दो खून करने के बाद निकला तीसरे खून की तैयारी मे...
पढ़िए आगे की कहानी.......
ऐसा सिर्फ पापी ही कर सकते है कोई फरिस्ता नहीँ जैसा उस सक्श ने गाँव वालो के सेह किया
गुरुदेव की दी हुई शक्तियों का गलत उद्देश्य से प्रयोग आम बात हो गयी,
अपने दोस्त अनिल का सहपाठी रह चूका दिनेश गुरु के आदेशों का पालन करना जरुरी नहीँ समझता, जिसकारण लगातार कई लाशें देखि उसने फिर भी वह मंत्र का दुरूपयोग करता रहा,
आखिरी बार भी यही हुआ, अचानक एक गाँव वाला लम्बी नींद मे सो चूका था, फिरभी ना जाने क्यूँ उसे अपनी जिद्द पूरी करने मे लगा रहता है,
दरअसल बात यह है की हर कोई एक तरह के मंत्र को उछारान्नकरके उत्कृष्ट फल प्राप्त नहीँ कर सकता, सभी मे अलग तरह की ऊर्जा होती है,
कुछ मारकर मंत्र इतने खतरनाक होते है, की एकबार अगर पढ़ लिया जाये तो किसी को मिटा कर ही आते है, परन्तु पढ़ने वाले अज्ञानीयों का क्या किया जाये,
ऐसा मंत्र पढ़ने लिखने मे साधारण ही जोते है, परन्तु उनके उच्चारण मात्र से हवाएं दिशा बदल लेती है, खाशकर तब ज़ब उच्चारण तृव हो,
अन्याय,अहिंसा असहनीय है, यह जीवन भर अभिशाप के रूप मे ब्यक्ति के साथ रहता है, इस कहानी मे भी स्वयं शिव संभु ने आकर प्राणघाती मंत्र का उच्चारण शांत करवाया जब दिनेश अपने गुरु के आदेश के बिना हमेशा की तरह अपने रास्ते से काटा साफ करने निकल पड़ा था,
यह पहली बार नहीँ था, ज़ब दिनेश ने मंत्र की अवहेलना की थी, 2012 से कई बार लगातार इस प्राणघाती मंत्र का बारम्बार उच्चारण किया करता है, उसके बाद उसकी भारी क़ीमत भी चुकाता है,
वह शायद ईश्वर बनने के इरादे से करता हैऔर यह समझता है की वह अजेय अमर है, परन्तु यह बस उसके अंधेपन की निशानी है, यहां कोई सक्श ऐसा नहीँ जिसने अमृतव प्राप्त कर लिया हो, हा उसके जीवन की अवधि बढ़ी जरूर है, पर शरीर नश्वर अर्थात नष्ट होने वाला है,
दिनेश दैनिक क्रिया के समान इस घोर प्रचंड मंत्र का उपयोग बारम्बार किये जा रहा था,
जीसके उपरांत वह हुआ जिसे उसने कभी सपने मे भी नहीँ सोचा, साधना किसी से मोह नहीँ रखता, चाहे अपना हो या पराया,
दिनेश ने प्राण घाती मंत्र के उच्चारण से अपने मित्र को मार डाला, सायद अब वह पूरी तरह से तृप्त हो चूका होगा, आखिर यही तो चाहता था पापी,
कभी कभी शक्तिया ऐसे हाथो मे चली जाती है, ज़ब मनुष्य सदुपयोग ना करके दुरूपयोग करना प्रारम्भ कर देता है, छोटी छोटी बात पर भ्रमास्त्र निकलना अज्ञानी ही करते है,
ना जाने किस इरादे से ऐसे घिनौनी कुकृत्य कर सकते है लोग, मनुष्य हत्या कोई साधारण बात नहीँ, सिर्फ अपने मन को संतावना किसी अन्य के रक्त से प्रदान करना घोर अपराध है,
जिसका दंड अवश्य भोगना होगा,
इस अपराध के बाद स्वम् शंकर भगवान समक्ष प्रकट हो गये, और अपने विभिष्ट मंत्र के गलत प्रयोग से क्रोधित हो कर दिनेश का वध कर डाला,
क्या सच मे कोई मंत्र इतना शक्ति शाली हो सकता है, तो हा
कभी कभी मंत्र हम किसी भी परिस्थिति मे जपने लगते है, बगैर कुछ सोचे, जिसका फल हमें हमारी इच्छा की तरह ही प्राप्त हो यह जरुरी नहीँ होता,
इसी संदर्भ मे एक और कहानी प्रस्तुत है, भगवान पशुपति नाथ धाम के बारे मे किसने नहीँ सुना होगा,
परन्तु कुछ लोग ही यह जानते है की भगवान पशुपति बड़े क्रूर स्वाभाव के देव थे, परन्तु उनकी शक्ति का कोई बखान नहीँ कर सकता,
वह बहुत कम जगह ही अपनी शक्ति का प्रयोग करते, क्योकि क्रूरता के कारण उनके शक्ति भी क्रूर स्वाभाव धारण कर लेती, वहा से कभी कोई खाली हाथ नहीँ लौटता, हर मुराद भगवान पूरी करते,
अन्धो को आंखे, और निःसंतान दम्पति को संतान देना उनके लिए बेहद आसान बात थी, भले ही आप पुरे जगत से हार चुके हो,
पशुपति नाथ से थोड़ी दूर पर एक नदी है, जहाँ से लोग ख़ौफ़ खाते है, कहा जाता है वह शापित जगह है, इसलिए उधर जाना खतरे से खाली नहीँ होता,
असल बात तो ये है, की भगवान पशुपति नाथ ने वहा एक दैत्यरूपी दानव को दंड देते हुए श्रापित किया था, जो आज भी उसी नदी के चट्टानों पर विराजमान है, आने जाने वाले अजनबियों को अपना ग्रास बनाती रहती है, परन्तु साधारण लोग इस बात से बेखबर उस जगह को भूतिया बताते है,
भगवान पशुपति चाहते तो कब का उसे आजाद कर देते, परन्तु अपनी क्रोध मे दिए हुए श्राप से वे भी उस दैत्य को आजाद नहीँ कर सकते,
ना जाने कब तक वह दैत्या वही पड़ी रहेगी, इसका कोई अंदाजा नहीँ है, इसलिते भगवान पशुपती नाथ के मंत्रो का उच्चारण सोच समझ कर करे, या तो ना ही करे,
भगवान पशुपति नाथ अन्याय सहन नहीँ कर सकते थे, इसलिये दिनेश को उसके किये की सजा दे दी तत्काल |
देवदूत तो सिर्फ आगाह ही कर सकते है, बाकी.........
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