वचन
कभी कभी हमारे अस पास ऐसी घटना घट जाती है , जिससे सुनकर रोम रोम कम्पित हो उठता है ,
स्वर्ग ,नर्क , मुक्ति , मोक्ष सरे इसी पृध्वी नामक धाम से होकर गुजरती है , संसार का कोई प्राणी ,या जीव ऐसा नहीं है जिसने धरती के नियम लांघे हो .... लेकिन अपने कर्मो का दायित्व पूरा करने के लिए जीवात्मा के लिए सारे बंधन छोटे है ,
भार्गव गुजरात में पुरातत्व विभाग में कार्यरत है , लगभग पच्चीस साल काम करने के बाद वह अपना ट्रांसफर अपने शहर जबलपुर करवाने की कोशिश में लगा हुआ था , जबलपुर में ही उसका अपना घर मकान है , जिसकी हालत जर्जर हो चलि थी , इसलिए वह पहुंचकर अपने हिसाब से उसी मकान भी बनवाना था , वह गुजरात में अकेला रहता था , उसकी पत्नी और बच्चे माता ,पिता सभी जबलपुर में रहते है , काफी बड़ी सम्पत्ति है वहां।
आखिरकार वह दिनन आ ही गया , उसे जबलपुर में कार्यरत क्र दिया गया , वह पहुंचते ही अपने पुराने मकान का जायजा लिया , और आस पास के गांव से मजदूर बुलवा क्र हवेली की जर्जर दिवालो को गिरा कर फिर से नींव के साथ न्या मकान बनाने को कह दिया ,
मजदूर जब खुदाई क्र रहे थे , तब उन्हें एक दूसरे तररह के कागजात मिले , जिन्हे लेकर वे लोग भार्गव के पास गए , यी किसी तहखाने का नक्शा मालूम पड्ड रहा था , भार्गव यह समझ नहीं पा रहा था की आखिर यह किस चीज के कागजात है , देखने से यह १५ ० वर्ष पुराणी थी , उन्हें जमीन कके अंदर एक गाढ़े में सुरक्चित्त रखा गया था ताकि , सही सलामत रहे
चुकी वह एक पुरातवेता कर्मचारी था इसलिए वैसे कागजात को समझने म ज्यादा देर नहीं लगी , फिरभी उसने उस कागजात को अपने उच्च अधिकारियो को दिखाना सही समझा ,
पुराने लेख और रद्दी जैसे लिखावटों को देखकर उन्हें यही समझ आया की यह किसी खाश वसीयत के कागजात है , जिन्हे किसी बड़े मकसद से छुपाया गया है , पर मेरे घर में ही क्यों
इस्सकी जानकारी अपने पिता को देते हुए भार्गव ने उस कागजात को दिखाते हुए उनके बारे में पूछा ?
परन्तु उस्सक्के पिता को इसकी कोई जानकारी न थी , सिर्फ अपने दादा द्वारा सुनी सुनाई बात दोहराने लगे...
वह यह थी की करीब १५० वर्ष पहले उनके परदादा ( श्रवण) ने एक गुप्त स्थान की खोज की थी , जो की सोने की असरफियो और नायब हीरो से भरा पड़ा था , ये सारे खजाने को पाकर वे अपने आप को खुशकिस्मत समझने लगे , फिर उनके अंदर थोड़ी लालच और जगी ,उन्होंने सोचा की मुझे इस स्थान पर इतना धन मिला है , इससे थोड़ा ओर दूर खुदाई क्रू तो मुझे और भी धन प्राप्त होगा ,जिसके बाद माई राजा से भी अधिक धनवान बन जाऊंगा।
उन्होंने और खुदाई करनी चालू की करीब एक माह बिट गए वे लगातार खुदाई करते रहे , जिसके बाद उन्हें एक गुप्त सुरंग मिला , इस सुरंग से आगे बढ़ने पर अजीब डरावनी आवाजे आ रही थी , जिसके बाद कदम पीछे हटा लिये , एक अनजान सा भय उन्हें घेर चूका था , वे अब समझ चुके थे की यह कोई छोटी मोटी बात नहीं रही ,यह सुरंग निचे की ओर था ,
उस सुरंग के बारे में राजा को जानकारी देनी जरुरी थी , अगर वे ऐसा न करते तो पूरा राज्य खतरे में आ सकता है राजा को इस बात की जानकारी दी गयी ,सरे धन को उन्होंने अपनी संपत्ति घोषित क्र दिया , जिससे परदादा जी (श्रवण) आहत हुए ,
फिरभी उन्होंने सुरंग को पूरी तरह से बंद करने के बाद ही चैन की सांस ली , भार्गव के पिता बताते है की वे (श्रवण ) सुरंग के काफी भीतर गए थे , वे अकेले ऐसे शक्श थे जिसने सुरंग के भीतर का दृश्य देखा था , जिसका जिक्र उन्होंने राजा के अलावे और किसी से नहीं किया।
उस गुप्त द्वार को उन्होंने एक नक़्शे पर उतारा था , जिसे सबसे छुपा कर घर की नींव में दबा दिया , उस कागजात में रस्ते के आलावे पुरे खजाने था , उन्होंने उसे रखा हुआ था , वे जबतक रहे एक अनजाने से डर्र के साये में थे ,
भार्गव के मन में बार बार यह आ रहा था की एकबार इसबारे में राज घराने में पूछताछ की जाये। मगर पूछे भी किस्से वे सारे लोग तो अब नहीं रहे ,और नई पीढ़ी को इसकी जानकारी होगी भी या नहीं !!
फिरभी एक बार उसने राज परिवार के पास जाने कि सोची , राज भवन पहुंचते ही भार्गव ने राज परिवार को उन कागजात को दिखाए और ,उस किस्से का जिक्र किया जो उसस्के पिता ने सुनाई थी , सभी लोग हैरान थे , पर कुछ कहना जरुरी न समझा , सिर्फ एक बुजुर्ग जो की राजघराने का मुंशी तथा वह करीब 75 वर्ष के आसपास थे , उन्होंने सरे कागजात देखे और उस कहानी को दबी आवाज में हामी भरी , वह बुजुर्ग मंद मंद मुस्कुराये जा रहा था , भार्गव को यह बात बेहद अजीब लगी।
जब उसने उनके मुस्कुराने की वजह पूछी , तो उन्होंने कहा की मेरे पिता जो मुझसे पहले यहाँ मुंशी थे, वे मुझसे कहते थे ,एक अजनबी उस रहस्य के बारे में पूछता हुआ आयेगा। वह बेहद खाश है, उसे एक उपहार देना है साथ हीं उसके परिवार की हर जरूरत का ध्यान रखना,
भार्गव ने उनकी बातो को ज्यादातर गंभीरता से नहीँ लिया, वह रातभर यही सारी बातें याद कर रहा था, और सोच रहा था की उस मुंशी ने ऐसा क्यूँ कहा?
वह रातभर यही सोचता रहा?
सुबह जागा तो किसी ने खबर दिया की राज परिवार का मुंशी नहीँ रहा !!!!
भार्गव शोकाकुल हो उठा, वहा पर एक हीं सदस्य ऐसा था जो मेरे सवालों का जवाब दे सकता था, पर वो भी चल बसा...
इसी सब के चिंता मे कई महीने बीत गये, भार्गव अब अपने मकान की मरम्मत मे जुटा हुआ था , फिर अचानक से उसने अपने परदादा द्वारा खोजे कागजात को निहारता वही चेयर पर हीं सो गया.....
गहरी नींद मे सो गया, और सपने मे उसे राजशी कपड़ो मे एक ब्यक्ति बताता है की हमसे भूल हुई, जिसके लिए हम तुम्हारे पुरे परिवार के दोषी है,
हमने मुंशी को केह दिया था, तुम्हे अपने परदादा के द्वारा खोजे गये खजाने के लिए उपहार दिया जाना चाहिए........., इतने मे हीं भार्गव की आंखे एक सुगबुगाहट से खुल गयी,
अपने सामने उसने एक खरगोश को पाया, वह घर मे खेल कूद कर रहा था, कुछ दिनों के बाद राज घराने के मुंशी का बेटा एक संन्दुक लेकर आया और, बोला की मेरे पिताजी ने मरते वक्त यह तुम्हे देने को कहे थे, लेकिन इसकी चाभी कहीं गुम गयी है |
भार्गव की लाख कोशिश के बावजूद वह संन्दुक नहीँ खुला, तभी उसने अपनी मेज पर पड़ी एक चाभी देखि, जिसे संन्दुक मे डालते हीं वह संन्दुक खुल गया,
भार्गव स्बतबद्ध था, यह चाभी कहा से आई, फिर उसे अचनक से खरगोश की बात याद आई जो उसके घर मे कूद रहा था, वो भी तब ज़ब राजा उसके सपने मे आये थे,
उस संन्दुक मे राजा के हस्ताक्षर किये हुए एक संपत्ति के कागजात और 200 सोने की असरफिया थी, जो वे श्रवण को देना चाहते थे, पर दे ना सके,
भार्गव समझ चूका था वह खरगोश और कोई नहीँ राजा का मुंशी था, जिसने मरकर भी अपना वचन पूरा किया, और यह उपहार मुझे भेंट किया |
शिक्षा :- मनुष्य द्वारा किये गये हर कार्य का फल उसकी आनेवाली पीढ़ियों को प्राप्त होता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा |
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