कई वर्ष बीत गये, इस घटना को लेकिन याद करती हु तो लगता है कितना ख़ौफ़नाक मंजर था,
मै गर्मी की छुट्टियों मे अक्सर अपने ननिहाल जाया करती थी, वहां और भी बच्चे थे जिनके साथ दिन भर खेलना, और मनोरंजन की चीजों के साथ मस्ती करना हमारा तय था,
मेरे नन्हीहाल मे उस समय गैस नहीँ थी, और ज्यादातर घरों मे चूल्हे थे, जो शाम होटल हीं जल उठते और उसका धुंवा ढूंढ़ की तरह दिन और रात तक बादल बनकर ठहरे हूए यहाँ से वहा तैरते रहते, और मुझे उनको देखने मे बहुत हीं ज्यादा अच्छा लगता,
एक बार मेरी नानीमा और बाकी की कुछ महिलाओ को साथ मे कहीं जाते देखा, उनकी हाथ मे मोती मॉट्ज रस्सीया थी, मुझे जाना था की वे सब कहा जा रहे है, मा ने रोका, लेकिन फ़िरभी मै उनके पीछे पीछे चली गयी, हलाकि वे सब मुझे अपने साथ बिल्कुल लेकर नहीँ जाना चाहते थे,
पर मै भी जिद्दी थी, आखिरकार चली हीं गयी,,,,
लगभग सुबह 10 बजे हम घर से निकले थे, और लौटते हूए 4 बज गये, वो भी डरते डरते हालत खराब हो चुकी थी लौटते समय,
वहां कुछ हुआ हीं था ऐसा.......... वहां क्या हुआ था ? तो सुनो
ज़ब हम घर से निकले तो, सब आपस मे बात करने लगे इस बच्ची को क्यूँ लेकर आ गयी हो, तुम्हे पता नहीँ जंगल के बारे मे, मेरी नानी मा कहने लगी, अच्छा चलो कुछ नहीँ होगा,
पैदल पैदल चलते चलते पैर दुख रहे थे, पर अभी भी मंजिल दूर थी, बिच बिच मे नानीमाँ और बाकी महिलाये मुझे गॉड मे भी उठाकर चल रहे थे, और चलते चलते हम पहुंच हीं गये,
ये जगह एक घना जंगल था, जहाँ ढेर सारी सुखी लकड़िया पड़ी रहती, जिसे सभी महिलाये एक जगह एकठा कर के रस्सीयों मे बाँधने लगी, मै उलोगो की देखा देखि पतली पतली डालिया लेकर नानीमाँ के पास के गठ्ठर मे रख रही थी,
मैंने देखा मेरी नानीमाँ अचानक कहीं गायब हो गयी, सिर्फनानीमा हीं नहीँ थी बाकी सभी थे, मै नानीमाँ नानीमाँ चिल्लाने लगी, तो वे सब कहने लगी वो तो मिट्टी के ढेले लेने यही पास मे गयी है, वे रास्ता दिखा रहे थे, मै बिना देर किये आगे दौड़ पड़ी, वे लोग मुझे रोक रही थी पर मै नहीँ मानी...
थोड़ी देर चलते हीं मुझे नानीमाँ दिख गयी वे
चिकनी मिट्टी के ढेले उठाये जा रही थी, फिर मेरे नाक मे अचानक एक तेज दुर्गन्ध पड़ी, मै नानीमा को बोली क्या चीज है नानीमाँ,,, यहां से चलो, वो भी ना जाने क्या सुनी समझी, मिट्टी के ढेले बगैर लिए, मुझे गोद मे उठाकर निकल पड़ी,
और सभी महिलाओ के पास जाकर कहने लगी, यहां से जल्दी निकलो,,,, धमक लग गयी है हमारी....... और क्या क्या बात हुई मै नहीँ समझ सकी, जितने थोड़ी लकड़िया इकठे की थी, उतने हीं लेकर सभी जल्दी जल्दी जंगल से निकलने लगे,
लेकिन ताज्जुब की बात थी हम जितना बाहर की तरफ जा रहे थे, वह दुर्गध हमें और ज्यादा हीं तेज होती लग रही थी, दोपहर था लेकिन शीत रीतू के कारण पुरे जंगल मे अंधेरा पसरा था,
और सभी महिलाये बस एकदूसरे से यही कहे जारही थी पीछे मुड़कर मत देखना, पीछे मुड़कर मत देखना........
जबकि पीछे से किसी जानवर के चित्कार की आवाजे जंगल मे गूंज रहे थे, हमारे जंगल से निकलते हीं सभी ने चैन की सांस ली, मुझे उस वक्त किसी ने गोद मे उठाया हुआ था,
जंगल से बाहर आकर सभी कहने लगी आज तो जान बच्च गयी, वरना ना जाने क्या होता?
फिर सभी मेरी नानीमाँ से पूछने लगे की क्या तुमने कुछ देखा था.... तो उन्होंने कहा हाँ...... मुझे ज़ब नाक मे दुर्गन्ध आई तो इधर उधर नजर दौड़ाते हीं महसूस हुआ की वह पिशाच पेद से निचे उतर रहा था,,,,,,
इसलिए मैंने मट्टी भी नहीँ ली, और दौड़ी दौड़ी चली आई, मैंने नानीमाँ से पूछा ये पिशाच क्या होता है?
उनहोने बताया की मनुष्यों का खून पिने वाला होता है, जानवरो से भी गन्दा रहते है वेलोग इसलिए वो जहाँ भी होते है उनकी दुर्गन्ध दूर दूर तक फ़ैल जाती है, ये सभी को नहीँ दीखते, इसे सिर्फ वही इंसान देख या समझ पता है जिसकी आँखों की और दिल की कोई कमजोरी ना हो,
मै भी सच मे बहुत डरर गयी थी, और जैसे तैसे मा के पास आते हीं सब बोल गयी, पर उस समय नानीमाँ बिल्कुल सामान्य थी, बोली नहीँ नहीँ कुछ नहीँ हुआ था, वो तो बस ऐसे हीं,
अगली सुबह मैंने दूसरी नानीमाँ के पास जाकर कहा क्या जंगल मे पिसाच नहीँ मिला था, नानीमाँ बोली के कुछ भी नहीँ हुआ,
तो वे बोली हाँ वो वही कहेगी..... क्यूँकी घरवाले जान गये तो फिर जंगल नहीँ जाने देंगे इसलिए,उसदिन से मैंने फिर दोबारा कभी उनलोगो के साथ जंगल जाने की जिद्द नहीँ की,और धीरे धीरे इस घटना को भी भूल चुकी थी,
पर ये कहानी मुझे फिर से याद आ गयी,,,,, ऐसा शयाद इसलिए हुआ क्युकि उसदिन की तरह इधर कुछ दिनों से मुझे वही दुर्गन्ध अपने आस पास महसूस हो रहा था, लेकिन ये कैसे हो सकता है? ये सोच कर मै भी कई दिनों तक खुद पर विस्वास नहीँ कर सकी, लेकिन अब धीरे धीरे मेरा यकीन पक्का हो गया,
लोगो का क्या है? कहीं से भी दो चार मंत्र लेकर पढ़ना, और लोगो को परेशान करने के तरिके ढूंढ़ लेते है, बगैर कुछ सोचे बगैर कुछ जाने.....
बात दस दिन पहले की है, कुछ भी अलग होने की आशंका मात्र से हीं मेरी आंखे खुल जाती है, फिर रात गयी तेल लेने,
अचानक आ रही दुर्गन्ध से मेरी नाक तो परेशान हो हीं रही थी, और बाहर उन कुत्तो के रोने से कान मे अलग परेशानी हो रही थी,
मै और वे कुत्ते दोनों उस पिसाच से निकल रहे भारी दुर्गन्ध से परेशान थे, और किसी बुरी घटना होने की आशंका जताते हूए रोये जा रहे थे, तकलीफ की बात तो ये थी की पुरे मोहल्ले के कुत्ते जिस तरफ़ इशारे कर के रो रहे, वो मेरे घर की तरफ का मेरा कमरा था, दहशत ये नहीँ थी के ये क्यूँ हो रहा है, दहशत ये थी की आज किलोमीटर का नहीँ सिर्फ मीटर का फासला था,
पुरे मोहल्ले की जान पर थी, और मेरे अपनों की भी, ऊपर से मेरी अपनी बीमारी अलग सारे पर्दे खोल रहे थे, दरअसल आंखे बंद करते हीं सब कुछ सामने था........
और मेरा ध्यान मुझे छोड़कर बाकी सभी लोगो पर था, पर वह परेशान मुझे करने आया था,
पिसाच मतलब लोगो का रक्त पिने वाला, और यह मृत होता है, एक शादी पहले ये सब अस्तित्व मे थे, पर धीरे धीरे ये लुप्त हो रहे है, और जो बचे हूए हाँ वे तांत्रिक के नौकर बन जाते है,
ये सभी तरह के कार्य कर सकते है, इंसानों को निगलना इनका पसंदीदा कार्य है, इसलिए नानीमाँ बताती थी के जंगल से कई लोग वापस नहीँ आये थे, तब
तंत्र मंत्र मे शक्ति होती है के वह किसी को भी वश मे करके मजबूर कर देता अपना कार्य करवाने के लिए, सोशल मिडिया के जमाने मे ये सब आम बात है, जिसका नुकसान दोनों तरफ उठाना पड़ जाता है,
अब बात ये है की लगातार हो रही इस घटना को कैसे सुलझाया जाये, तो क्या पिसाच को भेजनें वाला किसी की मिर्त्यु चाहता है, जो इतने भयानक जीव को लोगो को शिकार बनाने के लिए भेज रहा होता है,
या फिर उसके इरादे कुछ और है, और वह क्या है? अगर आपको पता हो तो हमें जरुर बताये ?
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