Pitr-shradh-se-judi-kahani-tripti : पढ़े पितृ के चाह पर की गयी दान से तृप्ति की कहानी : पढ़े पितृ तृप्ति की कहानी

पितृ श्राद्ध का समय था, सभी लगे पड़े थे अपने पूर्वजो को अपनी निष्ठां दिखाने मे, भले उनसभी के रिश्तों मे जितनी भी खटास रही हो, लेकिन पितृपख अर्थात आश्विन माह के कृष्ण पक्ष मे अमावस्या तक लोग दिल खोल कर दान पुण्य करते है,

और यह पुरे विश्व मे 15 दिनोटक चलने वाला एक पर्व की तरह ही मनाया जाता है,

पितृ तर्पण देने से ठीक दो दिन पहले दीनानाथ के घर मे उसके दर्जन भर पूर्वज दीनानाथ को दर्शन देते हूए कहते है, बालक मै जानता हु, तुम हमारे लिए सच्चे मन से तर्पण करते हो,

पर इतना करना काफी नहीँ है, तुम्हे किसी ने बताया नहीँ की, अंतिम पूर्वज के श्राद्ध के दौरान एक त्रुटि हुई थी, जिसकी भरपाई भी तुम्हे करनी चाहिए,इतना कहते हूए सभी लुप्त हो गये 

पहले दीनानाथ को अपनी आँखों प्र विस्वास नहीँ हुआ, फिर दिमाग़ मे कई  प्रश्न आने सुरु हो गये......क्या हमारा श्रद्धां सही मे वे सब प्राप्त करते है,

परन्तु आजकल तो सभी इन सब बातो को नहीँ मानते है इस कोरोना काल के दौरान लोगो ने तो ना ठीक से संस्कार किया था, ना ही अन्य रसमे, तो क्या पितृलोक मे वे भी निराश हो रहे होंगे,

ऊपर से लोगो की सुनो तो ये बात बात पर ये नियम हटाओ, वो नियम हटाओ करने लग जाते है, आखिर इंसान जाये तो कहा जाये,

अंत ता उसने अपने पूर्वजो द्वारा कहे गये शब्दों पर खुद को केंद्रित किया, और घर के लोगो से पुछना सुरु किया, के ज़ब दादाजी के संस्कार चल रहे थे, तोक्या त्रुटि की गयी थी, अगर त्रुटि ना हुई होती तो उनके आने की आवश्यकता क्यूँ पड़ती,

अवश्य ही त्रुटि हुई है, अपने घर के सदस्यों से दीनानाथ को मालूम हुआ की हैं एक त्रुटि हुई थी, जिसमे संस्कार करने वाले पंडित को अन्न दान नहीँ हुआ था,

मन ब्याकुल था, हैं त्रुटि हुई थी इसलिए उन्होंने स्वम् आकर भूल सुधारी, फिर दिमाग़ ये मानने को तैयार नहीँ था, की क्या रीती रिवाजों मे मात्र एक गलती से पितरो को मुक्ति नहीँ मिलती, या फिर हमारे द्वारा किया गया श्राद्ध सफल नहीँ हुआ था,

चलो उन्होंने अच्छा ही किया की स्वम् आकर बता गये,

दो दिन बाद ही दीनानाथ ने ठीक उनके द्वारा कहीं गयी बातो पर अमल किया औरपंडितो को अन्न दान किये,

और उनसे यह भी पूछा लिया की पंडित जी अन्नदान करना क्यूँ जरुरी है?

यह कहानी भी पढ़े :-


पंडित जी ने बताया की....... अन्न वह वस्तु है, जो हमें शरीर और आत्मा की तृप्ति करवाती है, जिसतरह तुम किसी के भी घर जाते हो तो सर्वप्रथम जलपान के लिए निवेदन किया जाता है, उसी तरह तुम किसी भी लोक मे जाओ तो तुम्हे जलपन के लिए पूछा जायेगा,

लेकिन ईश्वर की बनायीं लीला के अनुसार सब तुम्हे अपने कर्म और भाग्य से मिलता है, कर्म का अर्थ है जो हम धरती पर कर चुके होते है, और भग्यान वह होता है जो अच्छे कर्मो द्वारा हम प्राप्त करते है, तो तुम वही प्राप्त करोगे जो तुमने कर्मो से कमाया है,

तुम जैसा बता रहे हो ये कोई पहली घटना नहीँ है, बड़े बड़े दानी भी इस दान के चक्क्ऱ मे फ़स चुके है, जो हम दान करेंगे वह हमें प्राप्त होगा,

हम पैसा दान करेंगे, तो हमें समृद्धि प्राप्त होंगी, हम आभूषण दान करेंगे तो ऐश्वरय प्राप्त होगा, उसी प्रकार हम अन्न दान करेंगे तभी हम अन्न (आत्मा की तृप्ति )प्राप्त करेंगे,

वहा जाकर शयद तुम्हारे दादाजी को अन्न प्राप्त नहीँ हो पता था, इसलिए उन्होंने तुम्हारी भूल की सुधार की,

इसलिए अब पितरो के नाम से हमेशा दान किया करो, भूखो को भोजन दो, दानक्रम करो, ये किसी ना किसी तरह तुम्हे या तुम्हारे पूर्वजो को ही वापस प्राप्त होगा,

दीनानाथ..... जी मै समझ गया, धन्यवाद 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ