chandi-ka-bartan : जाने दोस्ती की बिच कैसे आई पैसो से खटास : दोस्ती और सम्पति की कहानी :

दोस्ती और सम्पति की कहानी


करुणा प्रसाद की घर हाल में ही सबसे छोटे लडके की शादी हुई थी, कहते है लड़की वालो ने पुस्तैनी सम्पति देखकर लड़की ब्याही थी करुणा प्रसाद की घर वरना एक मामूली क्लर्क को भला उससे बड़े पड़ प्र काम कर रही लड़की को कौन ब्याहता है भला,,,,,


पर जो भी हो करुणा प्रसाद ने बहु बड़ी अच्छी लायी थी हर काम में अपनी हाजीरी देने वाली है,

लोगो से यही सब सुनते सुनते आंचल ने नई भूरानी से मिलने की इच्छा जाहिर की, आंचल दीनदयाल की बहु थी और  ठीक बगल वाले घर में रहती थी, पड़ोसि होने की नाते दोनों घरो के रिश्ते बहुत ज्यादा अच्छे थे,

घर की कामों को निपटा आँचल नई बहु रानी को दखने पड़ोस की घर गयी जंहा सभी ने बड़ी ही गरमजोशी से आँचल का स्वागत किया, क्युकि अब आँचल रिस्ते में बड़ी हो चुकी थी, और सभी की यही चाहत थी की छोटी बहु भी यहां की नियम कायदे समझे,,,, जिसमे कभी कदार आंचल भी उसकी मदद कर सकती थी,

आंचल नई बहु रानी की कमरे में गयी,,,,,, देखने में तों जैसा सबने बताया था.... वैसी ही सुंदर लगी, धीरे धीरे नई बहूरानी ने अपनी मीठी मीठी बातों से आंचल को कब अपना बना लिया आँचल भी ना समझ सकी,

पढ़ी लिखी होने की बावजूद घर की सारे नियम रीती रिवाजों को मानने वाली सुनैना.... काफी अच्छी स्वाभाव की लगी........

वरना आजकी लड़कियों की बात करू तों दिन भर फोन और मेकअप से फुरसत ही नहीँ मिलती,, और रस्मो की तों ऐसी धज्जिया उड़ाती चलती है की पूछो ही मत.........

सुनैना और आंचल की काफी अच्छी मित्रता हो गयी थी दोनों एक दूसरे को बहने जैसी मानने लगी......

समय लगा एक दूसरे को जानने समझने में, फ़िरभी रिस्ते की डोर ज्यो की त्यों बनी रही,,,,,,,,,,,,

आंचल और सुनैना घंटो बातें करती,,,,, मन की सारी उलझन एक दूसरे से बाटती, हसीं मजाक भी चलता रहता,,,,,, कभी कभी दोनों एक दूसरे की टांग भी खींचती, पर कभी रिश्ते पर आंच नहीँ आई,

सभी वाकिफ थे आंचल और सुनैना की दोस्ती से,, इसलिए सुनैना की सामने ना आंचल की बुराई कर पाते और ना आंचल की सामने सुनैना की,

एक बार सुनैना आंचल की घर आयी, आंचल का घर सुनैना की घर से थोड़ा छोटा और साधारण था, जबकि सुनैना का घर बिल्कुल टिप टॉप और नये फर्नीचरो से सजा हुआ था,

हलाकि कमी ज्यादा तों लगा रहता है, पर रिस्ते तों मन से जुड़ते है आंचल का ऐसा सोचना था....,

सुनैना ने अपने शालगिरह में आंचल की घर की सदस्यों को भी आमंत्रित किया,,,,,

सभी को रात्रि का भोजन परोसा गया.... आंचल और सुनैना साथ ही भोजन करने वाली थी,, मगर सुनैना की थाली बिल्कुल सफ़ेद चमचमाँ रही थी, और आंचल को साधारण पत्तल की थाल में ब्यजन परोसे गये थे , खाना सुनैना की नौकरानी लेकर आई थी, सुनैना ने अपनी नौकरानी को खाना वापस लेकर जाने को कहा, आंचल की पूछने पर सुनैना ने बताया की आज वह अपने पति की साथ ही खाना खायेगी,,,,,

नौकरानी सुनैना का खाना उठाया और लेकर जाने लगी..... ना जाने कैसे पानी का गिलास डगमगा कर निचे गिर गया,,, और आंचल का 6 साल का लड़का जो की ठीक वही बैठा था, उसने अपने हाथो में वह गिलास उठा लिया....

ना जाने क्यूँ सुनैना को यह बात अच्छी नहीँ लगी उसने उसके हाथ से वह गिलास ले कर अपने हाथो में ऱख लिया,,,,,,,,

बच्चे तों मासूम होते है उन्हें कहाँ समझ होती है, महंगे और किफायती की,, आंचल का बेटा उस गिलास को खिलौना समझकर लेने की जिद्द करने लगा, और जोर जोर से रोता रहा....
आंचल ने सोचा अगर दो पल की लिए इसे वह गिलास मिल जाती तों वह चूप हो जाएगा जिसके लिए उसने सुनैना को आवाज देते हुए उसके हाथ से वह गिलास मांगने लगी,,,,

सुनैना वह गिलास दे दो...... सुनैना वह गिलास दे दो,
आंचल ने करीब 20 बार यही बात दोहराई होंगी,,, ना जाने सुनैना ने सुना नहीँ या फिर नाटक करती रही नहीँ सुनने का, आंचल अब तक समझ चुकी थी की वह गिलास देना नहीँ चाहती,

आखिर ऐसी भी क्या बात थी उस गिलास मे, आंचल की मन मे यह बात खटकती रही.... आँचल की सास ने लौटते वक्त बात कर रही थी की उनकी बर्तन सारे चांदी की थे जिनमे वो खाना कहाँ रहे थे,
तब आंचल को सारी बात समझ आई, और यह भी समझ आया की दोस्ती अपनी जगह होती है और धन, दौलत, अपनी जगह होती है,

इतने अच्छे रिश्ते होने की बावजूद सिर्फ एक चांदी की बर्तन ने सुनैना की अंदर छिपे भाव दिखा गये,
आंचल मन ही मन अफ़सोस करने लग गयी,, की गलती शायद मेरी ही रही होंगी,

मैंने माँगा ही क्यूँ था......, रोने देती बच्चे को, कमी से कमी इस तरह वो मेरी बेइज्जती तों ना करती,

रिश्तों मे तों मिठास बनी ही थी, सिर्फ पैसे ने कड़वाहट घोल दिया, आंचल को सुनैना का यह ब्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीँ लगा, और वह सायद उस चांदी की बर्तन को भी कभी भूल ना पाए,

इस बात से उसने एक सिख जरुर ली.....भविष्य मे मेरे पास चाहे जितने सोने चांदी की बर्तन क्यूँ ना रहे, मै इसतरह किसी की बेइज्जती नहीँ करूंगी, क्युकि ऐसा करने से अच्छा भला इंसान भी खुद को छोटा महसूस करने लगता,

और सोने चांदी की बात ही क्या....आज कम है तों क़ल ज्यादा होंगे, पर मन दोबारा शायद उस तरह से ना जुड़ पाए |





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