बच्चो को होता,
अंजलि अपने हर फैसले मे अब भी अपने पिता को याद करती, उसके पिता भी सायद कहीं ना कहीं से उसे देख रहे होटल इसलिए सब अच्छा हि होता,
एकदिन अंजलि को अपने पिता द्वारा लिखी डायरी मिली जिसमे उन्होंने बच्चो के पढ़ाई के लिए कई लोगो से कर्ज लिए थे, लेकिन वे लौटा नहीँ सके,
अंजलि ने डायरी मे लिखें नाम वाले लोगो का बकाया धन लौटाने कि सोची,
धीरे धीरे उसने सभी को सबका पैसा वापस कर दिया,
एक शाम ज़ब वह अपने काम से वापस आ रही थी, तो उसने घर जाने के लिए कैब बुक किया, रास्ते सुनसान थे,
और रात के 8 बज रहे थे, गाड़ी मे बैठने से पहले वह पहले तो थोड़ा घबराई, क्युकि गोवा मे बाकी शहरों कि तरह हर जगह घर और लाइट नहीँ होते,
फिर उसने अपने पिता को याद करते हुये खुद को समझाया कि सब अच्छा होगा,
आज उसे काम के कारन किसी और जगह आने को कहा गया था जहाँ से उसका घर काफी दूर था, और कैब मे दो घंटे लगने वाले थे, उसने सोचा चलो तबतक फोन से किसी से बात कर लेती हु,
उसने अपनी छोटी बहन को फोन किया पर वह कहीं दूसरी जगह ब्यस्त थी, फिर उसने अपनी एक सहेली को फोन किया, उसने भी फोन नहीँ उठाया,
रात के 9 बज रहे थे, और ड्राइवर बारबार अंजलि के तरफ घूर रहा था, अभी वह गोवा के मरगाँव हि पहुंची थी जबकि उसे वार्का बीच के पास उतरना था,
इससे पहले वह कभी इतनी देर से घर नहीँ लौटी, इसलिए वह परेशान थी, अचानक गाड़ी एक कब्रिस्तान से होकर जा रही थी,
अंजलि पहले से घबराई हुई थी, ऊपर से ये रास्ता, उसने ड्राइवर को बोला, भैया लगता है आप गलत रास्ते से जा रहे है, तब ड्राइवर ने बोला नहीँ ये एक शॉर्टकट है, इससे आप जल्दी हि घर पहुंच जाओगी,
अंजलि को डाइवर्ट के हाव भाव अलग लग रहे थे, पर वह भरोसे के सिवा और कुछ कर भी नहीँ सकती थी,
वह अपने पिता को याद करने लग गयी, अचानक सामने रोड पर एक लगभग 50 साल का ब्यक्ति खड़ा दिखाई पड़ा, वह ब्यक्ति बिल्कुल बिच मे था, इसलिए ड्राइवर को गाड़ रोकनी हि पड़ी, गाड़ी रोकते हि वह ब्यक्ति गाड़ी के पास आकर बोला, मुझे जरा उस बीच के पास पहुंचा दोगे, ड्राइवर पहले नकारते हुये,अंजलि से पूछा? मैडम ये आदमी आपके एड्रेस के पास हि जायेगा,
अंजलि ने बिना कुछ सोचे हाँ कर दिया, वह बूढा ब्यक्ती सामने ड्राइवर के पास कि सीट पर जा बैठा,
अंजलि ने उसे ठीक से देखा भी नहीँ, और हाँ कर दिया ताकि ड्राइवर कुछ ऐसा वैसा सोच भी ना सके,
पीछे से अति गाड़ी के लाइट ज़ब अंजलि के सामने पड़ती तो वह बूढा ब्यक्ति बिल्कुल उसके पिता कि तरह हि दीखता, ऐसा लगता जैसे अंजलि के पिता हि सामबे मे बैठे हो, अपने पिता कि झलक देखकर अंजलि खुश हो गयी, तभी उसे याद आया कि वे तो अब नहीँ रहे,
ये कोई दूसरा ब्यक्ति होगा, फ़िरभी अंजलि ने बात करने कि सोची, वह कुछ पूछती तभी ड्राइवर को उस ब्यक्ति ने गाड़ी रोकने को कहा, बोला मेरा घर आ गया, धन्यवाद
अंजलि ने देखा, तो वही वह भी उत्तरी, पैसे दिए और आगे बढ़ी तो सामने एक हि घर था, अंजलि ने सोचा कि ये तो मेरा घर है, अंकल ये तो मेरा घर है !!!!!!!!!!!
हलकी रौशनी थी, जिसमे चेहरे साफ नहीँ दिख रहे थे, उस ब्यक्ति ने पलट कर सिर्फ इतना कहा खुद को कभी अकेला मत समझना, मै हमेशा साथ हु और घर के अंदर चले गये,
अंजलि भी दौड़ती दौड़ती घर के अंदर आई और पूछने लगी, अभी जो अंकल अंदर आये वे कहा गये?
सभी ने एक हि जवाब दिया यहां कोई नहीँ आया !
अंजलि हैरान थी, वह भूत प्रेत इत्यादि पर विस्वास नहीँ करती थी, लेकिन उस दिन से वह यह समझ चुकी थी के वह ब्यक्ति मेरे पिता हि थे, जो मेरे मदद के लिए आये थे,
और वे हमेशा मेरे आस पास रहते है, अब अंजलि को पहले कि तरह डर नहीँ लगता, क्युकि वह जानती उसके पिता उसके साथ कभी गलत होने नहीँ देंगे |
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