Sadupyog-jeewan-ka : पढ़े कैसे अपने जीवन से जुड़ी बातो का सही सदुपयोग करे : और इसके फायदे जाने

करीब 200 साल पहले भूतकाल मे स्कूल गुरुकुल कहे जाते थे, जहाँ ब्यक्तित्व विकास से लेकर अनंत तरह कि शिक्षाएं बच्चो को दी जाती थी, आज कि तरह तब भी बच्चो कि रूचि को ध्यान मे रखा जाता,
जो बच्चे प्रतिभा शाली होने के साथ साथ आंतरिक शक्ति से भी भरपूर होते, उन्हें गुरुदेव लोक कल्याण कि शिक्षा देते, जिससे आनेवाला जगत सुखी हो सके,

ऐसा हि एक गुरुकुल पिथौरागढ़ मे था, जहाँ शिष्यों को अनेक तरह कि विधाएं दी जाती, और जो शिष्य सारी विधाएं पूर्ण निपुणता से प्राप्त कर लेते, उन्हें उच्च कोटि कि विद्या दी जाती, जो लोकहित मे होता  |

ठीक उसी समय कई गुरुकुल ऐसे भी थे जिनमे असमान्य बिद्या का अर्थ काला जादू था, जिसके प्रयोग के दौरान कई शिष्यों कि मौत भी हो जाती ,क्युकि उनका वास्ता काली विधा से था,



काली बिधा सिखने सिखाने और इस्तेमाल मे लाने से पूर्व काली शक्तियों को प्रसन्न करने के लिए बलि भी दी जाती, यह बलि मनुष्य से लेकर किसी भी जीव कि हो सकती थी, कहने का अर्थ यह था कि जितनी बड़ी बलि उतना बड़ी बिद्या,

ज्यादातर गुरुकुल मे यह सब समान्य था, परन्तु पिथोरागाड़ कि बात अलग थी, वहा सिर्फ सात्विक बिद्याये शिष्यों को दी जाती, क्युकि वहा के उच्च शिक्षक एक देवपुरुष थे, जो एक खाश उद्देश्य के लिए कार्य कर रहे थे, इसके अलावा वे एक समय यात्री भी थे,

जो भविष्य मे घटने वाली एक बिशाल घटना को पूर्णत्या रूपांत्रित करना चाह रहे थे,

उसके लिए उन्हें साफ और निर्मल शिष्यों को आंतरिक और भौतिक शिक्षा से परिपूर्ण करना चाह रहे थे, ताकि ज़ब कभी किसी भी संकट अथवा बुरी परिस्थिति का सामना करना पड़े,
तो ये शिष्य उनके सहभागि बने,

वैसे तो उनके कई कई शिष्य थे, जो गुरुदेव से उच्च बिधा प्राप्त कर रहे थे, मगर उनका प्रिय शिष्य दिवाकर था, जो मस्तमौला और तेज दिमाग़ का था,

उसका मित्र तोलाराम, उसके हर कार्य कि जानकारी रखता, वह ये भी जनता कि दिवाकर को गुरुदेव ने ओरो से अधिक बिद्याए सिखाई है, जिसका प्रदर्शन वह अन्य मित्रो के पास करता रहता, दिवाकर कि एक खाश विद्या यह थी कि वह समय को रोक कर उसमे गमन करता हुआ अपने गंतब्य तक पहुंच सकता था,

यह बिद्या हर कोई नहीँ सीख पाता, दिवाकर अपने अंदर कि प्रतिभा के कारण हि गुरुदेव से यह बिधाय हासिल कि थी,

गुरुदेव का  सभी शिष्यों के लिए एक हि उद्देश्य था, परीक्षाथिति चाहे जैसी भी हो, अपनी बिधाओ का इस्तेमाल गलत कार्य मे नहीँ करना है, साथ हि कभी भी तुम्हे ऐसा प्रतीत हो कि इस बिद्या का मै सदुपयोग नहीँ कर पाउँगा, तो अपनी यह बिधा उस ब्यक्ति को समर्पित करना अनिवार्य है जो इसका सदुपयोग कर सके,

गुरुदेव कि सभी बातें ध्यान मे रखते हुये साभी बालक अपने अपने घर जाकर अपने माता पिता व लोक कल्याण के लिए कार्य करने लग गये,

बिच बिच मे बुरी परिस्थितियों को देखते हुये हर कोई अपने गुरुदेव कि बिधाओ को सदुपयोग करते,

कुछ समय बाद सभी शिष्य एकसाथ गुरुकुल मे गुरुदेव से आशीर्वाद लेने पहुंचे, तब साभी बेहद खुश थे, और अपनी अपनी यात्रा बता रहे थे, कि अबतक क्या क्या हुआ,

एक शिष्य ने कहा एकदिन मै घर मे परेशान हो गया, और खुली हवा कि लिए बरामदे मे बैठा अपनी बिधाये कंठस्थ करने लग गया, और देखते हि देखते कब मै आकाश कि और बढ़ चला, मुझे पता हि नहीँ लगा,

ज़ब वापस निचे आया, तो पडोशी मुझे बड़े आश्चर्य से देख रहे थे, अब तो हाल ऐसा हो गया है कि वे लोग मेरा नाम सुनते हि पहले आकाश देखते हैँ और बाद मे मुझे....

इतना केह कर सभी मित्र हसने लगे, तत्काल गुरुदेव आ गये, सभी को प्रसन्न देखकर वे भी खुश हो गये,

गुरुदेव ने पूछा साभी आये है, पर ये दिवाकर कहा रह गया? क्या वो आज उपस्थित नहीँ हुआ, परटू मैंने तो सभी को आमंत्रण भेजा था,

गुरुदेव मन हि मन संकित थे, ना जाने क्या कारण रही होंगी कि आज वो उपस्थित नहीँ हुआ, इसके बाद सभी शिष्य वापस अपने घर लौट आये,

गुरुदेव चिंतित थे, फिर उन्होंने अपने तप से दिवाकर कि स्थिति जानने कि कोशिश कि....

आंखे बंद करते हि उन्हें दिवाकर सामने प्रतीत हुआ, परन्तु ये क्या वह तो किसी कन्या पर मोहित हुआ पड़ा हैँ,

गुरुदेव सब समझ गये,  कन्या के मोह जाल मे दिवाकर पुरी तरह फ़स चूका है, अब वह मेरे किसी काम का नहीँ,

परन्तु उसके पास तो असीमित शक्तिया है, और वह बेवकूफ़ सब ब्यर्थ कर देगा,

इसके लिए गुरुदेव को एक सुझाव आया, उन्होंने तुरंत उसके मित्र तोलाराम को बुलाया, और ख़ास कार्य सौपा,

तोलाराम दिवाकर के घर गया, और उसके साथ कई दिन बिताये, बातो हि बातो मे उसने पूछ लिया कि क्या तुमने घर आकर गुरुदेव कि आज्ञा के अनुसार शक्तियों को कंठस्ट किया, तो दिवाकर का जवाब था नहीँ.....

तो क्या तुम्हे बिधाओ कि जरूरत होंगी भविष्य मे, तो दिवाकर ने फिर नहीँ मे हि जवाब दिया, क्युकि वह पुरी तरह से मोह (प्यार ) मे पड़ा हुआ था, और उसके सामने सारी चीजे उसके लिए फीकी थी,

वह कभी अगर बिधाओ को उपयोग भी करेगा तो सिर्फ अपने सांसारिक जीवन के लिए, इतना तो तोलाराम समझ हि चूका था,

इसके बाद उसने अपने गुरुदेव कि आखिरी आज्ञा का पालन किये, जिसके अनुसार किसी अन्य ब्यक्ति से खाश शक्तियों को स्वम् मे समाहित करने के लिए खाश उच्चारण करना,

उसके उच्चारन के दो पल बाद हि दिवाकर एक आम इंसान बन चूका था, और तोलाराम दिवाकर के अंदर मौजूद शक्तियों को ग्रहण कर चूका था, जो कि उसके गुरुदेव का आदेश था,

साथ ही गुरुदेव ने ये भी कहा, कि भले हि पृथ्वी के गर्भ मे शक्तिया असीमित है, परन्तु शक्तियों को ब्यर्थ करना भी अपराध है, 



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