फोन पर किसी लड़की की की आवाज़ आ रही थी, वह बार बार एक ही स्वर मे बोले जा रही थी प्लीज मुझे बचा लो, प्लीज मुझे बचा लो,
सुधा को वह कोई अननोन कॉल लगा, क्युकि उसने अपना नाम खुसबू बताया...और खुसबू नाम की लड़की हमारे परिवार मे कोई नहीँ थी, 2 मिनट की बात चित मे इतना तों समझ आ ही गया था सुधार को की कोई लड़की है,जिसे मदद चाहिए ,और वह पुणे की रहने वाली है,
कॉल कट करते ही सुधा याद करने लगी की पुणे मे खुसबू नाम की ऐसी कौन सि लड़की है, जिसे मदद की जरूरत है, घर के सदस्यों से थोड़ी पूछ ताछ के बाद उसे कुछ भी समझ नहीँ आया, क्युकि ना तों खुसबू नाम की कोई पहचान की मिली,और ना ही पुणे मे सुधा के कोई भी रिश्तेदार रहते है, फिर ताजुब की बात ये थी की उसे सुधार का नंबर कहां से मिला,
फिर सुधा ने उस फोन काल की जानकारी पुलिस को देनी चाही के हो सकता है, पुलिस को खबर करने से उस बेचारी लड़की की कोई मदद ही जाये,जिसके लिए उसने अपने घर मे पहले बात की, पुलिस की बात सुनते ही सभी ने सुधार को फोन करने से मना कर दिया,
क्युकि पुलिस की आदत हैं, सभी को झूठ झमेले मे फसाए रखते है, सुधा भी परिवार वालो के दबाव मे उसकी मदद ना कर पायी, और फिर वह भी अपने घर के काम काज मे लगी पड़ी सारी बातें भी भुला बैठी,
करीब तीन साल बाद सुधा और उसका सारा परिवार सुधा के दादाजी के गांव घूमने गये हुए थे, हलाकि वहां कोई नहीँ रहता अब फ़िरभी......वहां का परिवेश और पर बनाया मकान ज्यो का त्यों खड़ा है, जिसे सुधा अपने घरवालों के साथ देखने पहुंची थी,
वहां पहुंचते ही....सारी यादें फिर से ताज़ा हो गयी, सुधा घर को देख यही सोच रही थी के कैसे एक हरा भरा घर आज विराने मे पड़ा हुआ है,कभी यहां कितना शोर शराबा हुआ करता था, अब बिल्कुल शांत हो चूका वह घर हमारे परिवार की निशानी है,
सुधा को देखते वहां कई सारे जाने पहचाने चेहरे सामने आ खडे हुए,,,,, सुधा भी इतने सालो बाद दादाजी के घर आई थी तों........सभी से मिलकर उसे भी अच्छा लगा,
हमारे घर के ठीक सामने एक बडा मैदान था,जिंदका नक्शा काफी बदल चूका था, वहां आज भी लडके खेलते है....
मेरे घर से आगे कुछ ही दूरी पर एक कच्चा मकान हुआ करता था, ज़ब सुधा यहां रहती थी ,तभी दूर से आया एक अधेड उम्र के ब्यक्ति ने अपने दो बेटों की शादी इसी गाँव की दो लड़कियो से कर उन्हें विदा करा अपने साथ ले गया था, सुधा को याद आया वे लोग पूना के रहने वाले थे,
पूना का नाम सुनते ही वह उसी घर की और बाढ़ चली.......अंदर गयी तों घर मे काफी बदलाव आ चूका था, अब वह घर सीमेंट से ढलाई की हुई थी, अंदर जाकर सुधा ने आवाज दि......काकी..... काकी.
अंदर के बरामदे से एक महिला निकली वह महिला सुधा को अच्छी तरह से पहचानती थी,
सुधा ने पहले उनकी परिवार के बारे मे बात की......तों पता चला इस परिवार मे सभी की शादी हो गयी है, फिर सुधा ने बगैर देरी किये.........उस लड़की के बारे मे पूछा जिसकी शादी पुणे मे हुई थी,
काकी ने बताया की तुम खुसबू की बात कर रही हो, खुशबू कौन? सुधा को उसकी ज्यादा जानकारी नहीँ थी, और खुसबू नाम से वह उसी फोन कॉल पर उसका ध्यान जा अटका,
"जी उसका नाम खुसबू था? " सुधा ने धीमी स्वर मे पूछा
काकी " उसका नाम खुसबू था,और वह मेरे ननद की बड़ी लड़की थी,
सुधा " थी से क्या मतलब हैं आपका? "
वो ठीक तों है ना,
काकी " नहीँ तीन साल पहले वो मर चुकी है,
सुधा " अरे नहीँ " ये कैसे हो गया.......
काकी.....उसका पति बहोत पिता था, और शराब के नशे मे उसे इतना मारा की उसके फेफड़े मे खून जमा हो गया था, फिर वह नहीँ बची,
सुधा को ये जानकर बहोत अफ़सोस हुआ......उसने उस फोन कॉल की बात बताई काकी को,
काकी ने कहा " की हो सकता है गलत नंबर लग जाने के कारन तुम्हारे पास वह कॉल आ गया होगा,
सुधा ने पूछा की उसके पति को कोई सजा नहीँ हुई,,,,, काकी ने बताया की उसकी तों इलाज के दौरान उसकी जान गयी, पति को दोष कौन दे सकता था इसमें,
सुधा वहां से निकल कर वापस घर आ रही थी....और रास्ते भर इसी अफ़सोस मे खामोश बैठी थी........के उसने बार बार मुझसे मदद मांगी थी पर मैं उसके लिए कुछ नहीँ कर पायी......काश मेरा कोई भी कदम उसकी जान बचा सकता |
तब सुधा की सहेली और
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