भगवान शंकर सभी भक्तो की मनोकामना पुरी करते है, जैसे मेरी मन के बिचार जाने बगैर सारे उलझनों को सुलझाया ही नहीँ बल्कि मेरी आर्थिक जरूरत भी पुरी की, ऐसे है महादेव
जिनकी शक्ति का जितना भी बखान करो कम ही होगा?
तो चलिए जानते है भगवान शिव ने कैसे अपने भक्त की मनोकामना को पूर्ण किया....
कभी गुरुदेव जिनके द्वारा हमने दीक्षा प्राप्त कि थी वे अपने अनुभव बताते, कि कुस प्रकार भगवान शिव अपने भक्तो कि लाज रखते, है एवं कुछ भी अनिष्ट होने के पहले हि आकर सब संभाल लेते है,
मा को भक्ति गीत, एम सबके द्वारा बताये गये अनुभवो को सुनकर बड़ी शान्ति मिलती कि, आज के युग मे भी भगवान भक्त कि रक्षा जैसे तैसे करते हि है,
कभी कभी कोई अभिप्रिय घटना इतनी विचित्र होती जिन्हे सुनकर बदन का रोंवा रोंवा काँप जाता, क्या सच मे ऐसा होता है,
एकबार ज़ब मां शिव चर्चा के लिए का रही थी, तो मुझे भी चलने को कहा, हलाकि मुझे ढेरो काम थे, लेकिन मन से मै जाने कि इच्छुक थी,
मुझे उस पल सारे काम छोड कर मां के साथ सतसंग मे जाना हि सही लगा, सो मै चल पड़ी,
रास्ते मे अनेक लोग हमारे साथ जुड़ते गये, अंततः हम 25-40 लोग एकसाथ वहा पहुँचे,
सभी भगवान शिव के भक्त थे, और पुरी निष्ठां से उनके भजन गान और श्रवण कर रहे थे, बिच बिच मे कई भक्त उठकर भजन पर झूम भी रहे थे, काम के टेंशन से परेशान हुआ मै भी सारे भजन कीर्तन को बड़े ध्यान से सुन रही थी,
महिलाओ कि एक खश मंडली थी, जो सिर्फ बाबाजी भोलेनाथ के अनोखे अनोखे भजन बारी बारी से जाये जा रही थी, दो घंटे बाद भजन कीर्तन समाप्त हो गया,
उसके बाद कई सारे भक्त अपनी अपनी आप बीती बता रहे थे, जैसे किसी को आर्थिक तंगी से भगवान ने उबारा था, तो किसी को खोयी कीमती चीज उनके नाम लेते हि वापस मिले थे,
पर सबमे जो सबसे खाश वाक्या बताया था, वे स्वम् गुरुदेव थे, जो सबको दीक्षा दिया करते थे...
उन्होंने आरम्भ किया कि एकबार मै ज़ब गाँव गया, तो वहा कि दुर्दशा देखकर बड़ा चिंतित हो गया था, खेत मे फ़सल लगे हुई थे, लेकिन बिन मौसम आये तूफान ने सारे फ़सल को खराब कर दिया था, ऊपर से घर कि मरम्मत भी करवानी थी, घर तो पुरा जर्जर हुआ पड़ा था,
ऊपर से पैसे कि भी तंगी चल रही थी, शहर आने से पहले मुझे कई सारे कार्य करने थे, उसके बाद वहा पहुंचकर बच्चो का स्कूल मे दाखिला करवाना भी जरुरी था,
मैंने थोड़ी योजना बनाने के बाद एक पुराने राजमिस्त्री को फोन किया, और उसे घर बुलाया, वह ज़ब घर आया तो उसके चेहरे पर एक अलग सि मुस्कान थी, मै जिसे जनता था वह तो निहायती खडुश था, फिर मैंने ध्यान नहीँ दिया,
उसे मैंने मोल भाव करके 20 हजार मे पुरे घर कि मरम्मत करने के लिए तैयार कर लिया, वह अगले दिन हि दो मजदूरों के साथ झटपट काम मे लग गया,
मैंने सोचा जबतक वे काम कर रहे है, तबतक मै बाकी बचे फसलों को देख आता हु, बड़ी ताज्जुब कि बात थी, मेरे खेत कि फसले बाकियो से पीछे लगने के बावजूद भी तैयार थे,
जिसके लिए फसलों कि कटाई के बाद हि अच्छे दाम मिला गये, मै मन हि मन खुश हो रहा था , और भोलेनाथ को धन्यवाद कर रहा था, इधर मै जबतक खेत के सारे काम निपटा आया, तबतक घर कि मरम्मत भी हो चुकी थी,
मै क़ल सुबह के इंतजार मे बैठा था कि कब सुबह हो और मै उन कारीगरो को उनके पैसे देकर शहर निकलू,
सुबह हो गयी थी पर वे कारीगर नहीँ आये, फिर मैंने सोचा क्या बात है, वे पैसे लेने क्यूँ नहीँ आये, आज, फोन किया तो फोन भी बंद आ रहा था,
फिर मै उनके घर को चल पड़ा,
लोगो से पूछते हुई मै किसी तरह उस कारीगर के घर गया, जहाँ मुझे पता चला वह तो कई साल पहले मर चूका है, फिर वह कौन था?
मै बार बार उन्हें कहे जा रहा था कि इसी ने मेरे घर कि मरम्मत कि है, पर मेरी बात किसी ने नहीँ मानी,
मै तो पुरी तरह ब्याकुल हो चूका था, ये कैसे हो सकता है, मेरी आँखों का धोखा मै कहता पर, मेरे घर कि तो सच मे मरम्मत हुई है, अगर उसने नहीँ किया तो किसने किया होगा,
रातभर यही सोचता हुआ मै शहर के लिए निकल पड़ा, क़ल सुबह बच्चो के दाखिले कि आखिरी तारीख है, इसलिए मै वहा से निकल गया,
रास्ते मे मेरे बस मे एक कुछ ग्रामीण चढ़े, जिनके हुलिए बिल्कुल देहाँतो जैसे थे, मै अपने सीट पर बैठा बड़ी गंभीर चिंता मे था,
उनमे से एक ग्रामीण ठीक मेरे सामने के खाली पड़े सीट पर आ बैठा, मै अपना मुँह दूसरी और फेर कर झूठमुठ सोने का नाटक करने लग गया,
तभी किसीने आवाज दी शहर जा रहे हो बाबू.....
मैने तुरंत आँखे खोली, तो देखा वही देहाती शक्श मुझे पुकार रहा है,
मैने कहा... हाँ
फिर उसने प्रश्न किये, बात जो पक्की हुई थी उसका मूल चुकाया क्या?
मैंने कहा किसका मूल.....?
आप किस बारे मे बात कर रहे है, उस ब्यक्ति कि बात चित बिल्कुल गवांरो जैसी थी, इसलिए मै बात बात पर भड़क रहा था,
आधी रात को बस एक ढाबे पर रुकी, जहाँ साभी खाना खा रहे थे, मै खाना खा कर वापस आकर बैठा हि था कि वे दो मजदूर मुझे दिखाई दिए, मै उनके पास गया, और बोला के तुम लोग पैसे लेने क्यूँ नहीँ आये?
वेलोग उसी भीड़ मे थे, जो पीछे से बस मे चढ़े थे, वे लोग कहने लगे वह बूढा ब्यक्ति जो आपके पास लेकर आया था, वो नजाने कहा चला गया, और पैसे भी नहीँ दिए,
तो मैंने पूछा क्या तुम उसे नहीँ जानते थे, उन्दोनो ने कहा नहीँ हम तो काम कि तलाश मे इधर उधर भटक रहे थे, पास मे भगवान भोलेनाथ का मन्दिर था, वही जाकर बैठ गये, उसके बाद वह ब्यक्ति हमें मिला और फिर आपके घर जाकर काम करवाया, उसने आखिरी दिन बातो हि बातो मे उसने कहा था कि क़ल सुबह पैसे मिलेंगे तो मै तुम्हारा हिस्सा दे दूंगा, और मै क़ल शाम को बस से शहर जाऊंगा, और इसी बस का नाम लिया था,
ज़ब सुबह उसने पैसे नहीँ दिए, और दिनभर कहीं नहीँ दिखा तो हमें लगा कि वह सारा पैसा लेकर शहर भाग जायेगा, हमे पैसो कि जरूरत थी इसलिए हम भी इसी बस मे आ गये, और सोचा अब शहर जाकर गुजारा करेंगे,
मैंने उनसे पूछा तुम्हे कितने पैसे देने है, उन्दोनो ने कहा एक हजार......
मैंने उन्दोनो को दो दो हजार दे दिया, और शहर लाकर काम पर भी लगवा दिया,
मै मन हि मन सोच रहा था, कि ये सब मेरे भोलेनाथ के अलावा कोई नहीँ कर सकता, वे इतने दयालु है कि उनके मन्दिर के सामने आये लोगो का भी मेरे द्वारा उद्धार करवा दिया,
उनके महिमा से वे दोनों भी सही जगह पहुंच चुके है, और मै भी अपने सारे काम समाप्त कर के, फ़सल से मिले अच्छे खाशे पैसे लेकर शहर पहुंचूँगा, जिससे बच्चो का दाखिला भी हो जायेगा |
गुरुदेव कि यह कहानी सुनकर सभी भोलेनाथ के लिए यही बिचार कर रहे थे कि, प्रभु के द्वार पर आने वाला कभी निराश नहीँ होता, चाहे कोई छोटा ब्यक्ति हो या कोई धनवान |
कहानी सुनकर मन मे भगवान के प्रति जो भी संकाये थी सभी समाप्त हो गयी, और सतसंग के बाद मा के साथ घर लौटी तो मेरे भी सारे बिगड़े काम खुद ब खुद बनते चले गये,
इस घटना के बाद मै भी मा के साथ सतसंग मे नियमित जाने लगी |
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