मर्जी, (एक काल्पनिक कहानी )

  मर्जी 

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कुछ लोग अपनी मर्जी के मालिक होते है, तो कुछ अपनों की मर्जी पर निर्भर होते है, जैसा इस कहानी के पात्र मनोहोर रिमझिम के साथ हुआ, 
 
मर्जी (एक काल्पनिक कहानी )
अधूरी कहानियां 


शहर में पली-बढ़ी रिमझिम, गांव कम ही जाती थी, शहर से  इंटरमीडिएट पास करने के बाद पिता उसके शादी के लिए लड़का देखने लगे, 

लड़का देखते हुई उन्हें कई साल बीत गये जिसकारण अपनी जिम्मेदारी से जल्द छुटकारा चाहते थे, देखते देखते मनोहर नाम का लड़का रिमझिम के पिता को रिमझिम के लिए जच गया, लेकिन एक समस्या थी, मनोहर  वासी था,जबकि रिमझिम को की रीती रीवाज मे कुछ ज्यादा जानकारी नही थी, 

रिमझिम को पिता की मर्जी के आगे रिमझिम की एक ना चली, और पिता की आज्ञानुसार रिमझिम ने मनोहर से शादी कर ली,  

शादी के शुरुवाती दिनों मे मनोहर रिमझिम के प्रति ब्यवहार कुशल था, लेकिन समय बीतते ही मनोहर का ब्यवहार रिमझिम के प्रति बदल गया, घरवाले ग्रामीण तौर तरीको मे निपुण थे, इसलिए उन्हें शहरी बहु रास नही आ रही थी, 

रिमझिम को गांव मे रहना पसंद नही था, क्युकि वहा सुविधावो का अभाव था, ना बिजली ढंग से रहती थी, ना शहर की तरह सुख और साधन थे, फिर भी अपने पिता के लिए बगैर किसी से कुछ कहे गाँव मे रह रही थी, इतना ही नही रिमझिम गाँव के हर तौर तरीके, अपनाने भी लगी थी, 

लेकिन ससुराल वाले रिमझिम से कभी खुश नही रहते, रिमझिम चाहे जितनी कोशिश कर ले, कोई ना कोई नुक्श निकल ही लेते, 

धीरे धीरे मनोहर के दिमाग़ मे भी घरवाले रिमझिम के खिलाफ गलत बाते भरने लगे, जिसके कारण मनोहर भी रिमझिम से उलझ कर बाते करने लगा, रिमझिम के दस बार पूछने पर मनोहर एक बार जवाब देता, 

रिमझिम अब दुखी रहने लगी,, 

लेकिन मनोहर के मन मे संध्या नाम की लड़की धीरे धीरे घर करने लगी, संध्या मनोहर के बड़े भाई के ससुराल पक्ष की थी, वाह दिन भर उसकी यादो मे खोया रहता, उसे अफ़सोस होने लगा था, की अगर संध्या से पहले मुलाक़ात होती तो मै उसी से शादी कर लेता, 

इधर रिमझिम माँ बनने वाली थी, इसलिए उसके पिता उसे अपने साथ मायके ले गये, मनोहर हर दिन किसी ना किसी बहाने से संध्या से मिलने निकल जाता, संध्या भी मनोहर के दिल का हाल जान चुकी थी, 


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मनोहर रिमझिम की यादो से पूरी तरह आजाद हो चूका था, जबकि रिमझिम मनोहर के लिए बेचैन रहती थी, 

संध्या के साथ उसकी प्रेमलीला अब परवान चढ़ चुकी थी, दोनों का एकदूसरे के बगैर रह पाना मुश्किल हो रहा था, इसलिए दोनों अपनी मर्जी से शादी कर आये, 

मनोहर की दूसरी शादी की खबर रिमझिम सुनकर अपना होशो हवाश खो बैठी, और इसी गम मे बच्चे को जन्म देते हुई चल बसी, 

अब मनोहर के रास्ते का काटा साफ हो गया था, वाह संध्या के साथ सुकून से रहना चाहता था, परिवार वाले भी खुश थे, क्युकि संध्या गाँव की रहने वाली थी, जैसा सभी को चाहिए था, 

लेकिन कुछ दिनो बाद संध्या ने अपना असली रंग दिखाना शुरु कर दिया, मनोहर और उसके परिवार की एक बात नही मानती थी, उसे जो सही लगता वही करती, ज्यादातर समय अपने मायके मे ही बिताती, 

मनोहर की ये दुशरी शादी थी, इसलिए वाह पूरी तरह से मजबूर था, वाह संध्या को किसी भी तरह से खुश करना चाहता लेकिन, जिसका संध्या भरपूर फायदा उठाती, मनोहर और उसका परिवार अब अशांत रहने लगा, उनकी शांति संध्या भंग कर चुकी थी, 

रिमझिम गरीब माबाप की बेटी थी, इसलिए उसे सब कुछ भी केह जाते, लेकिन संध्या रशुक़ वाले परिवार की थी इसलिए उसे को कुछ ना केह पाता, 

धीरे धीरे मनोहर और उसके परिवार को एहसास हो चूका था, की उन्होंने रिमझिम के साथ गलत किया है, जिसके लिए वो जितनी माफ़ी मांगे कम ही होंगी, 

लेकिन कहावत है " अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत "


शिक्षा 

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इस कहानि से हमें ये शिक्षा मिलती है की, ज्यादा की लालसा करना मुसीबत को निमंत्रण देती है , आपके पास जो है जितना है, उतने मे ही खुश रहना चाहिए |












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