साधुवो की टोली

साधुओ की टोली 
सावित्री देवी हर साल तीर्थयात्रा के लिए अपने पति के साथ हरिद्वार जाती थी, इसबार उसने सोचा की पूरा परिवार ही l तीर्थ करेंगे, 

इसलिए पूरी तैयारी के साथ सावित्री देवी तीर्थ को निकली, पहले सावित्री देवी को काशी, फिर मथुरा, फिर हरिद्वार, वहा से केदारनाथ और फिर अंत मे बैजनाथ धाम जाना था, 

ट्रेन पर 2-3 दिन का सफर था, अगली सुबह सावित्री देवी के बड़े पोते ने देखा की पास के बोगी से लेकर अगले 5 बोगियों मे सिर्फ साधु भरे पड़े है, 

सावित्री देवी धार्मिक स्वाभाव की थी, उसने सोचा चलो उनका आशीर्वाद ले लिया जाये, इसके लिए वह पुरे परिवार सहित साधुओ के दर्शन और आशीर्वाद के लिए पास की बोगियों मे गयी,

 उसने देखा की ये आम साधु नही थे बड़ी बड़ी जटाये लिए काशी भ्रमण के लिए निकले हुए थे, सपरिवार सावित्री देवी  ने साधुओ का आशीर्वाद लिया, 

थोड़ी देर की वार्तालाप से ज्ञात हुआ की इनमे से कई साधु परम् ज्ञानी, तो कई साधु हिमालय शीर्ष पर तपस्या कर आये थे, 

तभी एक साधु की नजर सावित्री देवी की छोटी पोती जूही पर पड़ी, उस साधु ने बड़ी विनम्रता से जूही का नाम पूछा, सर् पर हाथ रखा, और कई सारी सवाल जवाब भी किये, 

सवालों मे बड़ी समस्यावो का छोटा सा हल भी दिया, सावित्री देवी के मन मे प्रश्न उठ रहे थे की सभी बच्चो मे उस प्रखंड साधु ने जूही को ही अपनी वार्तालाप के लिए क्यूँ चुना, 

कई घंटो तक जूही से उस प्रखंड साधु ने सवाल जवाब किये, और अंत मे कहा की हर दिन अपने परिवार से आशीर्वाद लेना, 

( जूही उस समय मात्र 6-7 वर्ष की थी ) सावित्री देवी मन ही मन सोच रही थी के ऐसी क्या खाश बात है जूही मे जिससे वह साधु घंटो इससे वार्तालाप करता रहा, 

इस के बाद सावित्री देवी सपरिवार काशी और बाकि के तीर्थ भी कर आये, 

घर आकर सावित्री देवी का ना चाहते हुए भी जूही पर ध्यान चला जाता, उसे वह और से भिन्न लगती, धीरे धीरे सावित्री देवी के घर के सदस्यों मे जूही उसके लिए सबसे खाश बन चुकी थी, वह अपने हर कार्य मे जूही से सलाह विमर्श लेती, 

जूही भी साधारण मनुष्य ही थी, पर सावित्री देवी के नजर मे वह असामान्य दिखती, 

कई वर्ष बीत गये, सवित्री देवी इस आश मे थी के सायद आज जूही की खाशियत सामने आ जाये, पर ऐसा कुछ भी नही हुआ, 

यह मात्र एक सामान्य घटना थी, 




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