Silpi-ki-Sikh : शिल्पी के जीवन की सीख : पढ़े कैसे शिल्पी ने सीखा जीवन जीने का रहस्य

10 साल की छोटी शिल्पी अपने पिता के साथ पार्क घूमने गयी, छोटे बच्चो की जिद माता पिता को पार्क अथवा अन्य खेलने की जगह पर लेजाना ही पड़ता हैँ

शिल्पी अपने पिता अवधेश के साथ पार्क आई थी, आज उसका छोटा भाई किसी कारन से घर पर ही था, शिल्पी की माँ मालती घर के कामों में उलझी थी, इसकारण उसने ना आना ही ठीक समझा,


शल्पी अपने पिता का हाथ पकड़े पार्क के सभी झूलो में बैठ क़र खुश हो रही थी, झूला पार्क के किनारे में था, इसलिए वह पार्क में खेल रहे बाकी बच्चों को साफ देख पा रही थी, सभी बच्चे अपने मस्ती में थे,

लोगो में उत्साह दिख रहा था क्युकि पार्क के ठीक सामने एक सपेरा सांपो का नाच दिखा रहा था, देखते ही देखते पार्क से आधे बच्चे गायब हो गये,और वे सभी उन सांपो का नाच देखने वहां चले जाते हैँ....

इधर शिल्पी अपने पिता के साथ पार्क में नये नये पौधों को देख रही थी की तभी एक उड़ती हुई मैना रानी पौधों पर जा बैठी,

हलाकि चिडियो का गुण हैँ की वो कभी किसी के हाथ में नहीँ आति मगर ना जाने कैसे एक बच्चे ने अपने पंजे से उसे झट से दबोच लिया..............
शिल्पी ने अपने पिता से कहा देखो पापा उसने मैना रानी को अपने पंजे में रखा हुआ हैँ, उसे बोलो ना की उसे छोड़ दे, पर वह बालक तों आने हाथो में उस नन्ही सी जान को मरोरड़ता ही जा रहा था, जाने किस जन्म का बदलाव ले रहा था उससे

वह मैना रानी को तब तक नहीँ छोड़ा ज़ब तक उसका मन ना भर गया....... और सबके कहने पर ज़ब मुट्ठी खोली तों पक्षी बेजान, मुरछित सी जमीन पर अद्धा पौना घंटा लेटी रही,

उसके अंदर इतनी भी साहस ना थी की वह सही से उड़ पाए, शिल्पी और उसके पिता ने उसकी अवस्था देख रहम किया और जल के पतासे से उसे थोड़ा पानी पिलाया, देखते ही देखते उस छोटे से बालक ने इस नन्हे से जीव की ये दुर्गति क़र डाली,

शिल्पी चाह रही थी उसे अपने साथ घर ले जाये पर उसके पिता ने कहा हम उसकी देखभाल सही से नहीँ क़र सकेंगे, इसलिए उसे यही रहने दो......
शिल्पी अपने पिता की बात पर उस नन्हे से जीव को थोड़ा सम्भल जाने का वक्त देना उचित समझा, और वहां से चल दि,

रास्ते में सपेरा कहा खेल चल रहा था, तों वह भी उसे देखने बैठ गयी, वहां सपेरा खेल दिखा रहा था, स्पेरे ने 10 से भी ज्यादा साँप दिखाए, सभी उसकी धुन पर नाच रहे थे, पर ताज्जुब की बात थी किसी भी साँप ने अपने फनो को नहीँ खोला था,

साँप केफन तों उसके असली पहचान होती हैँ , वह वामन हैँ या चन्द्रघण्टा, वह कोबरा हैँ या अजगर कुछ भी समझ नहीँ आ रहा था सब एक ही जैसे लग रहे थे, कारन बस यही था की सबने अपने फन को नहीँ खोला था,

बड़ी हैरानी की बात थी.....
शिल्पी को तों यह बड़ा अंतर नहीँ समझ आया पर उसके पिता स्पेरें से बोल बैठे "ये सभी फन क्यों नहीँ खोल रहे कुछ खिलाया हैँ क्या "?

सपेरा "नहीँ तों कुछ नहीँ खिलाया पर हम अपने रख रखाव में आसानी होये इसीलिए सबके जबडे सील देते हैँ, जिसकारण की फन खोलता हैँ कोई नहीँ खोलता "

बड़ी ताज्जुब की बात थी सच में उनकी जबडे मोटे धागो से सिली थी किसी के तों जबडो से खून तक निकल रहे थे, पर सपेरा अपनी धुन में था,

वह उन सांपो का दुख नजर अंदाज करता हुआ हर दिन खेल दिखा रहा था, शिल्पी के पिता ने स्पेरे से पूछा " जी आप कहा से लाते हो इन सांपो को "

उसने बताया " जंगल से "
शिल्पी के पिता " तों क्या इसे वापस नहीँ छोड़ सकते "
सपेरा " क्यूँ छोड़े जी ये हमारा रोजी रोटी हैँ "
शिल्पी के पिता " तों इसे अच्छे से क्यों नहीँ रखते "
ताकि ये भी खुश रहे,

सपेरा " हम अगर इसे अच्छे से रखने लगे तों पता चले की हम सोये हैँ और ये हमें ही ड्स गया इसलिए अपने बचाव के लिए तों ये करना ही पड़ेगा हमें,

शिल्पी के पिता " इन ससभी सांपो को छोड़ने का क्या लोगे "

सपेरा " क्यूँ छोड़े जी हम इनको "
ये हमारे अन्नदाता हैँ, खेल दिखाकर पैसे कमाते हैँ, बीमारिया भगाते हैँ इसके विश्वास को बेचकर " क्यूँ छोड़े हम इन्हे,

शिल्पी के पिता " लो मै तुम्हे पैसे देता हु इन्हे छोड़ आवो जंगल में "
" कितना दोगे " सपेरा
"कितना चाहते हो " ज हम तों ना छोड़ेंगे जंगल में हैं अगर इनके दान पानी के लिए पैसे देना हो तों दो, जान दाँव पर लगाकर पकड़ा हैँ, ऐसे कैसे छोड़ दे,
शिल्पी के पिता के लगातार दबाव बनाने पर भी वह अपनी बात पर अदा रहा,

फिर निराश और हताश होकर दोनों अपने घर आ गये,
"एक तों उस मैंने की दुर्गति और फिर वे सारे साँप "
उफ़ देखा नहीँ गया हमसे और सारी बात अपनी पत्नी को सुनाया, पत्नी ने कहा इंसान निर्दयी होता चला हैँ, अपने ख़ुशी और मतलब के लिए दुसरो को तड़पाने में भी उसे मजा आने लगा हैँ,

सपेरे तों होते ही हैँ जन्मजात स्वार्थी भला किसी दैवीय प्राणी को इतना कष्ट देता हैँ कोई, पूजा करते हैँ हम नाग देवता की और वह उन्हें कस्ट दे रहा हैँ, शिल्पी के पिता कहने लगे रहने दो और कुछ नहीँ वह अपना कर्म क़र रहा हैँ फल भगवान देंगे,

शिल्पी की मां " सही बात हैँ "
शिल्पी दोनों की बात सुन् और समझ रही थी, और उसने आज नया सबक सीखा |

शिक्षा :-

हर जीव की अपनी आजादी हैँ, जिससे हम इंसानों को कभी खिलवाड़ नहीँ करना चाहिए |














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