pichli-rat-ka-khwab : रात का अधूरा ख्वाब

संध्या को हर रोज़ सपने में आने वाले भविष्य के अक्श दीखते हैँ, जो कभी कभी हूबहू सच हो जाते हैँ, आज की कहानी उसी सच पर आधारित हैँ की कैसे संध्या ने 15 घंटे पहले होने वाली घटना की छवि देख ली,

कहानी
रोज़ की तरह संध्या की आँखे खुलते ही सारे मंजर ताज़ा हो गये........

थकावट ऐसी जैसे रात भर किसी सड़क किनारे चलती रही,

आँखों को थोड़ा आराम देते हुए, पानी के छींटे अचानक याद आया.....................

जाने मै कहा चली गयी थी, आँखों के पास दौड़ती ओ सफ़ेद ट्रेन.... पहले तों कभी नहीँ देखी,

देखने से वह बाकी ट्रेनों जैसी ही तों थी मगर शहर में दौड़ती उस सफ़ेद ट्रेन में लोग इतने कम क्यूँ थे,

आज ये क्या देखा कुछ समझ नहीँ आ रहा, एक तों ओ ट्रेन ऊपर से ओ सजी धजी बिल्डिंग थी या मॉल ठीक से देखा नहीँ, चॉकलेट के तों अम्बार लगे पड़े थे...... डार्क चॉकलेट, वाइट चॉकलेट, कितना अच्छा लग रहा था,

मै भी पागलो की तरह ना जाने क्यूँ सड़क पर ख़डी किस्से बातें कर रही थी,.......... आस पास कोई दिख नहीँ रहा बस मै चले जा रही हु,,,,,,,,,,,,

इतनी बड़ी शहर ना जाने कितने गलियों के चक्क्र लगा बैठी, उस ट्रेन के पीछे जिसमे लोग तों कमी थे, पर पता नहीँ क्यूँ........... उसके पीछे एक बड़ी भीड़ दिख रही थी,

घर पहुंची........ पता नहीँ किसके घर आ गयी, मेरे घर जैसा तों कुछ नहीँ हैँ, वाह इतने सारे रंग बिरंगे पारसल, एक खोलती हु,.......... इसमें तों बैगनी रंग की पर्स हैँ, काफी सुंदर हैँ....

काफी लोग बाहर निकल रहे थे.... और दो कलाकारों के पीछे ऑटोग्राफ लेने वालो में मै भी शामिल थी.......

फिर क्या हुआ........याद नहीँ,

लेकिन चीख पुकार मची पड़ी थी............ बाहर निकली,,,,, जाने इतना अंधेरा अचानक कहा से आ गयी,

उफ्फ्फ ये इतनी वाहियात और अजीब सा सपना.....

और वह सफ़ेद ट्रेन....,, मै भी पागल की तरह ना जाने क्या क्या देखती रहती हु,

इन्टरनेट पर सर्च करने पर उस तरह की सफ़ेद ट्रेन कही नहीँ दिखी, फिर मैंने क्यूँ देखा वो ट्रेन......

सपने में सफ़ेद रंग पहले भी देखे थे मैंने और यह एक बुरा एक्सपीरियंस रहा था.....

मुझे याद हैँ........ वह सफ़ेद बदलो में उड़ता हुआ बगूले जैसा पक्षी,,,,,,, जैसा इंसान की तरह चल रहा हो और अचानक तालाब के ऊपर आकाश में उड़ चला था.....
उसके अगली शाम ही किसी परिजन के संसार छोड़ने की बात सामने आई थी,

दिन भर यही सब बातें दिमाग़ में लिए संध्या अच्छा सोचने की कोशिश करती रही.....

अच्छा दिन हैँ........ अच्छा होने की आशंका भी हैँ, दिन भर किसी ना किसी तरह कट ही गया.......
पर शाम होते ही ट्रेन हादसे की खबर आई,,,,

काफी दुख हुआ........ उस दौरान जाने कितने लोगो ने अपने लोगो को खोया होगा,,,,

और मै लग गयी अपने काम में, थोड़ी देर बाद अचानक संध्या को सुबह इन्टरनेट पर सर्च की गयी सफ़ेद ट्रेन की हिस्ट्री दिखी, और उसके दिमाग़ में सारी बातें साफ हो गयी,

की वह ट्रेन का रंग सफ़ेद क्यूँ था,,, और उसमे कुछ ही लोग क्यूँ बैठे दिख रहे थे,,,,,,,,,

इसके पहले पुलावामा हमले के कई दृश्य भी संध्या ने बंद आँखों से कई दिन पहले देखे थे......
मुझे याद हैँ...... वो ख़ौफ़नाक सपना,,,,,,,,

जाने किस सुनसान लैब में एक बड़ी मशीन में धमाके के साथ आग लग गयी,,,,,, और उसके अंदर का शख्स बुरी तरह जल चूका था......... जिसके बाद देखते ही देखते उस घटना के लिए लोगो ने हाथो में कैण्डल्स और पोस्टर्स थाम लिए,,,,,, सरकारी जगहों पर लोगो की भीड़ रोज़ की बात हो गयी,

दोस्तों मेरी कहानी आपको कैसी लगी ये अपने कमेन्ट के माध्यम से जरुरत बताये......








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