सच्ची कहानी :
मै एक राहगीर हु, पऱ मै आम लोगो की तरह रास्तो का नहीँ समय की यात्रा करता हु, शक्ल सूरत से दिखने मे आम तो हु पर पता नहीँ क्यूँ आँखे बंद करते ही किसी दूसरे स्थान पर होता हु, और वह स्थान इस संसार मे कहीं ना कहीं मौजूद होता हीं है,
सुनने मे काल्पनिक जरुर है पर ऐसा हीं हु मै,जाने ये कैसी शक्तिया है जो मुझे हर वक्त अपने आप से एक नये स्थान पर मिलवाती है,
आज की हीं बात करू तो हर दिन की तरह आज की अपनी दिनचर्या मे बस जिए जा रहा था, बिल्कुल आम सी मेरी जिंदगी, अच्छी बातो पर हस रहा था, और बुरी बांटो पर दुखी हो रहा था, कभी हस्ता कभी मुस्कुरा देता,
पर मेरी आदत रही है, चाहे मै जिन परिस्थितियों मे भी रहु ईश्वर को प्रणाम, और धन्यवाद करना नहीँ भूलता,
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और मै बस यही कर रहा था, जिसके लिए बस मैंने दो पल के लिए आँखों को बंद किया........
और अब मै बिल्कुल दूसरी दुनिया मे था....... ना जाने ऐसे मेरे क्या कर्म रहे... जो मैंने भगवान शंकर के दर्शन किये, वो मेरे सामने ध्यान मुद्रा मे बैठे थे,
ये कोई मन्दिर था, जिसके द्वार पर पुराने ज़माने की कला कीर्तिया बनी हुई थी, चौकोर द्वार से सामने भगवान शंकर बैठे दिखे,
कुछ पलो के लिए मै मान नहीँ पा रहा था, की क्या सच मे मेरी आंखे भगवान शंकर को देख रही है, या फिर बस एक वहम है मेरा, मुझे मेरी आँखों पर विस्वास नहीँ हो रहा था, फिर भी मै बस उन्हें देखता गया,
मैंने देखा की उनके तन पर भस्म लगे हूए थे, जिस कारन उनका शरीर सफ़ेद दिख रहा था, चेहरे पर हल्की आकृति की मुछे थी, जो चेहरे को बीते काल के समान दिखा रही थी, सुगठित शरीर था, और वे उस पाषाण निर्मित मन्दिर के द्वार पर ध्यान मे लीन थे,
सामने चन्द्रमा ठीक उनके मस्तक पर आकर रुक रही थी, जिसकी रौशनी से वह मन्दिर और एक एक कोना रौशनी था,
मन भगवान शंकर को देखे जा रहा था की अचानक सामने महिलाओ का एक समूह नजर आया, वहा अंधेरा था, चेहरे तो नहीँ दिख रहे थे, मगर ज्यादातर महिलाये सभी एक जैसे हीं पोशाक मे थी.... संध्या की आरती हो रही थी, और आरती के ाद सभी एक स्वर मे गायन करते हूए सामने देख रही थी,
मै सोच रहा था शयाद ये सभी देविया होंगी जो स्वर्ग से आयी हो, और मै उस और देखने लग गया जहाँ वे सभी देखे जा रही थी.... मैंने देखा एक अप्सरा जैसी महिला नृत्य कर रही है, और यह नृत्य कथक तो है पर बिल्कुल अलग, हल्के पीले रंग की पोशाक थी जैसा भगवान से सम्बन्धित सीरियल्स मे अप्सराये पहना करती है,
पिले और सुनहरे कामदार वस्त्र मे वह महिला मुझे मां पार्वती लगी, भला और कौन होगा, वह स्थान एकांत मे बनाया गया था.... जिसकारण दूर तक देखने पर मात्र एक लौ जलती दिख रही थी, वह भी कोशो दुर्गा थी, ताज्जुब की बात ये थी की आज की तरह वहा कोई ट्यूबलाइट और बल्ब नहीँ थे,
महिलाये अँधेरे मे हीं उस मन्दिर के सामने आनंद मना रही थी, मै उस स्थान की हर बारीकी को देख कर समझने की कोशिश करने लगा, हलाकि मेरी आंखे ये बिल्कुल मानने को तैयार नहीँ थी, फ़िरभी जो मै देख रहा था वह बिल्कुल वास्तविक था, सभी एक दूसरे को तिलक लगा रहे थे, और यह तिलक कुमकुम समान दिख रहा था, विचित्र बात तो ये थी की उन लोगो ने मुझे भी तिलक किया, क्या मै वहा प्रत्यक्ष था, वे मुझे देख पा रहे थे,
चौकोर ज़मीन के टुकड़े पर बना यह शंकर भगवान का मन्दिर ना जाने कितने सौ वर्ष पुराना होगा, इसकी कला कीर्तिया असाधारण थी, सामने महिलाये हाथ जोड़े ख़डी थी, और कुछ कदमो की दूरी पर शयाद मा पार्वती नृत्य कर रही थी, देखते देखते सुबह की रौशनी फुट पड़ी, और अब सबकुछ साफ दिख रहा था
असीम शान्ति, और मन पवित्र करने वाला वातावरण था, हालाकी अब वहा सिर्फ एक ब्यक्ति था, और मै धीरे धीरे उसके करीब जाने लगा, गोरे रंग के मांसल शरीर और चेहरे वाला ब्यक्ति मुझे देखे जा रहा है, और मै उसे,
ज़ब मै उनके निकट पहुंचा तो एहसास हो गया की ये और कोई नहीँ श्री नंदी भगवान है, और मन्दिर के सटे होकर मन्दिर की रक्षा कर रहे है, उनकी आँखे भूरी रंग की जादुई तरंगो से भरी हुई थी,उन्हें देखते देखते मेरी आंखे खुल गयी,
ऐसी दिब्यता देखकर मै मन हीं मन अपने आप को भाग्यशाली समझ रहा था, कई घंटो तक मेरे अंदर वही सारे दृश्य नाच रहे थे, और अनंत प्रश्न भी थे
जिसे हल करबे के लिए मैंने google सर्च किया, और हूबहू मेल खाते हूए एक मन्दिर को ढूंढ़ निकाला, यह मन्दिर मध्य प्रदेश मे स्थित कांकन शिव मन्दिर था, जिसके बारे मे मै अधिक से अधिक जानकारी हासिल करना चाह रहा था,
मन मे बस एक हीं बात चल रही थी क्या अभी
भी ऐसे मन्दिर है जहाँ सच मे देव और देवताओ का निवास होता है, और मै उस स्थान पर बिना गये दर्शन भी कर कर लौटा हु,
उस मन्दिर का इतिहास जानने पर मुझे पता लगा की यह मन्दिर एक राजा ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया था, क्युकि उसकी पत्नी एक अनन्य शिव भक्त थी, और वह संध्या पूजन के बाद उस मन्दिर के समक्ष महादेव को प्रसन्न करने के लिए नृत्य करती,
ये सारी बात मेरे देखे गये उस दृश्य से मेल खा रहे थे, तो क्या मैंने समय की यात्रा की थी,और जिसे मै मा पार्वती समझ रहा था, वह महिला भगवान शंकर की अनन्य भक्त महारानी काकन थी, शायद मै उस काल मे जा पहुंचा, ज़ब वह रानी पूजन के बाद नृत्य किया करती थी, और उसके साथ की महिलाये उनकी दासिया और सगे सम्बन्धी होंगे,
मै भी बिल्कुल हैरान रह गया,
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